2025 तंजानिया राष्ट्रपति चुनाव: भारी जीत, विवादित वैधता और तानाशाही सुदृढ़ीकरण का भूत
सारांश
25 अक्टूबर 2025 को तंजानिया की राष्ट्रीय चुनाव आयोग (NEC) ने मौजूदा राष्ट्रपति सामिया सुलुहु हसन को सातवें बहुदलीय राष्ट्रपति चुनाव में 97.2% वैध मतों के साथ विजेता घोषित किया।
मुख्य विपक्षी नेता तुंदु लिस्सू और फ्रीमन म्बोवे (चाडेमा) को मतदान से कुछ सप्ताह पहले प्रक्रियात्मक कारणों से अयोग्य ठहराया गया, जिससे चुनाव एकतरफा बन गया। यह परिणाम, जो पूर्व राष्ट्रपति जॉन मागुफुली के निधन (2021) के बाद अब तक का सबसे विवादास्पद माना जा रहा है, देशभर में विरोध प्रदर्शनों की लहर लेकर आया।
यह लेख तंजानिया के चुनावी तंत्र, विपक्ष के बहिष्कार, न्यायपालिका की भूमिका, बढ़ते प्रदर्शनों और लोकतांत्रिक पतन के व्यापक निहितार्थों का विश्लेषण करता है।
1. चुनावी तंत्र और “97%” का रहस्य
तंजानिया में राष्ट्रपति चुनाव First-Past-The-Post प्रणाली से होते हैं, यानी जो उम्मीदवार सबसे अधिक मत प्राप्त करता है, वही विजेता होता है।
NEC के अनुसार मतदान प्रतिशत 67% रहा — जो 2020 के 71% से थोड़ा कम है, लेकिन क्षेत्रीय औसत से अधिक।
राष्ट्रपति हसन की 97.2% की भारी जीत तीन प्रमुख कारणों से संभव हुई —
- चुनाव-पूर्व अयोग्यता: विपक्षी नेता लिस्सू और म्बोवे को तंजानिया संविधान (1977, संशोधित) के अनुच्छेद 39(1)(g) के तहत नामांकन पत्रों की कथित अपूर्णता के आधार पर अयोग्य ठहराया गया।
- विपक्ष का विखंडन: अन्य छोटे दल—ACT Wazalendo और CUF—के उम्मीदवारों को कुल मिलाकर मात्र 1.9% मत मिले।
- राज्य संसाधनों का दुरुपयोग: सत्तारूढ़ दल CCM ने निर्वाचन आयोग, राजनीतिक दलों के रजिस्ट्रार और भ्रष्टाचार निवारण ब्यूरो पर प्रभाव बनाए रखा, जिससे मीडिया और फंडिंग नियमों का चयनात्मक पालन सुनिश्चित हुआ।
सिविल सोसाइटी संगठन Tanzania Civil Society Consortium (TCSC) द्वारा की गई Parallel Vote Tabulation (PVT) प्रक्रिया को भी रोक दिया गया — 23 अक्टूबर को दार एस सलाम बंदरगाह पर उनके डेटा ड्राइव जब्त कर लिए गए।
2. न्यायिक कब्जा और विपक्ष की अयोग्यता
NEC का फैसला 2023 के संवैधानिक न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय Lissu vs NEC पर आधारित था, जिसमें “properly nominated” शब्द को अत्यधिक विस्तृत रूप में व्याख्यायित किया गया। अदालत ने कहा कि उम्मीदवारों को “मतदाता हस्ताक्षरों की वास्तविक-समय सत्यापन” प्रस्तुत करनी होगी — जो तकनीकी रूप से अधिकांश विपक्षी दलों के लिए असंभव था।
आलोचकों (Human Rights Watch, Amnesty International) का मानना है कि यह निर्णय न्यायिक निष्पक्षता की बजाय राजनीतिक दबाव का परिणाम था। वही अदालत जिसने 2020 में लिस्सू की उम्मीदवारी को मान्य किया था, अब उन्हीं दस्तावेजों को “अपर्याप्त” बता रही है — यह न्यायपालिका पर “संस्थागत कब्जे” का उदाहरण है।
विपक्षी बहिष्कार की समयरेखा:
| तिथि | घटना |
|---|---|
| 15 अगस्त 2025 | NEC ने बायोमेट्रिक सत्यापन आधारित नामांकन दिशानिर्देश जारी किए। |
| 10 सितंबर 2025 | चाडेमा ने 12 लाख हस्ताक्षर जमा किए, जिनमें से 11.9 लाख “जाली” घोषित किए गए। |
| 20 सितंबर 2025 | उच्च न्यायालय ने NEC का समर्थन किया; सर्वोच्च न्यायालय ने पुनर्विचार याचिका अस्वीकार की। |
| 15 अक्टूबर 2025 | लिस्सू, म्बोवे और ACT उम्मीदवार अयोग्य घोषित। |
यह घटनाक्रम इस बात का स्पष्ट संकेत है कि तंजानिया में न्यायपालिका अब अधिकारों की रक्षक नहीं रही, बल्कि चुनावी प्रक्रिया की प्रहरी बन गई है।
3. प्रदर्शन लहर: पैमाना, भूगोल और दमन
