पुतिन की भारत यात्रा: क्या इससे भारत-रूस संबंधों को नया आकार मिलेगा?
भू -राजनीतिक विश्लेषण
भूमिका: बहुध्रुवीय विश्व में एक निर्णायक कूटनीतिक क्षण
भारत और रूस के बीच दशकों पुराने रणनीतिक संबंध 4–5 दिसंबर 2025 को नई दिल्ली में आयोजित 23वें भारत–रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के साथ एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुँच गए। यह राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की 2022 के यूक्रेन युद्ध के बाद भारत की पहली राजकीय यात्रा है —एक ऐसी यात्रा जिसने न केवल वैश्विक आलोचना के वातावरण में रूस की एशिया-उन्मुख कूटनीति को प्रदर्शित किया, बल्कि भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को भी प्रमुखता से सामने रखा।
ऐसे समय में जब अमेरिका रूस पर कड़े प्रतिबंध लागू कर रहा है और भारत पर मॉस्को से दूरी बनाने का अप्रत्यक्ष दबाव बढ़ा रहा है, पुतिन की यह यात्रा बहुध्रुवीय भू-राजनीति में उभरते संतुलन का संकेत देती है। यह यात्रा केवल परंपरागत संबंधों के उत्सव तक सीमित नहीं है, बल्कि इस प्रश्न को जन्म देती है—क्या यह यात्रा भारत–रूस संबंधों को नए सिरे से परिभाषित करेगी, या यह केवल मौजूदा दिशा को और मजबूत करेगी?
इस लेख का मत स्पष्ट है:
यह यात्रा क्रांतिकारी बदलाव नहीं लाएगी, परंतु रक्षा, ऊर्जा और भू-राजनीतिक सहयोग के क्षेत्रों में संबंधों को ठोस रूप से गहरा करेगी।
ऐतिहासिक आधार: सोवियत विरासत से ‘विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त साझेदारी’ तक
भारत–रूस संबंधों की मजबूती को समझने के लिए इसके ऐतिहासिक विकास को समझना अनिवार्य है।
1. शीत युद्ध काल का भरोसा
सोवियत संघ ने न केवल भारत को विश्व मंच पर राजनीतिक समर्थन दिया, बल्कि 1971 के युद्ध से लेकर कश्मीर पर UNSC प्रस्तावों तक भारत के पक्ष में निर्णायक भूमिका निभाई।
1980 के दशक तक भारत के 65–70% सैन्य उपकरण सोवियत बनाए हुए थे।
2. 1991 के बाद पुनर्निर्माण
USSR के विघटन के बाद यह संबंध कमजोर हो सकते थे, परंतु 2000 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पुतिन की पहल के बाद संबंधों को रणनीतिक साझेदारी का रूप मिला।
2010 में इसे अपग्रेड कर "विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त" साझेदारी का दर्जा दिया गया।
3. उच्च-स्तरीय सहयोग के मील के पत्थर
- 2004: ब्रह्मोस संयुक्त उद्यम
- 2018: S-400 प्रणाली सौदा, जिसने अमेरिकी CAATSA प्रतिबंधों की परवाह किए बिना भारत की प्राथमिकताओं को स्पष्ट किया
- कुडनकुलम न्यूक्लियर परियोजना
- लंबी अवधि के रक्षा-ऊर्जा सहयोग समझौते
इन सबने दिखाया कि यह संबंध केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं, बल्कि वास्तविक रणनीतिक परस्पर निर्भरता पर आधारित है।
मुख्य एजेंडा: किन क्षेत्रों में गहराई आएगी?
