Trump’s Nigeria Directive: How Faith, Power, and Foreign Policy Collide in America’s New Africa Strategy (2025)
अमेरिकी विदेश नीति में नया मोड़: नाइजीरिया पर राष्ट्रपति ट्रम्प के सैन्य व सहायता निर्देशों का विश्लेषण
परिचय
1 नवंबर 2025 को, फ्लोरिडा के पाम बीच से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड जे. ट्रम्प ने यह घोषणा करके अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचा दी कि उन्होंने रक्षा विभाग को नाइजीरिया में संभावित सैन्य कार्रवाई की तैयारी करने का निर्देश दिया है। ट्रम्प ने आरोप लगाया कि नाइजीरियाई सरकार देश में ईसाइयों पर बढ़ते अत्याचारों को रोकने में विफल रही है, और इसी कारण उन्होंने नाइजीरिया को दी जा रही समस्त अमेरिकी सहायता पर तत्काल रोक लगाने का निर्णय लिया है। यह घोषणा केवल एक भू-राजनीतिक बयान नहीं थी, बल्कि अमेरिकी विदेश नीति में धार्मिक नैरेटिव की पुनर्स्थापना का संकेत थी।
यह लेख ट्रम्प के इस निर्णय का विश्लेषण तीन प्रमुख दृष्टिकोणों से करता है—नाइजीरिया में धार्मिक उत्पीड़न की पृष्ठभूमि, अमेरिकी हस्तक्षेप के सैद्धांतिक व कानूनी निहितार्थ, और इन नीतिगत परिवर्तनों के संभावित परिणाम। विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि यह कदम जहाँ घरेलू राजनीतिक आधार को सशक्त करने की कोशिश है, वहीं यह पश्चिम अफ्रीका के पहले से ही अस्थिर क्षेत्र को और जटिल बना सकता है।
नाइजीरिया में धार्मिक उत्पीड़न: ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भ
नाइजीरिया अफ्रीका की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला राष्ट्र है—जहाँ उत्तर प्रांतों में मुस्लिम बहुलता और दक्षिण में ईसाई समुदाय का वर्चस्व है। यह धार्मिक विभाजन दशकों से हिंसक संघर्षों की जड़ रहा है। 2009 के बाद से बोको हराम और इस्लामिक स्टेट इन वेस्ट अफ्रीका प्रॉविंस (ISWAP) जैसे उग्रवादी संगठनों के उभार ने स्थिति को और भयावह बना दिया। काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस (CFR, 2023) के अनुसार, पिछले डेढ़ दशक में 35,000 से अधिक लोग इन संघर्षों में मारे जा चुके हैं।
ओपन डोर्स यूएसए की वर्ल्ड वॉच लिस्ट 2025 नाइजीरिया को ईसाई उत्पीड़न के लिए विश्व में नौवें स्थान पर रखती है। 2024 में 5,000 से अधिक ईसाइयों की धार्मिक आधार पर हत्या दर्ज की गई। हालांकि, इस हिंसा की जड़ केवल धार्मिक असहिष्णुता नहीं है। जलवायु परिवर्तन, चरागाह भूमि की कमी, और आर्थिक विषमता ने भी इन संघर्षों को भड़काया है।
नाइजीरियाई सरकार, विशेष रूप से राष्ट्रपति बोला टिनुबू का प्रशासन, बार-बार यह तर्क देता रहा है कि हिंसा केवल धार्मिक नहीं बल्कि संसाधन-संघर्ष की परिणति है। वहीं, अमेरिकी और यूरोपीय संगठनों का मानना है कि अबुजा शासन ईसाई अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के प्रति उदासीन रहा है। यह वैचारिक मतभेद ही ट्रम्प की ‘धार्मिक प्रेरित’ विदेश नीति के लिए आधार बना।
