🌎 विश्व सरकार बनाम ट्रम्प का अमेरिका: प्रोजेक्ट 2025 और नई विश्व व्यवस्था का विश्लेषण
🔹 सारांश
डोनाल्ड ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल (2025–2029) में अमेरिका की विदेश नीति ने वैश्विक शासन की अवधारणा को गहराई से चुनौती दी है। “अमेरिका फर्स्ट” सिद्धांत अब केवल एक चुनावी नारा नहीं रहा, बल्कि यह अमेरिका की वैचारिक दिशा बन गया है। ट्रम्प प्रशासन की Project 2025 नीति-रूपरेखा, संयुक्त राष्ट्र (UN), विश्व व्यापार संगठन (WTO) और अन्य बहुपक्षीय संस्थाओं के प्रति स्पष्ट असंतोष और दूरी को दर्शाती है। यह लेख तर्क देता है कि अमेरिका अब “विश्व सरकार” जैसी किसी सामूहिक व्यवस्था का नेतृत्व नहीं करना चाहता, बल्कि एक अमेरिका-केंद्रित वैश्विक शक्ति-संतुलन स्थापित करने का प्रयास कर रहा है — जो न केवल बहुध्रुवीय अराजकता को जन्म दे सकता है, बल्कि वैश्विक स्थिरता के लिए भी दीर्घकालिक खतरा बन सकता है।
🔹 परिचय
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने एक ऐसी विश्व व्यवस्था का निर्माण किया था जिसे अक्सर “लिबरल इंटरनेशनल ऑर्डर” कहा जाता है। इसका उद्देश्य था — वैश्विक शांति, मुक्त व्यापार, और लोकतांत्रिक शासन के लिए साझा नियम बनाना। संयुक्त राष्ट्र, IMF, और WTO जैसी संस्थाएं इस अमेरिकी दृष्टि का मूर्त रूप थीं।
परंतु 2017 में जब डोनाल्ड ट्रम्प पहली बार सत्ता में आए, तब उन्होंने इस व्यवस्था को “अमेरिकी हितों के विरुद्ध” बताया।
2025 में उनके पुनः चुने जाने के बाद यह नीति अधिक व्यवस्थित, आक्रामक और संस्थागत रूप धारण कर चुकी है।
Project 2025, जो Heritage Foundation जैसे दक्षिणपंथी थिंक टैंकों द्वारा तैयार की गई है, अमेरिकी कार्यपालिका और विदेश नीति को इस तरह पुनर्गठित करने का प्रस्ताव रखती है कि बहुपक्षीय प्रतिबद्धताओं की जगह “राष्ट्रीय स्वायत्तता” को प्राथमिकता दी जाए।
ट्रम्प का तर्क सरल है — “अमेरिका अब दुनिया का पुलिसकर्मी नहीं रहेगा।”
परंतु इस विचार का परिणाम एक ऐसी विश्व व्यवस्था के रूप में उभर रहा है जिसमें न नियम बचे हैं, न नेतृत्व।
🔹 अमेरिका फर्स्ट नीति: वैश्विक संस्थाओं से विमुखता
ट्रम्प प्रशासन की विदेश नीति का केंद्र यह विश्वास है कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं अमेरिकी संप्रभुता को कमजोर करती हैं।
इस दृष्टिकोण के तहत अमेरिका ने—
- संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों के लिए वित्तीय योगदान में कटौती,
- WHO और UNESCO से अस्थायी बहिष्कार,
- और WTO विवाद निपटान तंत्र को अकार्यशील बना देने जैसे कदम उठाए।
इन नीतियों का प्रभाव केवल संस्थागत नहीं बल्कि वैचारिक भी है।
“विश्व सरकार” या वैश्विक सहयोग की अवधारणा, जो 1945 के बाद से अंतरराष्ट्रीय राजनीति का मार्गदर्शक सिद्धांत थी, अब ट्रम्प के अमेरिका के लिए “राष्ट्रीय नियंत्रण के अवरोध” के रूप में देखी जा रही है।
🧩 Project 2025 का रणनीतिक तात्पर्य