पुतिन की 2025 यात्रा का एजेंडा अत्यंत व्यापक था, जिसे “कंप्रेहेंसिव डाइमेंशन्स ऑफ पार्टनरशिप” कहा गया। इस यात्रा ने कुछ ऐसे क्षेत्रों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जो भारत–रूस संबंधों को अगले दशक में दिशा देंगे।
1. रक्षा सहयोग: भविष्य की लड़ाई प्रणालियों पर फोकस
भारत की आधुनिक सैन्य संरचना आज भी लगभग 45% रूसी तकनीक पर निर्भर है। मौजूदा यात्रा में निम्नलिखित विषय प्रमुख रहे—
- Su-57 स्टेल्थ फाइटर पर संयुक्त विकास चर्चा
- S-500 मिसाइल डिफेंस सिस्टम
- हाइपरसोनिक हथियार
- अतिरिक्त S-400 यूनिट्स
- ब्रह्मोस NG और ब्रह्मोस-II (हाइपरसोनिक) पर गति
इसके अतिरिक्त, RELOS (Reciprocal Exchange of Logistics Support Agreement) की औपचारिक सक्रियता ने दोनों सेनाओं के बीच लॉजिस्टिक सहयोग को लगभग नाटो-स्तर की सुविधा प्रदान कर दी—यह परिवर्तन गुणात्मक है।
2. ऊर्जा कूटनीति: अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच जीवनरेखा
रूसी तेल भारत की आयात जरूरतों का लगभग 35% पूरा कर रहा है। अमेरिका द्वारा रूस पर 500% तक टैरिफ लगाने के प्रस्तावों ने भारत की ऊर्जा सुरक्षा नीति को और चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
इस यात्रा में—
- 2030 आर्थिक सहयोग रोडमैप
- रुपया-रूबल और वैकल्पिक भुगतान तंत्र
- लॉन्ग-टर्म LNG और कच्चे तेल की डील
- कुडनकुलम-4 और नए न्यूक्लियर रिएक्टर सहयोग
जैसे कदम भारत को ऊर्जा विविधीकरण और स्थिरता की दिशा में आगे बढ़ाते हैं।
3. व्यापार और तकनीक: असंतुलन दूर करने की कोशिश
भारत–रूस व्यापार 2025 में $68.7 बिलियन तक पहुंचा, परंतु यह गंभीर रूप से असंतुलित है:
- भारत का निर्यात: $4.8 बिलियन
- भारत का आयात: $63+ बिलियन
नई पहलों में—
- दवाइयाँ, कृषि, मशीनरी
- स्पेस सहयोग (Gaganyaan सपोर्ट, GLONASS)
- आईटी और साइबर सुरक्षा मैकेनिज़्म
शामिल हैं।
4. भू-राजनीति: भारत को ‘पुल’ के रूप में देखना
पुतिन की भारत यात्रा ऐसे समय हुई जब—
- अमेरिका और रूस के संबंध ऐतिहासिक निम्न स्तर पर हैं
- रूस की चीन पर निर्भरता बढ़ रही है
- भारत ‘ग्लोबल साउथ’ का नेतृत्व कर रहा है
पुतिन की भारत यात्रा चीन पर रूस के अत्यधिक झुकाव को संतुलित करने का प्रयास भी मानी जा रही है।
कठिनाइयाँ और सीमाएँ: क्या चीज़ें ‘बड़ी पुनर्रचना’ को रोकती हैं?
1. अमेरिकी दबाव और आर्थिक दाँव
भारत–अमेरिका व्यापार $200+ बिलियन के करीब है—रूस की तुलना में कई गुना अधिक।
CAATSA, नए ऊर्जा प्रतिबंध, और ट्रम्प प्रशासन की टैरिफ नीतियाँ भारत के लिए एक तंग रस्सी पर चलने जैसी स्थिति बनाती हैं।
2. रूस–चीन ‘नो-लिमिट्स पार्टनरशिप’
भारत के लिए यह सबसे बड़ा सामरिक जोखिम है।
जो भी तकनीक भारत लेता है, उसके चीन तक पहुँचने का डर हमेशा रहता है।
3. भुगतान संकट और लॉजिस्टिक्स चुनौतियाँ
SWIFT प्रतिबंधों के कारण भुगतान तंत्र अभी भी अस्थिर है।
भारत का निर्यात बढ़ने की गति धीमी है।
4. भारत का हथियार स्रोतों का विविधीकरण
अब भारत अमेरिका, फ्रांस, इज़राइल और घरेलू उत्पादन की ओर तेजी से बढ़ रहा है।
यह ट्रेंड रूस पर 'निर्भरता' को कम कर रहा है—और यह मॉस्को जानता है।
इसलिए, परिवर्तन संभव है—परंतु सीमाओं के भीतर।
निष्कर्ष: सतत विकास, न कि क्रांतिकारी बदलाव
समग्र मूल्यांकन यही संकेत देता है कि पुतिन की दिसंबर 2025 की भारत यात्रा—
- संबंधों को गहरा करेगी,
- विश्वास को पुनर्स्थापित करेगी,
- ऊर्जा और रक्षा सहयोग को मजबूत करेगी,
- परंतु भारत–रूस संबंधों का पूरा ढांचा नहीं बदलने वाली।
यह एक "प्राकृतिक विकास" है—भारत की बहुध्रुवीय विदेश नीति और रूस की एशिया-उन्मुख रणनीति दोनों के अनुरूप।
भारत न तो अमेरिका को छोड़ सकता है, न रूस को।
रूस न तो चीन से अलग हो सकता है, न भारत को नजरअंदाज कर सकता है।
दोनों देश रणनीतिक स्वायत्तता और व्यावहारिक सहयोग के सूत्र पर आगे बढ़ रहे हैं।
अंततः, यह यात्रा दुनिया को बताती है कि—
भारत–रूस संबंध किसी एक घटना या दबाव के अधीन नहीं, बल्कि दीर्घकालिक भू-राजनीतिक स्वार्थों, ऐतिहासिक भरोसे और मजबूत नेतृत्वीय केमिस्ट्री पर आधारित हैं।
बहुध्रुवीय विश्व में, जहां नीतियाँ दोस्ती नहीं बल्कि हितों द्वारा संचालित होती हैं, यह साझेदारी आने वाले वर्षों में "धीरे-धीरे लेकिन दृढ़ता से" आगे बढ़ने वाली है—और यही इसकी वास्तविक शक्ति है।
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