ट्रम्प की घोषणा अमेरिकी रूढ़िवादी मीडिया और उनके घरेलू इवेंजेलिकल आधार के लिए अनुकूल प्रतीक थी। यह वही विचारधारा है जिसने 2019 में ट्रम्प द्वारा नाइजीरिया को $300 मिलियन की सहायता रोकने के निर्णय का स्वागत किया था। परंतु ACLED (2025) के आंकड़े बताते हैं कि 2024 में नाइजीरिया में कुल हिंसा का 62% हिस्सा मुस्लिम समूहों के बीच का था। यानी, केवल ‘ईसाई उत्पीड़न’ के दृष्टिकोण से देखना वास्तविक परिदृश्य को सरल बना देता है।
अमेरिकी हस्तक्षेप के सैद्धांतिक और कानूनी निहितार्थ
अंतरराष्ट्रीय संबंधों के यथार्थवादी दृष्टिकोण से देखें तो ट्रम्प का कदम शक्ति-राजनीति की परंपरागत परिभाषा का उदाहरण है—जहाँ राज्य अपने घरेलू हितों और वैचारिक मताधार पर आधारित निर्णय लेता है। अमेरिका के लिए यह कदम न केवल मानवीय चिंता का विषय है, बल्कि चीन के बढ़ते अफ्रीकी प्रभाव को संतुलित करने का भी प्रयास है। जॉन्स हॉपकिन्स SAIS चाइना-अफ्रीका रिसर्च इनिशिएटिव (2025) के अनुसार, चीन ने 2024 तक नाइजीरिया में $4.5 बिलियन के निवेश किए हैं। ऐसे में ट्रम्प की नीति भू-आर्थिक प्रतिस्पर्धा का भी विस्तार मानी जा सकती है।
किंतु उदार संस्थावाद के समर्थक इस निर्णय को एकतरफा और खतरनाक मानते हैं। संयुक्त राष्ट्र, अफ्रीकी संघ और ECOWAS जैसे क्षेत्रीय मंचों को दरकिनार करके अमेरिका सामूहिक सुरक्षा की उस भावना को कमजोर करता है जो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद निर्मित हुई थी। यह कदम न केवल नाइजीरिया की संप्रभुता का उल्लंघन है, बल्कि वैश्विक दक्षिण में अमेरिकी विश्वसनीयता को भी चोट पहुँचा सकता है।
कानूनी दृष्टि से भी यह निर्णय विवादास्पद है। अमेरिकी संविधान के अनुच्छेद I, धारा 8 के तहत युद्ध की शक्ति कांग्रेस के पास है। राष्ट्रपति सीमित सैन्य कार्रवाइयों के लिए War Powers Resolution (1973) का सहारा लेते रहे हैं, लेकिन नाइजीरिया के मामले में ऐसा कोई औपचारिक प्राधिकरण (AUMF) प्राप्त नहीं किया गया है। यह 2021 के Kucinich v. Obama (Libya) जैसी संवैधानिक चुनौतियों को दोहरा सकता है।
साथ ही, सहायता निलंबन भी कानूनी दृष्टि से संदिग्ध है। Foreign Assistance Act (1961) के अनुसार, व्यापक सहायता कटौती से पहले कांग्रेस की स्वीकृति आवश्यक है। नाइजीरिया हर वर्ष अमेरिका से लगभग $500 मिलियन सहायता प्राप्त करता है, जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा और आतंकवाद-निरोध कार्यक्रम शामिल हैं। इस सहायता का रुकना केवल सरकार को नहीं, बल्कि उन गरीब समुदायों को प्रभावित करेगा जो पहले ही गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं। विश्व बैंक (2025) के अनुसार, नाइजीरिया की 40% जनसंख्या गरीबी में है; ऐसे में यह निर्णय मानवीय संकट को और गहरा सकता है।
संभावित परिणाम और नीतिगत दिशा
ट्रम्प की रणनीति का उद्देश्य नाइजीरियाई सरकार पर दबाव बनाना हो सकता है कि वह ईसाई समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। लेकिन इतिहास बताता है कि इस तरह की बाहरी दबाव नीति अक्सर उल्टा प्रभाव डालती है। 1980 के दशक में रीगन द्वारा अफगान मुजाहिदीन को समर्थन देने के परिणामस्वरूप जो स्थिति उत्पन्न हुई, वह दशकों तक वैश्विक अस्थिरता का कारण बनी।
