संचार साधी ऐप: सुरक्षा कवच या गोपनीयता पर चोट? विवाद की गहराई से पड़ताल
परिचय
डिजिटल तकनीक के इस दौर में स्मार्टफोन केवल एक गैजेट नहीं, बल्कि हमारी व्यक्तिगत दुनिया का विस्तार बन चुके हैं—चाहे वह संचार हो, बैंकिंग, पहचान या रोज़मर्रा के कामकाज। इसी वास्तविकता को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने नागरिक सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से ‘संचार साधी’ ऐप प्रस्तुत किया था। यह ऐप मोबाइल-संबंधित धोखाधड़ी, अवैध मोबाइल कनेक्शनों और चोरी हुए फोनों की पहचान जैसी समस्याओं से निपटने के लिए विकसित किया गया था।
हालांकि, नवंबर 2025 में स्थिति बदल गई, जब दूरसंचार विभाग (DoT) ने सभी मोबाइल निर्माताओं को निर्देश दिया कि वे अपने नए फोनों में इस ऐप को प्री-इंस्टॉल करें। इसके बाद से विवादों की झड़ी लग गई—राजनीतिक दल, साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ और गोपनीयता अधिकार कार्यकर्ता इसे नागरिक स्वतंत्रता पर संभावित हमला मान रहे हैं। वहीं सरकार इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और साइबर सुरक्षा के लिए अत्यावश्यक कदम बता रही है।
यह लेख इसी बहस का संतुलित और व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
संचार साधी ऐप: उद्देश्य और कामकाज
संचार साधी, जिसे 2023 में लॉन्च किया गया, सरकार के अनुसार एक “नागरिक सुरक्षा प्लेटफॉर्म” है। इसका मकसद टेलीकॉम संसाधनों के दुरुपयोग से निपटना और मोबाइल धोखाधड़ी को कम करना है।
ऐप की प्रमुख विशेषताएँ
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आईएमईआई नंबर सत्यापन
यह ऐप मोबाइल फोन के आईएमईआई नंबर की जांच कर उसके असली या नकली होने की पहचान कर सकता है। -
खोए/चोरी फोन का ब्लॉक और ट्रैकिंग
उपयोगकर्ता फोन खोने पर ऐप से तुरंत रिपोर्ट कर सकते हैं, जिसके आधार पर फोन को नेटवर्क स्तर पर ब्लॉक किया जा सकता है।- 42 लाख से ज्यादा फोन ब्लॉक
- 26 लाख से ज्यादा फोन ट्रेस
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धोखाधड़ी की तुरंत रिपोर्टिंग (चक्षु फीचर)
संदिग्ध कॉल, एसएमएस या व्हाट्सऐप संदेश को चिह्नित करना आसान। विशेषतः अंतरराष्ट्रीय नंबरों को भारतीय नंबर के रूप में स्पूफ करने वाले फ्रॉड रोकने में उपयोगी। -
अपने नाम पर जारी सभी मोबाइल कनेक्शनों की सूची
इससे फर्जी सिम कार्ड पहचान में बड़ी मदद मिलती है।- 2.75 करोड़ फर्जी कनेक्शन पहले ही बंद किए जा चुके हैं।
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विश्वसनीय सेवा प्रदाताओं की सूची और साइबर सुरक्षा जागरूकता
सरकार मानती है कि ऐप का प्री-इंस्टॉलेशन नागरिकों में जागरूकता बढ़ाएगा और मोबाइल धोखाधड़ी के खतरे को कम करेगा—खासकर तब जब 2024 में साइबर अपराधों से 22,800 करोड़ रुपये का नुकसान दर्ज किया गया था।
विवाद की शुरुआत: सरकारी आदेश और राजनीतिक प्रतिक्रिया
28 नवंबर 2025 को DoT का एक आदेश सामने आया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि:
- सभी नए स्मार्टफोनों में संचार साधी ऐप प्री-इंस्टॉल होगा,
- पुराने फोन (जो अभी सप्लाई चेन में हैं) में आगामी अपडेट के माध्यम से यह ऐप अनिवार्य रूप से आएगा,
- और ऐप को डिसेबल नहीं किया जा सकेगा।
यही पंक्ति विवाद की जड़ बनी।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
विपक्षी दलों ने इसे “स्नूपिंग ऐप”, “बिग ब्रदर निगरानी” और “निजता का उल्लंघन” बताया।
कांग्रेस नेताओं ने कहा कि यह नागरिकों के फोन को सरकार की निगाहों में बदलने जैसा है और यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है।
सरकार की दलील
केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इन आरोपों को खारिज किया और कहा:
- ऐप पूरी तरह वैकल्पिक है,
- उपयोगकर्ता इसे किसी अन्य ऐप की तरह डिलीट कर सकते हैं,
- और ऐप नागरिक की सहमति के बिना कोई डेटा नहीं लेता।
सरकार की ओर से यह भी कहा गया कि ऐप केवल रिपोर्ट-आधारित प्रणाली है, न कि निगरानी का उपकरण।
हालाँकि, रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, Apple और कुछ अन्य निर्माता आदेश का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि प्री-इंस्टॉलेशन और अनडिलीटेबल ऐप OS की संरचना में गहरे बदलाव मांगता है।
गोपनीयता को लेकर चिंताएँ: क्या खतरा वास्तविक है?
