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Adi Shankaracharya: The Eternal Light of Indian Intellectual Tradition

 आदि शंकराचार्य: भारतीय चेतना के चिरस्थायी प्रकाश भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरती पर कुछ ही ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने समय की धारा को मोड़ा और युगों तक प्रेरणा दी। आदि शंकराचार्य उनमें से एक हैं – एक ऐसी ज्योति, जिसने 8वीं शताब्दी में भारतीय बौद्धिक और आध्यात्मिक जगत को नया जीवन दिया। केरल के छोटे से कालड़ी गाँव में जन्मे इस युवा सन्यासी ने न केवल वेदों के गूढ़ ज्ञान को सरल बनाया, बल्कि उसे घर-घर तक पहुँचाकर भारत को एक सूत्र में बाँध दिया। एक युग का संकट और शंकर का उदय उस समय भारत एक बौद्धिक और धार्मिक उथल-पुथल से गुजर रहा था। अंधविश्वास, पंथों की भीड़ और बौद्ध धर्म के प्रभुत्व ने वैदिक परंपराओं को धूमिल कर दिया था। लोग सत्य की खोज में भटक रहे थे। ऐसे में शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत का झंडा उठाया और कहा – "सत्य एक है, बाकी सब माया है।" उनका यह संदेश सिर्फ दर्शन नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक नया तरीका था। "अहं ब्रह्मास्मि" – मैं ही ब्रह्म हूँ शंकराचार्य का अद्वैत वेदांत सरल लेकिन गहरा है। वे कहते थे कि आत्मा और ब्रह्म में कोई अंतर नहीं। हमारी आँखों के सामने ...

Gaza's Humanitarian Crisis: Starvation, Suffering, and a Call to Conscience

गाजा का मानवीय संकट: अन्नहीनता की पीड़ा और अंतरात्मा की पुकार

60 दिनों से भी अधिक समय हो गया है जब गाज़ा पट्टी में न तो खाद्य सामग्री पहुँची, न ईंधन, न दवाइयाँ, और न ही कोई अन्य आवश्यक वस्तु। इस समय वहाँ की लगभग 2.3 मिलियन आबादी भूख, भय और असहायता के भंवर में फँसी हुई है। बाजार खाली हो चुके हैं, राहत एजेंसियाँ हाथ बाँध चुकी हैं, और फिलिस्तीनी परिवार अपने बच्चों को बस जिंदा रखने की जद्दोजहद में लगे हैं।

गाजा में जीवन अब डिब्बाबंद सब्जियों, चावल, पास्ता और मसूर की दाल के इर्द-गिर्द सिमट गया है। दूध, पनीर, फल और मांस जैसे पोषक तत्वों से भरपूर आहार अब सिर्फ एक बीती याद बन चुके हैं। ब्रेड और अंडे जैसे साधारण आहार भी आम लोगों की पहुँच से दूर हो गए हैं। जो थोड़ी-बहुत सब्जियाँ या खाद्य सामग्री बाजार में उपलब्ध हैं, उनकी कीमतें इतनी बढ़ चुकी हैं कि अधिकांश परिवार उसे खरीद पाने में असमर्थ हैं।

सूखे बर्तनों की खामोशी

कहानियाँ हर गली, हर तंबू शिविर में बिखरी पड़ी हैं। खान यूनिस के बाहर, एक अस्थायी शिविर में मरियम अल-नज्जार अपने छह बच्चों समेत ग्यारह सदस्यों के परिवार के लिए केवल चार डिब्बाबंद मटर उबालती हैं। यह शुक्रवार का उनका 'भोजन' है। जब वे कहती हैं — "अब हम सिर्फ मटर और चावल खाते हैं, जिन्हें हम पहले कभी खाने की सोच भी नहीं सकते थे," — तो यह भूख से उपजे एक सामूहिक असहाय रूदन का प्रतिनिधित्व करता है।

दूसरी ओर राहत रसोईघर भी अब बंदी की कगार पर हैं। संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) ने अपने भंडार समाप्त हो जाने की चेतावनी दी है। लगभग 6.4 लाख लोगों को प्रतिदिन गर्म भोजन उपलब्ध कराने वाली ये रसोई अब मात्र चावल और पानी के पतले मिश्रण तक सीमित रह गई हैं। सहायता संगठन अब साफ़ कहने लगे हैं — हमारे पास देने के लिए अब कुछ बचा ही नहीं है।

