Thomas Macaulay ki Mansik Virasat se Mukti: PM Modi ke Ramnath Goenka Vyakhyan ka Vishleshan (2035 Rashtriya Sankalp)
थॉमस मैकाले की विरासत को उलटने की राष्ट्रीय प्रतिबद्धता : प्रधानमंत्री के रामनाथ गोयनका व्याख्यान का समग्र विश्लेषण
(17 नवंबर 2025 के रामनाथ गोयनका स्मृति व्याख्यान पर आधारित मौलिक लेख)
भूमिका : एक नए बौद्धिक युग का उद्घोष
नई दिल्ली में आयोजित छठे रामनाथ गोयनका स्मृति व्याख्यान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय बौद्धिक इतिहास की दिशा बदल देने वाला एक गूढ़ संदेश दिया। उन्होंने कहा कि वर्ष 2035, जो लॉर्ड थॉमस बेबिंग्टन मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा नीति के 200 वर्ष पूरे होने का प्रतीक वर्ष होगा, तक भारत को उस “पश्चिमी मानसिकता” से मुक्त हो जाना चाहिए जिसे मैकाले ने योजनाबद्ध औपनिवेशिक उपकरण के रूप में भारतीय मानस में रोपित किया था। प्रधानमंत्री ने इसे “लॉक आउट” की संज्ञा दी — एक ऐसी मानसिक मुक्ति, जो केवल शिक्षा सुधार नहीं बल्कि सांस्कृतिक आत्मविश्वास की पुनर्स्थापना है।
यह घोषणा एक दशक के राष्ट्रीय संकल्प का बीज है—ऐसा संकल्प जो भारत की बौद्धिक स्वतंत्रता और सभ्यतामूलक आत्म-पहचान की ओर निर्णायक कदम माना जा रहा है।
मैकाले परियोजना का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य : ज्ञान पर शासन, शासन पर ज्ञान
1830 का दशक ब्रिटिश साम्राज्य के लिए “सभ्यतामूलक श्रेष्ठता” के विचार को राजनीतिक औचित्य में बदलने का दौर था। इसी संदर्भ में 2 फरवरी 1835 को मैकाले ने प्रसिद्ध “Minute on Indian Education” प्रस्तुत किया।
उनका घोषित उद्देश्य था—
भारतीयों की एक ऐसी श्रेणी तैयार करना,
“जो रक्त और रंग से भारतीय हो, पर taste, morals, opinions और intellect से अंग्रेज़।”
मैकाले ने यह भी दावा किया था कि यूरोपीय साहित्य का “एक शेल्फ” भारत और अरब की पूरी साहित्यिक परंपरा से श्रेष्ठ है।
इसका परिणाम 1835 के English Education Act के रूप में सामने आया, जिसके तहत—
- भारतीय भाषाओं, पाठशालाओं और मदरसों के सरकारी अनुदान समाप्त हुए।
- अंग्रेजी को शिक्षा और प्रशासन की प्रमुख भाषा घोषित किया गया।
- भारतीय ज्ञान-परंपरा को “अप्रासंगिक” सिद्ध कर आधुनिक शिक्षा के नाम पर उसे हाशिये पर धकेल दिया गया।
यह नीति केवल भाषा परिवर्तन नहीं थी; यह औपनिवेशिक शासन का मानसिक ढांचा तैयार करने का उपकरण थी—जहाँ भारतीय अपने ज्ञान और अपनी बौद्धिक विरासत पर स्वयं अविश्वास करने लगें।
190 वर्ष बाद भी मैकाले की छाया : स्वतंत्रता, परंतु मानसिक अनुवर्तीपन
प्रधानमंत्री ने संकेत किया कि आज भी भारत का बौद्धिक ढांचा उसी औपनिवेशिक मानसिकता को ढो रहा है। इसे कई स्तरों पर देखा जा सकता है—
1. शिक्षा
- विश्वविद्यालयी पाठ्यक्रम अब भी मुख्यतः पश्चिमी दार्शनिकों, सिद्धांतकारों और राजनीतिक अवधारणाओं के इर्द-गिर्द निर्मित हैं।
- भारतीय दार्शनिक परंपरा—न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा, वेदांत—पुस्तकों में दुबारा जगह पाने के लिए संघर्षरत है।
2. न्याय-तंत्र
- उच्चतम न्यायालय और अधिकांश उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी आज भी इकलौती कार्य-भाषा है।
- न्याय भारतीय नागरिक के लिए एक बहुभाषिक लोकतंत्र होते हुए भी भाषाई रूप से अब भी औपनिवेशिक ढांचे में बद्ध है।
3. नीति और बौद्धिक विमर्श
- “वेस्टर्न यूनिवर्सलिज़्म”, “लिबरल इंटरनेशनलिज़्म” और “पाश्चात्य आधुनिकता” को अभी भी विचार-मानक (normative frameworks) माना जाता है।
- भारतीय संदर्भों को प्रायः “स्थानीय” या “मिथकीय” कहकर कमतर आँका जाता है।
4. भाषा और ज्ञान-उत्पादन
- भारतीय भाषाओं में उच्चस्तरीय शोध, वैज्ञानिक साहित्य और जर्नल्स का गंभीर अभाव है।
