US Peace Initiative and the Ukraine Crisis: Strategic Faultlines, Diplomacy, and Global Security Implications
अमेरिकी शांति प्रस्ताव और यूक्रेन संकट : एक UPSC-उन्मुख विश्लेषण
परिचय
नवंबर 2025 के अंतिम सप्ताह में अंतरराष्ट्रीय राजनीति ने एक निर्णायक मोड़ लिया, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन ने रूस–यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने हेतु 28-सूत्रीय शांति प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इस प्रस्ताव को स्वीकार न करने की स्थिति में 27 नवंबर 2025 के बाद अमेरिका द्वारा यूक्रेन को दी जाने वाली सैन्य एवं आर्थिक सहायता समाप्त करने की चेतावनी भी दे दी गई। रिपोर्टों के अनुसार यह ड्राफ्ट यूक्रेन की सामरिक स्वायत्तता, क्षेत्रीय अखंडता तथा सुरक्षा ढाँचे पर व्यापक प्रभाव डालने वाला है।
यह प्रस्ताव वाशिंगटन पोस्ट, रॉयटर्स सहित कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों द्वारा प्रकाशित दस्तावेजों पर आधारित है और वैश्विक भू-राजनीति में एक नई बहस को जन्म देता है—क्या यह शांति की दिशा में कदम है या शक्ति-संतुलन की पुनर्संरचना?
प्रस्ताव की प्रमुख शर्तें
अमेरिकी विशेष दूत स्टीव विटकॉफ और रूसी प्रतिनिधि किरिल दमित्रियेव द्वारा तैयार किए गए इस 28-सूत्रीय प्रस्ताव के मुख्य बिंदु निम्नलिखित माने जा रहे हैं–
- भू-क्षेत्रीय रियायतें: यूक्रेन को डोनबास के अतिरिक्त ज़ापोरिज्जिया व खेरसॉन के कई क्षेत्रों को स्थायी रूप से रूस को सौंपना होगा।
- सैन्य शक्ति में कटौती: यूक्रेनी सेना के आकार में लगभग 60–70% कमी तथा भारी हथियारों पर कठोर सीमा तय करना।
- तटस्थता एवं नाटो परित्याग: यूक्रेन को नाटो सदस्यता की आकांक्षा औपचारिक रूप से त्यागकर स्थायी तटस्थता स्वीकार करनी होगी।
- क्रीमिया व युद्धोत्तर कब्जों को मान्यता: क्रीमिया तथा 2022 के बाद रूस द्वारा कब्जाए गए क्षेत्रों पर रूसी नियंत्रण की अंतरराष्ट्रीय मान्यता।
- पुनर्निर्माण का दायित्व: युद्धोत्तर पुनर्निर्माण हेतु लागत अमेरिका व यूरोपीय देशों द्वारा वहन की जाएगी, पर रूस पर कोई क्षतिपूर्ति दायित्व नहीं होगा।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ
यूक्रेन
कीव प्रशासन ने इस प्रस्ताव को “पूर्ण आत्मसमर्पण” की श्रेणी में रखा है। संसद और समाज दोनों के स्तर पर इसे चार वर्षों के प्रतिरोध और बलिदान के अपमान के रूप में देखा जा रहा है।
यूरोपीय संघ
जर्मनी, फ्रांस, पोलैंड सहित कई यूरोपीय देशों ने इस प्रस्ताव को रूस को “पुरस्कृत करने” जैसा बताया है। जेनेवा की त्रिपक्षीय वार्ता में यूरोपीय प्रतिनिधियों ने अमेरिका से आक्रामक शक्ति पर अंकुश लगाने की आवश्यकता दोहराई।
अमेरिका के भीतर
अमेरिकी राजनीति दो ध्रुवों में बँटी दिखाई देती है—
- कुछ रिपब्लिकन नेताओं (जैसे लिंडसे ग्राहम, मिच मैककोनेल) ने इसे “अमेरिका की विश्वसनीयता पर आघात” बताया।
- जबकि ट्रम्प समर्थक धड़े इसे अमेरिकी करदाताओं के धन की सुरक्षा और “अमेरिका फर्स्ट” नीति का अनिवार्य विस्तार मानते हैं।
विश्लेषण
1. युद्धक्षेत्र की वास्तविकता
2025 के अंत तक रूस द्वारा यूक्रेन के लगभग 19–20% क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित किया जा चुका है। यूक्रेनी सेनाएँ थकान, मानव संसाधन कमी और हथियारों की बढ़ती दुर्लभता से जूझ रही हैं। अमेरिकी सहायता समाप्त होने पर यूक्रेन की प्रतिरोध क्षमता कुछ महीनों में गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है। इस पृष्ठभूमि में ट्रम्प प्रशासन का मूल्यांकन यह है कि “युद्ध में निर्णायक विजय अब संभव नहीं”।
2. ट्रम्प की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति की पुनर्स्थापना
ट्रम्प का दूसरा कार्यकाल प्रारंभ होते ही विदेशी संघर्षों में अमेरिकी संसाधनों की भागीदारी को कम करने की रणनीति स्पष्ट दिखने लगी थी। यह प्रस्ताव उसी चुनावी वादे का विस्तार है जिसमें कहा गया था कि अमेरिकी धन “अनावश्यक विदेशी युद्धों” पर व्यय नहीं किया जाएगा।
3. रूस की कूटनीतिक बढ़त
यदि यह मसौदा स्वीकार होता है, तो रूस बिना किसी अतिरिक्त सैन्य कार्रवाई के अपने प्रमुख उद्देश्यों—
- नाटो विस्तार को रोकना,
- यूक्रेन की तटस्थ स्थिति सुनिश्चित करना,
- और महत्वपूर्ण क्षेत्रीय लाभ सुरक्षित करना—
प्राप्त कर लेगा। यह पुतिन के लिए निःसंदेह एक ऐतिहासिक सामरिक उपलब्धि होगी।
निष्कर्ष
ट्रम्प प्रशासन की यह “अल्टीमेटम-आधारित कूटनीति” शीतयुद्ध के बाद की विश्व व्यवस्था को पुनः ‘स्फीयर ऑफ इन्फ्लुएंस’ की ओर मोड़ती दिखाई देती है। यूक्रेन के सामने दुविधा अत्यंत जटिल है—
- प्रस्ताव स्वीकार कर वह अपने चार वर्षों के संघर्ष को अप्रभावी बना देगा,
- जबकि अस्वीकार करने की स्थिति में वह अमेरिकी सहायता से वंचित होकर रूस के विरुद्ध लगभग अकेला पड़ जाएगा।
दूसरी ओर, यूरोपीय देशों पर यूक्रेन को स्वतंत्र रूप से सैन्य-आर्थिक सहयोग देने का दबाव बढ़ रहा है, पर उनकी क्षमताएँ और राजनीतिक इच्छाशक्ति सीमित हैं।
अंततः यह प्रकरण यह स्पष्ट करता है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नैतिकता की तुलना में शक्ति-समीकरण और राष्ट्रीय हित ही निर्णायक कारक बने रहते हैं। यूक्रेन संकट आज “न्याय” और “अन्याय” से आगे बढ़कर “सामर्थ्य” और “संभावना” का प्रश्न बन चुका है—और यही वास्तविकता आधुनिक भू-राजनीति का मूल चरित्र भी दर्शाती है।
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