Japan–China Tensions Escalate: How PM Sanae Takaichi’s Taiwan Statement Triggered Beijing’s Strong Retaliation in 2025
बढ़ता तनाव: ताइवान मुद्दे पर जापान की नई प्रधानमंत्री के बयान के बाद चीन की कड़ी प्रतिक्रिया और उसके दूरगामी निहितार्थ
प्रस्तावना
पूर्वी एशिया आज विश्व राजनीति का सबसे अस्थिर भौगोलिक क्षेत्र बन चुका है। ताइवान जलडमरूमध्य न सिर्फ चीन-अमेरिका प्रतिद्वंद्विता का केंद्र है, बल्कि जापान की सुरक्षा गणनाओं का भी मूल बिंदु है। ऐसे वातावरण में नवंबर 2025 में जापान की नई प्रधानमंत्री सनाये ताकाइची द्वारा ताइवान पर किसी चीनी सैन्य कार्रवाई को “जापान के लिए अस्तित्वगत खतरा” बताना, पहले से गर्म चल रहे समीकरणों पर तेल डालने जैसा था। उनका यह बयान बीजिंग को सीधे चुनौती देने के रूप में देखा गया, और चीन ने राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य—तीनों स्तरों पर आक्रामक प्रतिक्रिया दी।
यह पूरी घटना न केवल चीन-जापान संबंधों की जटिलता को उजागर करती है, बल्कि इस क्षेत्र के भविष्य को भी अनिश्चितता की ओर मोड़ रही है।
पृष्ठभूमि: सनाये ताकाइची का उदय और ताइवान प्रश्न की संवेदनशीलता
21 अक्टूबर 2025 को सनाये ताकाइची जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। वे शिंज़ो आबे की नीतियों की वैचारिक उत्तराधिकारी मानी जाती हैं—अर्थात मजबूत रक्षा व्यवस्था, संविधान के अनुच्छेद 9 में संशोधन, सैन्य सामान्यीकरण तथा अमेरिका के साथ अटूट सुरक्षा साझेदारी की प्रबल समर्थक।
ताइवान पर उनका रुख हमेशा से कठोर रहा है। 7 नवंबर 2025 को संसद में उन्होंने कहा कि ताइवान और जापान के बीच समुद्री दूरी मात्र 110 किमी है, इसलिए ताइवान पर चीनी कब्ज़ा जापान की समुद्री लाइफलाइन, ऊर्जा मार्गों और रयूक्यू द्वीप समूह की सुरक्षा के लिए सीधा खतरा होगा। इस आधार पर उन्होंने घोषणा की कि चीन द्वारा ताइवान पर आक्रमण को जापान “अस्तित्व का संकट” मानेगा, और सामूहिक आत्मरक्षा के तहत सैन्य कार्रवाई करने का अधिकार सुरक्षित रखेगा।
चीन ने तुरंत इसे “लाल रेखा का उल्लंघन” करार दिया। बीजिंग के लिए ताइवान “राष्ट्रीय पुनर्एकीकरण” का प्रश्न है, और किसी भी बाहरी हस्तक्षेप को वह कठोर प्रतिक्रिया योग्य मानता है।
चीन की प्रतिक्रिया: बहु-स्तरीय दबाव की रणनीति
कूटनीतिक मोर्चा: तीखे बयान और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हमला
ताकाइची के वक्तव्य पर चीनी विदेश मंत्रालय ने तत्काल तीखी प्रतिक्रिया दी। बयान को “द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की व्यवस्था के विपरीत” बताया गया और कहा गया कि जापान “आक्रामक इतिहास भूलकर फिर से उग्रवादी रास्ता अपना रहा है।”
संयुक्त राष्ट्र में चीन के स्थायी प्रतिनिधि फू कांग ने जापान की सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट की दावेदारी पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया, इशारा साफ है —बीजिंग इस घटना को वैश्विक स्तर पर जापान को नीचा दिखाने के अवसर के रूप में भी देख रहा है।
सैन्य दबाव: सेनकाकू के आसपास उपस्थिति बढ़ाना
17 नवंबर 2025 से चीन ने विवादित सेनकाकू/दियाओयू द्वीपों के आसपास अपनी सैन्य गतिविधि तेज कर दी। चार चीनी फ्रिगेट और एक डिस्ट्रॉयर जापानी जलक्षेत्र के समीप देखे गए।
जवाब में जापान ने अपने फाइटर जेट और समुद्री गश्ती विमानों को तैनात किया। यह सैन्य प्रतिस्पर्धा “ग्रे ज़ोन” संघर्ष (Gray Zone Conflict)—यानी युद्ध से कम लेकिन आक्रामकता से अधिक—का आदर्श उदाहरण मानी जा रही है।
आर्थिक मोर्चा: पर्यटन, व्यापार और उपभोक्ता प्रतिबंध