- ज्ञान की दुनिया आज भी अंग्रेजी के माध्यम से ही वैध मानी जाती है।
इस प्रकार, राजनीतिक स्वतंत्रता के बाद भी बौद्धिक स्वतंत्रता का संघर्ष जारी है।
2035 का दशक-लक्ष्य : राष्ट्रीय संकल्प की दिशा में पाँच संरचनात्मक धुरी
प्रधानमंत्री के वक्तव्य को केवल प्रेरक नारा नहीं, बल्कि एक संभावित राष्ट्रीय रोडमैप के रूप में भी देखा जा रहा है। इस रोडमैप की पाँच प्रमुख धुरी निम्नलिखित हैं—
1. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का पूर्ण क्रियान्वयन
- प्राथमिक से उच्च शिक्षा तक मातृभाषा को माध्यम बनाना।
- इंजीनियरिंग, मेडिसिन, कानून जैसे क्षेत्रों में भारतीय भाषाओं में गुणवत्तापूर्ण सामग्री तैयार करना।
- भारतीय ज्ञान-परंपरा (IITP — Indian Institute of Traditional Practices) जैसे विशेष संस्थानों की स्थापना।
2. भारतीय ज्ञान-परंपरा का पुनर्पाठ और पुनर्जीवन
यह केवल ग्रंथों की वापसी नहीं बल्कि आधुनिक संदर्भों में उनकी पुनर्प्रस्तुति है—
- गणित और खगोलशास्त्र में आर्यभट, वराहमिहिर, भास्कराचार्य।
- राजनीतिक दर्शन में कौटिल्य, शुक्रनीति, तिरुक्कुरल।
- चिकित्सा में आयुर्वेद का वैज्ञानिक पुनर्पाठ।
भारतीय चिंतन को वैश्विक शिक्षा-धारा में सार्थक रूप से समाविष्ट करना, न कि केवल प्रतीकात्मक उल्लेख।
3. न्यायिक प्रणाली का बहुभाषिकरण
- जिला न्यायालयों की भाँति उच्च न्यायपालिका में भी भारतीय भाषाओं का उपयोग।
- समानांतर अनुवाद एवं तकनीकी उपकरणों की मदद से न्याय तक पहुँच का लोकतंत्रीकरण।
- विधि शिक्षा में द्विभाषिक मॉडल का विकास।
4. भारतीय भाषाओं में शोध और प्रकाशन का सशक्तीकरण
- अंतरराष्ट्रीय मानक के जर्नल्स और शोध-आधारित प्रकाशन गृह।
- AI आधारित अनुवाद और भारतीय भाषाओं में तकनीकी शब्दावली का मानकीकरण।
- विश्वविद्यालयों को भारतीय भाषाओं में पीएचडी और उच्चस्तरीय शोध को प्रोत्साहन।
5. मीडिया और डिजिटल स्पेस में भाषा—गुणवत्ता और उपलब्धता का समन्वय
- भारतीय भाषाओं में प्रीमियम कंटेंट, डॉक्यूमेंटेशन, विश्लेषण और डेटा-आधारित रिपोर्टिंग।
- डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स पर भारतीय भाषा पत्रकारिता के लिए संस्थागत समर्थन।
- सोशल मीडिया पर ‘मूल्य आधारित भारतीय विमर्श’ का सुदृढ़ीकरण।
ये सब कदम मिलकर 2035 को “मानसिक स्वतंत्रता वर्ष” बनाने की दिशा दिखाते हैं।
चुनौतियाँ : मार्ग आसान नहीं, परंतु आवश्यक
- ज्ञान का वैश्वीकरण आज अंग्रेजी और पश्चिमी मानकों के आधार पर चलता है—उसे बदलने में समय लगेगा।
- भारतीय भाषाओं में गुणवत्ता-युक्त अकादमिक संसाधन तैयार करने के लिए विशाल निवेश और प्रशिक्षित विद्वानों की आवश्यकता है।
- न्यायिक और प्रशासनिक प्रणाली में भाषा-परिवर्तन तकनीकी और संस्थागत रूप से चुनौतीपूर्ण होगा।
- शिक्षकों, विश्वविद्यालयों और विद्वानों की मानसिकता में बदलाव 10 वर्षों में आसान नहीं।
फिर भी, ये चुनौतियाँ असंभव नहीं, केवल संकल्प और निरंतरता की मांग करती हैं।
निष्कर्ष : 2035 — मैकाले की पराजय का नहीं, भारत की बौद्धिक विजय का वर्ष
मैकाले का एजेंडा भारतीयों के भीतर एक ऐसी बौद्धिक निर्भरता पैदा करना था जिससे वे अपनी ज्ञान-परंपरा, अपनी भाषा, अपने सांस्कृतिक स्व को ही कमतर समझें।
2035 को एक “औपनिवेशिक मानसिकता के लॉक-आउट” के रूप में स्थापित करना भारत के लिए—
- मानसिक मुक्ति का अवसर है,
- सांस्कृतिक आत्मविश्वास की पुनर्स्थापना है,
- और 21वीं सदी के वैश्विक ज्ञान-क्रम में अपनी स्वतंत्र पहचान स्थापित करने की निर्णायक पहल है।
यह दशक न केवल एक सुधार-योजना है बल्कि भारत के सभ्यतामूलक पुनर्जागरण की घोषणा है।
मैकाले की विरासत का अंत भारत की हार का नहीं,
बल्कि भारत की बौद्धिक स्वतंत्रता, स्व-ज्ञान और स्वाभिमान की विजय का प्रतीक होगा।
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