यदि अमेरिका नाइजीरिया में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सैन्य हस्तक्षेप करता है, तो यह बोको हराम जैसे संगठनों को अमेरिकी-विरोधी नैरेटिव के तहत और सशक्त कर सकता है। इसके अलावा, नाइजीरिया को अलग-थलग करने से रूस और चीन जैसे देशों को रणनीतिक अवसर मिल सकता है। रूस की वाग्नर ग्रुप (अब अफ्रीका कॉर्प्स) पहले ही साहेल क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ा रही है, और नाइजीरिया में अमेरिकी हस्तक्षेप उस प्रभाव को और फैलाने का अवसर देगा।
इस परिप्रेक्ष्य में, अधिक विवेकपूर्ण नीति यह होगी कि अमेरिका सहायता को पूरी तरह बंद करने के बजाय “शर्तबद्ध पुनर्स्थापना” की नीति अपनाए। स्वतंत्र निगरानी आयोगों द्वारा सुधारों का सत्यापन कर सहायता बहाल की जा सकती है। साथ ही, संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों के साथ समन्वय बढ़ाना और World Vision जैसे विश्वास-आधारित संगठनों के माध्यम से स्थानीय समुदायों के बीच संवाद स्थापित करना, हिंसा की जड़ों को संबोधित करने का स्थायी मार्ग होगा।
निष्कर्ष
राष्ट्रपति ट्रम्प के नवंबर 2025 के नाइजीरिया निर्देश अमेरिकी विदेश नीति में एक निर्णायक मोड़ हैं—जहाँ धार्मिक भावनाएँ, घरेलू राजनीति और अंतरराष्ट्रीय यथार्थवाद एक जटिल गठजोड़ बनाते हैं। यह निर्णय भले ही अमेरिकी ईसाई मतदाताओं के लिए एक सशक्त प्रतीक हो, किंतु यह पश्चिम अफ्रीका में स्थिरता और मानवीय संतुलन के लिए गंभीर चुनौती भी प्रस्तुत करता है।
अमेरिकी राजनीतिक विचारक जोसेफ नये (2004) के अनुसार, “सच्ची शक्ति बल प्रयोग में नहीं, बल्कि आकर्षण और नैतिक विश्वसनीयता में निहित होती है।” अतः यदि अमेरिका वास्तव में धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करना चाहता है, तो उसे हथियारों से नहीं, बल्कि संवाद, सहयोग और बहुपक्षीय कूटनीति से अपनी प्रतिबद्धता साबित करनी होगी। नाइजीरिया जैसे जटिल समाज में स्थायी शांति केवल तभी संभव है जब नीतियाँ स्थानीय वास्तविकताओं और वैश्विक जिम्मेदारियों दोनों का सम्मान करें।
संदर्भ
- Armed Conflict Location & Event Data Project (ACLED). (2025). Nigeria Conflict Watchlist 2025.
- Council on Foreign Relations. (2023). Nigeria Security Tracker.
- Johns Hopkins SAIS China-Africa Research Initiative. (2025). China-Africa Trade and Investment Data.
- Mearsheimer, J. J. (2014). The Tragedy of Great Power Politics. W.W. Norton.
- Nye, J. S. (2004). Soft Power: The Means to Success in World Politics. PublicAffairs.
- Open Doors USA. (2025). World Watch List 2025.
- U.S. Commission on International Religious Freedom. (2024). Annual Report.
- The Washington Post. (2025, November 1). “Trump orders Nigeria strike preparations over Christian persecution.”
- World Bank. (2025). Nigeria Poverty Assessment.
Note: यह लेख UPSC GS Paper-II (International Relations) और निबंध दोनों के लिए उपयुक्त है।
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