मतदान के बाद केवल चार दिनों में ही 14 में से 31 क्षेत्र प्रदर्शन की चपेट में आ गए। दार एस सलाम, अरुशा, मोरोगोरो और म्वान्ज़ा जैसे शहरी केंद्रों में विरोध सबसे तीव्र था।
Legal and Human Rights Centre (LHRC) के अनुसार, दैनिक चरम भागीदारी लगभग 1,80,000 रही — जो 1992 में बहुदलीय प्रणाली की पुनर्स्थापना के बाद सबसे बड़ी है।
शुरुआत में पुलिस ने आंसू गैस और वाटर कैनन का उपयोग किया, लेकिन 31 अक्टूबर तक स्थिति हिंसक हो गई। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय के मुताबिक, कम से कम 22 लोगों की मौत और 1,114 गिरफ्तारियां हुईं।
साथ ही, इंटरनेट पर 40% तक थ्रॉटलिंग (Cloudflare Radar) की गई, और Tanzania Communication Regulatory Authority (TCRA) ने चार स्वतंत्र रेडियो स्टेशनों को “उकसावे” के आरोप में निलंबित कर दिया।
4. सैद्धांतिक विश्लेषण: “Competitive Authoritarianism” का पुनरागमन
राजनीतिक सिद्धांतकार Levitsky और Way (2010) के अनुसार, तंजानिया अब Competitive Authoritarianism की स्थिति में प्रवेश कर चुका है —
- चुनाव होते हैं, परंतु मैदान पूरी तरह असमान होता है।
- विपक्ष मौजूद है, लेकिन उसे वास्तविक प्रतिस्पर्धा से वंचित किया जाता है।
- नागरिक समाज सक्रिय है, लेकिन सीमित असहमति की ही अनुमति है।
राष्ट्रपति हसन द्वारा 2021–24 के दौरान किए गए उदारीकरण के संकेत — जैसे मीडिया विनियमों का शिथिलीकरण और कुछ राजनीतिक कैदियों की रिहाई — अब रणनीतिक कदमों की तरह प्रतीत होते हैं, न कि संरचनात्मक सुधारों की तरह।
2025 का चुनाव, मागुफुली युग की पुनरावृत्ति है — केवल भाषा में “लोकतांत्रिक शालीनता” जोड़ दी गई है।
5. क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव
- पूर्वी अफ्रीकी समुदाय (EAC): तंजानिया का उदाहरण अब केन्या और युगांडा के लिए “उम्मीदवार अयोग्यता” को वैध ठहराने की मिसाल बन सकता है।
- SADC और African Union: दोनों संस्थाओं ने चुनाव को “शांतिपूर्ण” करार दिया, परंतु अयोग्यताओं और हिंसा पर मौन साध लिया। इससे 2004 SADC Democratic Principles की विश्वसनीयता कमजोर हुई।
- विकास सहयोगी: यूरोपीय संघ ने 30 अक्टूबर को €30 मिलियन बजट सहायता निलंबित की, “व्यवस्थित अनियमितताओं” का हवाला देते हुए। अमेरिका ने MCC Compact को समीक्षा के अधीन रखा है।
निष्कर्ष
राष्ट्रपति सामिया सुलुहु हसन की 97% की जीत वास्तव में एक निर्मित सहमति है, न कि जनादेश। विपक्ष को चुनाव से बाहर कर, मीडिया को नियंत्रित कर, और न्यायपालिका को हथियार बनाकर शासन ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मात्र जनमत-संग्रह में बदल दिया है।
लगातार जारी विरोध और आर्थिक असंतोष यह संकेत देते हैं कि तंजानिया केवल राजनीतिक ही नहीं, बल्कि वैधता संकट से भी जूझ रहा है।
जब तक संवैधानिक सुधार, न्यायिक स्वायत्तता और 2026 के स्थानीय चुनावों में विपक्ष की बहाली नहीं होती, तब तक तंजानिया पूर्वी अफ्रीका में लोकतंत्र के क्षरण का प्रतीक बना रहेगा।
संदर्भ
- Amnesty International (2025). Tanzania: Crackdown on Post-Election Protests.
- Human Rights Watch (2025). “They Barred Us from the Race”: Tanzania’s 2025 Elections.
- Levitsky, S., & Way, L. (2010). Competitive Authoritarianism: Hybrid Regimes after the Cold War. Cambridge University Press.
- Tanzania National Election Commission (2025). Official Gazette No. 44.
- United Nations Human Rights Office (2025). Preliminary Findings: Tanzania Post-Election Violence.
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