भारतीय रिज़र्व बैंक का नया मौद्रिक मोड़: रेपो दर 5.25% — विकास की बदलती लय का संकेत
— एक अवधारणात्मक व UPSC उन्मुख विश्लेषण
प्रस्तावना: जब अर्थव्यवस्था संतुलन की दुर्लभ अवस्था में हो
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने दिसंबर 2025 की मौद्रिक नीति बैठक में रेपो दर को 25 आधार अंकों की कटौती कर 5.25% पर ला दिया। पहली नज़र में यह केवल एक तकनीकी परिवर्तन लगता है, पर वास्तव में यह भारत की आर्थिक दिशा में एक गहरे बदलाव का संकेत है।
मुद्रास्फीति दो दशक के निम्न स्तरों के करीब है, आर्थिक विकास 7% से ऊपर टिके रहने के संकेत दे रहा है, और वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद घरेलू मांग मजबूत बनी हुई है। RBI गवर्नर संजय मालवीय ने इसे भारत का “गोल्डीलॉक्स क्षण” कहा—एक ऐसा समय जहाँ अर्थव्यवस्था तेज़ चल रही है, और तापमान यानी महँगाई नियंत्रित है।
UPSC के नज़रिए से यह वह क्षण है जब मौद्रिक नीति केवल प्रतिक्रियात्मक न रहकर रणनीतिक हो जाती है।
1. निर्णय की पृष्ठभूमि: संख्याएँ जो कहानी कहती हैं
मुद्रास्फीति का 0.25% तक गिर जाना केवल एक आँकड़ा नहीं, बल्कि यह बताता है कि खाद्य आपूर्ति बेहतर रही, वैश्विक तेल कीमतें स्थिर रहीं, और घरेलू लागत कारक नियंत्रित रहे। खरीफ़ उत्पादन मजबूत रहा, रबी बोआई में सुधार हुआ, और कोर-इन्फ्लेशन लगभग 2.5–2.6% के आरामदायक दायरे में रहा।
साथ ही, Q2 FY26 में भारत की GDP वृद्धि 8.2% तक पहुँच गई—यह दर्शाता है कि मांग, निवेश और सेवाओं के क्षेत्र में एक साथ गति बनी हुई है।
ऐसे परिदृश्य में, दर कटौती आर्थिक संतुलन को भंग करने वाला निर्णय नहीं, बल्कि विकास की गति को स्थायी बनाने वाला कदम है।
2. मौद्रिक नीति का सिद्धांत और भारत की व्यावहारिकता
RBI टेलर रूल जैसी सैद्धांतिक रूपरेखाओं का यांत्रिक पालन नहीं करता, पर निर्णय लेने की प्रक्रिया अक्सर उन्हीं सिद्धांतों की ओर झुकती है—
मुद्रास्फीति लक्ष्य से नीचे हो, और उत्पादन क्षमता के करीब हो — तो ब्याज दर में नरमी स्वाभाविक है।
भारतीय अनुभव यह भी दिखाता है कि फिलिप्स कर्व का क्लासिक संबंध—रोज़गार और मुद्रास्फीति का—धीरे-धीरे कमजोर हुआ है। भारत में महँगाई पर अधिक प्रभाव आपूर्ति पक्ष, जलवायु, और वैश्विक परिस्थितियों का रहता है।
इसलिए यह कटौती किसी संकट की प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक पूर्व-निवारक नीति, जो संभावित वैश्विक मंदी से घरेलू अर्थव्यवस्था को सुरक्षा कवच देती है।
3. दर कटौती से अर्थव्यवस्था में पैदा होने वाले नए संकेत
(a) आम परिवारों की जेब में राहत
फ्लोटिंग रेट ऋणों की उच्च हिस्सेदारी का अर्थ है कि EMI में कमी तुरंत दिखाई देगी।
यह राहत विशेष रूप से शहरी मध्यवर्गीय परिवारों की खपत को बढ़ाती है—जो GDP का लगभग 60% हिस्सा है।
(b) रियल एस्टेट, ऑटो और निर्माण क्षेत्रों को गति
सस्ती ब्याज दरें रियल एस्टेट बिक्री बढ़ाती हैं, और उसके साथ स्टील, सीमेंट और निर्माण सामग्री उद्योगों में अतिरिक्त मांग पैदा करती हैं। ऑटोमोबाइल सेक्टर, जो भारत की निर्माण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, ब्याज दरों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है—इसलिए यहाँ भी तेज़ी की संभावना है।
(c) MSME और कॉर्पोरेट निवेश का पुनरुत्थान
यह वह क्षेत्र है जहाँ ब्याज दरों का असर सबसे निर्णायक होता है। पहले से ही बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था, ई-कॉमर्स आपूर्ति शृंखलाओं और निर्यात-उन्मुख छोटे उद्यमों को यह कटौती नए निवेश के लिए प्रेरित करेगी।
(d) बैंकिंग प्रणाली के लिए मिश्रित तस्वीर
कर्ज की बढ़ती मांग एक सकारात्मक संकेत है, पर जमा दरों में गिरावट और NIM पर दबाव बैंकों को चुनौती भी दे सकता है।
फिर भी, खुदरा ऋण की अपेक्षाकृत सुरक्षित प्रकृति प्रणाली को स्थिर बनाए रखेगी।
4. क्या भारत एक नए “विकास दशक” में प्रवेश कर चुका है?