गोपनीयता विशेषज्ञों की चिंताएँ मुख्यतः निम्न बिंदुओं पर आधारित हैं:
1. सिस्टम-स्तरीय अनुमतियों का खतरा
यदि ऐप को डिफ़ॉल्ट सिस्टम ऐप बनाया जाता है, तो यह सैद्धांतिक रूप से उन क्षेत्रों तक पहुँच सकता है:
- कॉल लॉग
- डिवाइस स्टोरेज
- कैमरा/माइक
- नेटवर्क उपयोग डेटा
यही कारण है कि विशेषज्ञ इसे संभावित “स्नूपिंग गेटवे” मानते हैं।
2. पारदर्शिता की कमी
ऐप बंद-स्रोत है—अर्थात इसके कोड की सार्वजनिक समीक्षा संभव नहीं।
गोपनीयता नीति में भी:
- डेटा रिटेंशन अवधि अस्पष्ट है,
- डेटा हटाने का विकल्प नहीं है,
- ऑप्ट-आउट की स्पष्ट प्रक्रिया नहीं।
3. संदिग्ध मिसालें
पहले भी सरकारी एजेंसियों पर निगरानी के आरोप लगे हैं—जैसे पेगासस विवाद या भीमा कोरेगाँव मामले में डिजिटल सबूतों से छेड़छाड़ के आरोप।
इस पृष्ठभूमि से संदेह स्वाभाविक है।
क्या संचार साधी ऐप को डिलीट किया जा सकता है?
सरकार के अनुसार — हाँ, ऐप को डिलीट किया जा सकता है।
- यह प्री-इंस्टॉल होने का अर्थ “अनिवार्य उपयोग” नहीं है।
- यदि उपयोगकर्ता रजिस्टर नहीं करते, तो ऐप निष्क्रिय रहता है।
हालाँकि, विवाद इसलिए है कि शुरुआती निर्देश में ऐप को “नॉन-डिसेबल” बताने का प्रावधान मौजूद था।
इसके बाद सरकार ने स्पष्टीकरण जारी किया कि:
- “गैर-डिसेबल” शब्द का अर्थ था कि निर्माता इसे हटाकर सहयोग न करें,
- लेकिन उपयोगकर्ता इसे हटाने के लिए स्वतंत्र होंगे।
तकनीकी और कानूनी अस्पष्टता ही इस विवाद को बढ़ा रही है।
निष्कर्ष: सुरक्षा और निजता के बीच संतुलन की चुनौती
संचार साधी ऐप को लेकर विवाद केवल एक टेक्निकल विषय नहीं—यह आधुनिक भारत की डिजिटल नीति के केंद्र में खड़ा प्रश्न है।
- एक ओर देश में साइबर अपराध बढ़ रहे हैं, जिससे सुरक्षा उपाय अनिवार्य हो जाते हैं।
- दूसरी ओर गोपनीयता एक मौलिक अधिकार है, जैसा कि के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2017) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा।
सवाल यह नहीं है कि सुरक्षा की आवश्यकता है या नहीं—सवाल है कि सुरक्षा किस कीमत पर?
यदि किसी सुरक्षा उपाय में पारदर्शिता, सहमति और जवाबदेही का अभाव है, तो वह नागरिक अधिकारों को प्रभावित कर सकता है।
अतः समाधान संभवतः दो राहों के बीच है:
- साइबर सुरक्षा को मजबूत करना,
- और निजता की रक्षा को प्राथमिकता देना।
जब तक ऐप के डेटा संग्रह, इसकी अनुमतियों, और इसके सोर्स कोड की पारदर्शिता को लेकर स्पष्ट और विश्वसनीय तंत्र नहीं बनता, तब तक यह विवाद यूँ ही जारी रहने वाला है।
संदर्भ: दूरसंचार विभाग के आंकड़े, रॉयटर्स और टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्टें, 2025।
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