यह नीति दस्तावेज़ स्पष्ट रूप से कहता है कि विदेश नीति का उद्देश्य “वैश्विक शांति” नहीं बल्कि “अमेरिका की प्रतिस्पर्धी श्रेष्ठता” होना चाहिए।
इसका अर्थ है —
- अंतरराष्ट्रीय समझौतों की समीक्षा,
- विदेशी सहायता को “विचारधारात्मक हथियार” के रूप में प्रयोग,
- और जलवायु परिवर्तन जैसे सामूहिक मुद्दों को राष्ट्रीय औद्योगिक नीति के दायरे में लाना।
इस प्रकार, अमेरिका अब वैश्विक नेतृत्व के बजाय रणनीतिक आत्मकेंद्रण की राह पर है।
🔹 वैश्विक शासन पर प्रभाव: विखंडन और अस्थिरता
ट्रम्प की नीतियां केवल अमेरिकी भूमिका को नहीं बदल रहीं, बल्कि पूरे वैश्विक ढांचे को पुनः परिभाषित कर रही हैं।
1. संस्थागत विघटन और वैकल्पिक गठबंधन
संयुक्त राष्ट्र की वित्तीय निर्भरता, WTO के नियमों की उपेक्षा, तथा NATO में अमेरिका की भागीदारी घटने से वैश्विक संस्थाएं कमजोर हुई हैं।
यूरोप अब सामरिक स्वायत्तता की बात कर रहा है, चीन और रूस अपने “ग्लोबल साउथ” नेटवर्क को मज़बूत कर रहे हैं, और भारत जैसे देश “रणनीतिक स्वायत्तता” की नीति पर और दृढ़ हो रहे हैं।
यह सब मिलकर एक बहुध्रुवीय यथार्थ का निर्माण कर रहे हैं, जिसमें किसी एक शक्ति का प्रभुत्व नहीं बल्कि “संतुलित प्रतिद्वंद्विता” है।
2. प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता की दौड़
ट्रम्प प्रशासन का AI Action Plan 2025 वैश्विक कृत्रिम बुद्धिमत्ता शासन के साझा ढांचे को अस्वीकार करता है।
जहाँ यूरोप और एशिया “AI Ethics Charter” जैसी व्यवस्थाएँ बनाने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं अमेरिका अपनी तकनीकी श्रेष्ठता को बनाए रखने के लिए AI हथियारों की दौड़ को प्रोत्साहित कर रहा है।
इससे तकनीकी सहयोग की जगह तकनीकी प्रतिस्पर्धा का युग आरंभ हो गया है।
3. जलवायु और मानवाधिकार विमर्श का संकुचन
ट्रम्प प्रशासन ने पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं को ‘राष्ट्रीय बोझ’ बताते हुए पीछे हटना शुरू कर दिया है।
इसके अलावा, मानवाधिकार और लोकतंत्र के मुद्दों पर अमेरिकी हस्तक्षेप घटा है — जिससे अधिनायकवादी शासन वाले देशों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर राहत मिली है।
इसका अर्थ है कि वैश्विक नैतिक व्यवस्था का नेतृत्व अब रिक्त होता जा रहा है।
🔹 ऐतिहासिक तुलनाएँ: साम्राज्यों के पतन से सीख
इतिहास बताता है कि जब भी कोई प्रमुख शक्ति “वैश्विक जिम्मेदारी” से पीछे हटती है, तो परिणाम अराजकता के रूप में सामने आते हैं।
रोमन साम्राज्य का विघटन, ब्रिटिश साम्राज्य का पतन, और अब अमेरिकी नेतृत्व की थकान — सभी में एक समान प्रवृत्ति दिखती है:
एक व्यवस्था का अंत और अनिश्चितता का उदय।
ट्रम्प की नीतियाँ यही संकेत दे रही हैं कि 1945 के बाद निर्मित लिबरल ऑर्डर अब अपने निर्णायक मोड़ पर है।
यदि अमेरिका इस व्यवस्था को पुनर्जीवित करने के बजाय उससे विमुख रहता है, तो आने वाले दशक में दुनिया “संस्थागत रिक्तता” (Institutional Vacuum) का सामना कर सकती है — जहाँ नियमों की जगह सौदे होंगे, और सहयोग की जगह प्रतिस्पर्धा।