यह प्रश्न अब गंभीरता से पूछा जाने लगा है, क्योंकि कई संरचनात्मक प्रवृत्तियाँ एक साथ सकारात्मक दिख रही हैं—
- GST संग्रह लगातार उच्च
- कॉर्पोरेट लाभ 14 साल के उच्चतम स्तर पर
- विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत, रूपया स्थिर
- सेमीकंडक्टर, नवीकरणीय ऊर्जा और रक्षा विनिर्माण में बढ़ता निवेश
- डिजिटल भुगतान और औपचारिककरण से कर आधार में वृद्धि
इन परिस्थितियों में RBI का यह निर्णय केवल तत्कालिक राहत नहीं, बल्कि भारत की दीर्घकालिक विकास कथा का हिस्सा बनता है।
5. संभावित जोखिम: नीति के लिए आवश्यक सावधानियाँ
(a) खाद्य महँगाई का अनिश्चित जोखिम
जलवायु परिवर्तन किसी भी समय मौजूदा मुद्रास्फीति अनुमान को अप्रासंगिक बना सकता है।
(b) बाहरी झटके
भू-राजनीतिक तनाव, वैश्विक मंदी और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में धीमापन भारत के निर्यात और पूँजी प्रवाह पर दबाव डाल सकते हैं।
(c) बैंकिंग सेक्टर के मार्जिन में संकुचन
NIM पर बढ़ता दबाव बैंकों की दीर्घकालिक लाभप्रदता के लिए चुनौती बन सकता है।
(d) राजकोषीय–मौद्रिक संतुलन
सरकारी व्यय के धीरे-धीरे सामान्य होने के साथ, निवेश चक्र को बनाए रखने में मौद्रिक नीति की भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाती है।
6. UPSC के लिए प्रमुख सीख
GS-3 (Indian Economy)
- भारत की मौद्रिक नीति की “ग्रोथ-सपोर्टिव” प्रकृति
- मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारण की विश्वसनीयता
- ब्याज दरों के व्यापक प्रभाव—घरेलू खपत, निवेश और बाजार व्यवहार पर विश्लेषण
GS-2 (Governance & Policy Coordination)
- RBI–सरकार समन्वय की भूमिका
- बाहरी स्थिरता और नीति निर्माताओं की विश्वसनीयता
Essay Themes
- “Balancing Growth and Stability in a Changing Global Economy”
- “India’s Goldilocks Moment: A Policy Perspective”
समापन: भारत के अगले कदम
RBI की यह दर कटौती केवल मौद्रिक ढील नहीं—यह भारत की आर्थिक आत्मविश्वास की अभिव्यक्ति है।
विकास और स्थिरता के इस संयोजन ने नीति निर्माताओं को वह अवसर दिया है, जिसकी तलाश दशकों से की जा रही थी।
चुनौतियाँ मौजूद हैं—जलवायु से लेकर वैश्विक अस्थिरता तक—पर भारत अब ऐसी स्थिति में है जहाँ विकास की गति, व्यापक आर्थिक संतुलन और संरचनात्मक परिवर्तन एक-दूसरे को मजबूत कर रहे हैं।
यदि आने वाले वर्षों में यह लय बनी रही, तो यह अवधि सचमुच भारत के विकास दशक के रूप में दर्ज हो सकती है।
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