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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

Nobel Prize 2025 in Medicine: Discovery of Peripheral Immune Tolerance Opens New Frontiers in Treatment

2025 का नोबेल पुरस्कार (शारीरिक चिकित्सा): प्रतिरक्षा प्रणाली की नई समझ का सम्मान

6 अक्टूबर 2025 को नोबेल समिति ने शारीरिक चिकित्सा या मेडिसिन के क्षेत्र में 2025 का प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार तीन वैज्ञानिकों — मैरी ई. ब्रंकाउ, फ्रेड राम्सडेल और शिमोन साकागुची — को प्रदान करने की घोषणा की।
इन वैज्ञानिकों को यह सम्मान “परिधीय प्रतिरक्षा सहनशीलता” (Peripheral Immune Tolerance) की खोज के लिए दिया गया है, जिसने मानव प्रतिरक्षा प्रणाली (immune system) को समझने की दिशा में एक नया अध्याय जोड़ा है।


🧬 परिधीय प्रतिरक्षा सहनशीलता क्या है?

हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली का मुख्य काम है — शरीर को बाहरी खतरों, जैसे कि वायरस, बैक्टीरिया या अन्य रोगजनकों से बचाना।
लेकिन यह भी जरूरी है कि यह प्रणाली अपने ही शरीर की कोशिकाओं पर हमला न करे।
यहीं से शुरू होती है प्रतिरक्षा सहनशीलता (immune tolerance) — यानी हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली का वह गुण जो “स्वयं” और “पराया” पहचानना सिखाता है।

परिधीय प्रतिरक्षा सहनशीलता” शरीर के परिधीय (peripheral) ऊतकों में होती है।
यह सुनिश्चित करती है कि यदि कोई टी-कोशिका (T-cell) गलती से अपने ही ऊतकों को विदेशी समझे, तो उसे नियंत्रित किया जाए या निष्क्रिय कर दिया जाए।
इस प्रक्रिया की विफलता से ऑटोइम्यून रोग (Autoimmune diseases) जैसे — रूमेटॉइड आर्थराइटिस, टाइप 1 डायबिटीज़ या मल्टीपल स्केलेरोसिस — उत्पन्न हो सकते हैं।


🔬 वैज्ञानिकों का योगदान

1. शिमोन साकागुची

जापान के वैज्ञानिक साकागुची ने 1990 के दशक में पहली बार नियामक टी-कोशिकाओं (Regulatory T-cells या Tregs) की पहचान की।
उन्होंने बताया कि ये कोशिकाएँ प्रतिरक्षा प्रणाली को “अति सक्रिय” होने से रोकती हैं और शरीर में संतुलन बनाए रखती हैं।
उनकी खोज ने इम्यूनोलॉजी में एक नई दिशा दी और ऑटोइम्यून बीमारियों की जड़ों को समझने का रास्ता खोला।

2. मैरी ई. ब्रंकाउ

ब्रंकाउ ने इन नियामक टी-कोशिकाओं के आणविक तंत्र (molecular mechanisms) पर गहराई से काम किया।
उन्होंने यह समझाया कि कैसे ये कोशिकाएँ सिग्नल भेजकर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को नियंत्रित करती हैं।
उनके शोध से यह स्पष्ट हुआ कि शरीर की अपनी सुरक्षा प्रणाली को संतुलित रखने में ये कोशिकाएँ कितनी महत्वपूर्ण हैं।

3. फ्रेड राम्सडेल

राम्सडेल ने इन टी-कोशिकाओं की पहचान, सक्रियता और कार्य प्रणाली को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनके कार्य से यह पता चला कि इन कोशिकाओं की कमी या गड़बड़ी से प्रतिरक्षा प्रणाली अपने ही ऊतकों पर हमला करने लगती है।
यानी, इन कोशिकाओं का स्वस्थ रहना ही स्व-प्रतिरक्षा सहनशीलता (self-tolerance) का आधार है।


💉 चिकित्सा विज्ञान पर प्रभाव

इन तीनों वैज्ञानिकों के काम ने चिकित्सा जगत में नई उम्मीदें जगाई हैं।
आज इन्हीं खोजों के आधार पर —

  • ऑटोइम्यून रोगों (जैसे ल्यूपस, टाइप 1 मधुमेह, क्रोहन रोग) के इलाज के नए तरीके विकसित हो रहे हैं।
  • अंग प्रत्यारोपण (organ transplant) में अस्वीकृति को रोकने के लिए T-reg कोशिकाओं को बढ़ाने पर काम चल रहा है।
  • कैंसर इम्यूनोथेरेपी में भी इन कोशिकाओं की भूमिका महत्वपूर्ण पाई गई है, क्योंकि इन्हें नियंत्रित कर प्रतिरक्षा प्रणाली को कैंसर कोशिकाओं के खिलाफ अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।

🧠 नोबेल पुरस्कार का महत्व

नोबेल पुरस्कार केवल वैज्ञानिकों को सम्मानित करने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह मानवता के लिए विज्ञान के योगदान को पहचानने का अवसर भी है।
ब्रंकाउ, राम्सडेल और साकागुची की खोजों ने यह साबित किया है कि बुनियादी अनुसंधान भी मानव जीवन को गहराई से बदल सकता है।
इनके कार्य ने प्रतिरक्षा विज्ञान (immunology) को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया और चिकित्सा जगत को उपचार की नई दिशा दी।


🌍 भविष्य की संभावनाएँ

अब वैज्ञानिक इन खोजों को आगे बढ़ाते हुए —

  • जीन थेरेपी (gene therapy),
  • व्यक्तिगत चिकित्सा (personalized medicine),
  • और प्रतिरक्षा नियामक दवाओं (immune-modulating drugs)
    पर तेजी से काम कर रहे हैं।

भविष्य में यह शोध न केवल ऑटोइम्यून बीमारियों बल्कि एलर्जी, पुरानी सूजन, और कैंसर जैसे रोगों के उपचार में भी क्रांति ला सकता है।


🩺 निष्कर्ष

2025 का नोबेल पुरस्कार उन वैज्ञानिकों को सम्मानित करता है, जिन्होंने प्रतिरक्षा प्रणाली की “संतुलन कला” को समझा।
मैरी ई. ब्रंकाउ, फ्रेड राम्सडेल और शिमोन साकागुची की खोजों ने दिखाया कि मानव शरीर की रक्षा प्रणाली कितनी जटिल और बुद्धिमान है — और यदि इसे समझा जाए तो बीमारियों के खिलाफ लड़ाई में मानवता कितनी दूर तक जा सकती है।

यह पुरस्कार न केवल तीन वैज्ञानिकों की उपलब्धि का सम्मान है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि सटीक विज्ञान ही सशक्त जीवन की कुंजी है।


संदर्भ:
Reuters, “Scientists Mary E. Brunkow, Fred Ramsdell and Shimon Sakaguchi win the 2025 Nobel Prize in Physiology or Medicine.”

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