भूख का चेहरा: कुपोषित बचपन

गाजा में भूख अब केवल पेट भरने का संकट नहीं रही, यह अब बच्चों की सेहत और भविष्य के लिए एक स्थायी खतरा बन चुकी है। मार्च 2025 के आंकड़ों के अनुसार, गाजा में तीव्र कुपोषण से पीड़ित बच्चों की संख्या में फरवरी के मुकाबले 80% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। अस्पतालों में हड्डियों से चिपकी चमड़ी वाले बच्चों का इलाज करते डॉक्टर भी अब संसाधनों की कमी के सामने विवश हैं।

खाद्य पदार्थों में विविधता की अनुपस्थिति ने स्थिति को और भयावह बना दिया है। विटामिन, खनिज और प्रोटीन जैसे जरूरी पोषक तत्वों की कमी से बच्चों के मानसिक एवं शारीरिक विकास पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ना तय है। डॉक्टर बताते हैं कि भूख से तत्काल मौत भले न हो, परन्तु धीरे-धीरे इन बच्चों के अंग कमजोर होते जाएंगे, रोग प्रतिरोधक क्षमता घटेगी और एक पूरी पीढ़ी कुपोषण की गिरफ्त में आ जाएगी।

राहत के प्रयास और अवरोध

इज़राइल द्वारा गाजा पर लगाए गए इस घेराबंदी ने मानवीय सहायता को भी अवरुद्ध कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र समेत अनेक अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ नियमित रूप से चेतावनी देती रही हैं कि खाद्य सामग्री और चिकित्सा सहायता को बाधित करना अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का उल्लंघन है। बावजूद इसके, सहायता ट्रकों की संख्या नगण्य है और गाजा में राहत पहुंचाने वाले संगठन भी लगभग निष्प्रभावी हो चुके हैं।

इज़राइल का दावा है कि सुरक्षा कारणों से इन प्रतिबंधों की आवश्यकता है, वहीं मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि यह प्रतिबंध सामूहिक दंड के बराबर है और इससे असैन्य नागरिकों की जान जोखिम में डाली जा रही है।

नैतिक प्रश्न और अंतरराष्ट्रीय भूमिका

गाजा की त्रासदी अब केवल एक क्षेत्रीय संघर्ष नहीं रह गई है। यह एक ऐसा नैतिक प्रश्न बन चुका है जिसका उत्तर देने से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भी बच नहीं सकता। दुनिया के सबसे शक्तिशाली मंच — संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद — से लेकर छोटे गैर-सरकारी संगठन तक, सभी ने गाजा के लिए मानवीय गलियारा खोलने की माँग की है।

लेकिन आज भी राहत ट्रक सीमाओं पर खड़े हैं, भरे हुए खाद्य पैकेट गाड़ियों में सड़ रहे हैं, और दूसरी ओर, गाजा के बच्चे भूख से मर रहे हैं।

निष्कर्ष

भूख की कोई राष्ट्रीयता नहीं होती। नन्हें बच्चों की बिलखती आंखों में न कोई झंडा होता है, न कोई राजनीतिक अजेंडा। जब मानवता संकट में हो, तो धर्म, भूगोल और राजनीति के सारे तर्क निष्प्रभावी हो जाते हैं। गाजा के लोगों को जीवन के अधिकार से वंचित करना समस्त सभ्यता के मूल्यों का अपमान है।

आज, जब गाजा के सूखे बर्तन और सूनी आँखें दुनिया को पुकार रही हैं, तब चुप्पी इतिहास के सबसे बड़े अपराधों में दर्ज होगी। यह समय है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय न केवल निंदा करे, बल्कि ठोस और त्वरित कार्यवाही करे — ताकि अन्न, दवा और उम्मीद की किरण गाजा की धूल भरी गलियों तक पहुँच सके।


संदर्भ (Sources):

  • The Hindu Editorials, अप्रैल 2025
  • United Nations Office for the Coordination of Humanitarian Affairs (UNOCHA) Reports
  • World Food Programme (WFP) Gaza Updates, अप्रैल 2025
  • UNICEF and WHO Joint Humanitarian Briefings
  • Al Jazeera और BBC की गाज़ा मानवीय संकट पर रिपोर्टिंग


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✍️ARVIND SINGH PK REWA

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