भारत और अमेरिका के बीच संबंधों के बदलते समीकरण
The Hindu में प्रकाशित इस लेख में भारत और अमेरिका के बीच संबंधों के बदलते समीकरणों का विश्लेषण किया गया है, विशेष रूप से डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के संदर्भ में। इसमें यह तर्क दिया गया है कि भारत को अमेरिका के साथ एक अधिक व्यावहारिक और लेन-देन आधारित रणनीति अपनानी होगी, क्योंकि ट्रंप प्रशासन "अमेरिका फर्स्ट" नीति पर जोर दे रहा है।
मुख्य बिंदु:
1. पहले कार्यकाल की उपलब्धियां और चुनौतियां:
ट्रंप प्रशासन के पहले कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंधों में मजबूती आई थी। रक्षा और रणनीतिक साझेदारी के क्षेत्र में दोनों देशों ने प्रगति की।
हालांकि, व्यापार और वीज़ा नीतियों के कारण कुछ विवाद भी उभरे, जैसे कि भारत का GSP (Generalized System of Preferences) दर्जा खत्म करना।
2. दूसरे कार्यकाल की नई दिशा:
ट्रंप प्रशासन के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत ने दिखाया कि अमेरिका की नीतियों में बड़े बदलाव होंगे।
व्यापार: भारत फिलहाल ट्रंप प्रशासन के नए टैरिफ उपायों से बचा हुआ है, लेकिन BRICS देशों के खिलाफ 100% टैरिफ की संभावना चिंता का विषय है।
आव्रजन: वीज़ा और नागरिकता नीतियों में सख्ती, जैसे कि H-1B वीज़ा धारकों के बच्चों को नागरिकता का अधिकार न देना और "अवैध प्रवासियों" पर कार्रवाई, भारत के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है।
3. अंतरराष्ट्रीय संगठन और मल्टीलेटरलिज्म पर रुख:
ट्रंप प्रशासन बहुपक्षीय संगठनों (जैसे WHO, WTO, UN) से दूरी बना रहा है, और NATO जैसे सहयोगियों पर भी दबाव डाल रहा है। इसका भारत के लिए मतलब यह हो सकता है कि उसे इन मंचों पर अमेरिका के बिना अपनी स्थिति को मजबूत करना होगा।
4. चीन और इंडो-पैसिफिक साझेदारी:
अमेरिका और भारत के बीच इंडो-पैसिफिक साझेदारी पर सहमति है। चीन की आक्रामक नीतियों के जवाब में Quad (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) का महत्व बढ़ गया है।
इस क्षेत्र में रणनीतिक और रक्षा सहयोग दोनों देशों के संबंधों का सकारात्मक पहलू है।
5. चुनौतियां और भारत की रणनीति:
ट्रंप प्रशासन की "अमेरिका फर्स्ट" नीति भारत के लिए व्यापारिक और कूटनीतिक बाधाएं पैदा कर सकती है।
अप्रवासी भारतीयों की बड़े पैमाने पर संभावित वापसी और नई वीज़ा नीतियां भारत के लिए एक आर्थिक और सामाजिक चुनौती बन सकती हैं।
भारत को अमेरिका के साथ संबंधों को अधिक लाभ आधारित और द्विपक्षीय दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष और सुझाव:
लेख इस बात पर जोर देता है कि भारत को अपनी रणनीति में लचीलापन लाना होगा। इसे निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए:
व्यापार: अमेरिका के साथ व्यापार असंतुलन को कम करने और घरेलू उद्योगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की योजना बनानी होगी।
प्रवासन: H-1B वीज़ा और अप्रवासी भारतीयों से जुड़े मुद्दों को लेकर ठोस कूटनीति अपनानी होगी।
बहुपक्षीय मंचों पर मजबूती: बहुपक्षीय संगठनों में अपनी स्थिति मजबूत करने और चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए Quad जैसे समूहों का उपयोग करना होगा।
ऊर्जा और निवेश: अमेरिका से ऊर्जा आयात और निवेश के क्षेत्र में व्यवहारिक नीतियां अपनानी होंगी।
भारत के लिए यह समय अमेरिका के साथ संबंधों को स्थिर और उपयोगी बनाने का है, जिसमें लेन-देन आधारित दृष्टिकोण को प्राथमिकता देना होगा।
साभार- The Hindu
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