आर्थिक प्रतिशोध चीन की सबसे शक्तिशाली रणनीति में से एक है।
15 नवंबर को बीजिंग ने जापान के लिए लेवल-3 ट्रैवल एडवाइजरी जारी की और सरकारी टूर एजेंसियों ने जापान के सभी ग्रुप टूर रद्द कर दिए। इसके बाद देखते ही देखते 5 लाख से अधिक चीनी पर्यटकों की फ्लाइट टिकटें रद्द हो गईं।
चीन में जापानी समुद्री उत्पादों का बहिष्कार पहले से ही मौजूद था, लेकिन 19 नवंबर को चीन ने जापानी सीफ़ूड पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया—जो 2023 के बाद दूसरी बार हुआ।
इससे जापान को प्रतिवर्ष लगभग 200 अरब येन का सीधा नुकसान होने का अनुमान है। पर्यटन उद्योग—जहाँ चीनी पर्यटकों की हिस्सेदारी लगभग 25% है—को 2.2 ट्रिलियन येन का झटका लग सकता है।
सामाजिक दबाव: चीनी छात्रों और व्यापारियों को चेतावनी
चीन ने जापान में पढ़ रहे अपने छात्रों तथा व्यावसायिक समुदाय को “सुरक्षा सावधानी” बरतने की सलाह दी। यह कदम बीजिंग की उस रणनीति का हिस्सा है जिसके तहत वह संकट के समय विदेशों में मौजूद अपने नागरिकों को दबाव के उपकरण की तरह इस्तेमाल करता है।
दोनों देशों के लिए निहितार्थ: संबंधों में अनिश्चित भविष्य
जापान के लिए जोखिम और अवसर
ताकाइची का बयान घरेलू राजनीति में राष्ट्रवादी समर्थन को मजबूत करता है, पर इसके रणनीतिक नुकसान भी स्पष्ट हैं।
एक ओर जापान क्षेत्रीय सुरक्षा में अधिक सक्रिय भूमिका निभाना चाहता है, दूसरी ओर चीन के साथ आर्थिक संबंध उसकी अर्थव्यवस्था के लिए अनिवार्य हैं।
अगर चीन लंबे समय तक प्रतिबंध बनाए रखता है, तो जापानी पर्यटन, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और समुद्री उत्पाद उद्योगों पर भारी दबाव पड़ेगा।
चीन के लिए संदेश और आत्म-विश्वास
बीजिंग इस पूरे प्रकरण को जापान—और अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका—को संदेश देने के अवसर के रूप में देख रहा है कि ताइवान मुद्दे पर किसी भी बाहरी हस्तक्षेप की कीमत चुकानी होगी।
हालाँकि, अत्यधिक आक्रामकता क्षेत्रीय देशों को चीन से दूर धकेल सकती है, जिससे “इंडो-पैसिफिक” में अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया-भारत गठबंधन को और मजबूती मिल सकती है।
क्षेत्रीय शांति पर खतरा: गलतफहमी से भी भड़क सकता है युद्ध
पूर्वी एशिया में तीन स्तरों पर तनाव तेजी से बढ़ रहा है—ताइवान जलडमरूमध्य, सेनकाकू क्षेत्र, और व्यापक इंडो-पैसिफिक।
ऐसे वातावरण में गलत आकलन, आकस्मिक टकराव या सैन्य दुर्घटना भी एक बड़े संघर्ष को जन्म दे सकती है।
साथ ही, जापान और चीन दोनों परमाणु-सशक्त देशों के करीब हैं, इसलिए किसी भी उग्र संघर्ष का प्रभाव वैश्विक होगा।
निष्कर्ष: धैर्य, संवाद और संतुलन की आवश्यकता
यह पूरा विवाद इस बात का प्रतीक है कि एक राजनीतिक बयान कैसे दशकों की कूटनीतिक पूंजी को क्षणभर में समाप्त कर सकता है।
ताकाइची का रुख जापान की सुरक्षा चिंताओं को आवाज़ देता है, पर चीन के साथ रिश्तों को संकट की ओर भी धकेलता है।
बीजिंग ने जिस तीव्रता से प्रतिक्रिया दी है, वह केवल नाराजगी नहीं दर्शाती, बल्कि यह बताती है कि ताइवान उसके लिए “कोर राष्ट्रीय हित” है और वह किसी भी चुनौती को सहन करने को तैयार नहीं।
टोक्यो और बीजिंग के बीच बैक-चैनल वार्ता जारी है, लेकिन जब तक ताकाइची अपने बयान को नरम नहीं करतीं या चीन अपनी आक्रामक प्रतिक्रिया को सीमित नहीं करता, तब तक इस विवाद के शांत होने की संभावना कम है।
पूर्वी एशिया की शांति अंततः शक्ति संतुलन, संवाद और राजनीतिक संयम पर निर्भर करेगी। आज यह जिम्मेदारी सिर्फ जापान या ताइवान पर नहीं, बल्कि चीन के धैर्य और नेतृत्व पर भी टिकी है।
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