🔹 संभावित परिदृश्य और वैश्विक निहितार्थ
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नए शक्ति ध्रुवों का उदय:
यूरोपीय संघ, भारत, चीन, और ASEAN जैसे क्षेत्रीय समूह वैश्विक संस्थागत संतुलन को पुनः निर्मित कर सकते हैं। -
भूराजनीतिक प्रतिस्पर्धा में वृद्धि:
रूस–चीन गठबंधन के मज़बूत होने से अमेरिका को सामरिक चुनौतियाँ मिलेंगी, जो वैश्विक संघर्षों की आवृत्ति बढ़ा सकती हैं। -
वैश्विक अर्थव्यवस्था का विखंडन:
“डॉलर प्रभुत्व” पर सवाल उठने लगे हैं। BRICS देशों द्वारा वैकल्पिक भुगतान प्रणाली की चर्चा इसका संकेत है। -
लोकतंत्र बनाम राष्ट्रवाद की नई लड़ाई:
अमेरिकी उदाहरण से प्रेरित होकर अन्य देश भी घरेलू राष्ट्रवाद को अंतरराष्ट्रीय सहयोग से ऊपर रख सकते हैं — जिससे लोकतांत्रिक एकजुटता कमजोर होगी।
🔹 निष्कर्ष
ट्रम्प का अमेरिका आज उस “विश्व सरकार” के विचार से दूरी बना रहा है, जिसे उसने स्वयं गढ़ा था।
“अमेरिका फर्स्ट” नीति अल्पकालिक रूप से घरेलू राजनीतिक लाभ दे सकती है, परंतु दीर्घकाल में यह वैश्विक स्थिरता, नियम-आधारित व्यवस्था और सामूहिक प्रगति के लिए खतरा बन रही है।
विश्व व्यवस्था अब एक निर्णायक मोड़ पर है —
या तो देश पुनः बहुपक्षीयता के सिद्धांतों की ओर लौटेंगे,
या फिर यह सदी “प्रतिस्पर्धी राष्ट्रवाद” और “प्रौद्योगिकीय युद्धों” की सदी बन जाएगी।
भविष्य इस पर निर्भर करेगा कि विश्व समुदाय — विशेष रूप से भारत, यूरोप और उभरते एशियाई देश — क्या अमेरिका के पीछे हटने से उत्पन्न रिक्तता को रचनात्मक ढंग से भर पाते हैं या नहीं।
🔹 निष्कर्ष के पश्चात् नीति-शास्त्रीय टिप्पणी (UPSC दृष्टिकोण से)
- GS Paper 2 (अंतरराष्ट्रीय संबंध): यह मुद्दा वैश्विक शासन, बहुपक्षीय संस्थाओं और शक्ति-संतुलन पर सीधे प्रभाव डालता है।
- GS Paper 3 (अर्थव्यवस्था व तकनीकी शासन): अमेरिका की व्यापार नीति, तकनीकी प्रतिस्पर्धा, और AI नियंत्रण पर असर स्पष्ट है।
- GS Paper 4 (नैतिकता): ट्रम्प की नीति “राष्ट्रीय स्वार्थ बनाम वैश्विक उत्तरदायित्व” की नैतिक द्वंद्व को उजागर करती है।
🔹 संदर्भ
- Chatham House. A Shock to the System: The Global Implications of Trump II (2025)
- Greater Pacific Capital. Project 2025, Trump, and the Remaking of the World (2025)
- IP Quarterly. A World Order Minus One (2025)
- Carnegie Endowment. The Death of the World America Made (2025)
- LSE USAPP Blog. The US-led World Order is Breaking—What History Tells Us May Come Next (2025)
- ACLU. Project 2025 Explained (2025)
- Opinio Juris. The Global Risk in Trump's AI Action Plan (2025)
- Times Republican. Who’s Pulling Trump’s Strings? Inside Project 2025 (2025)
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