दिल्ली के लाल किले मेट्रो स्टेशन के निकट कार विस्फोट: ट्रांसनेशनल आतंकी नेटवर्क की परतें खुलती हुईं
सारांश
10 नवंबर 2025 की शाम जब दिल्ली त्योहार की रौशनी में नहा रही थी, तभी लाल किले मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 1 के पास हुई एक कार विस्फोट ने राष्ट्रीय राजधानी को दहला दिया। इस हमले में 13 लोगों की मौत हुई और 20 से अधिक घायल हुए। प्रारंभिक जांच में यह स्पष्ट हुआ कि यह कोई आकस्मिक घटना नहीं, बल्कि एक सुनियोजित आतंकी षड्यंत्र था — जो जम्मू-कश्मीर से जुड़े एक ट्रांसनेशनल नेटवर्क से संचालित हो रहा था। संदिग्ध चालक उमर नबी भट, जो पुलवामा का निवासी और फरीदाबाद के अल-फलाह मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर था, फरार बताया जा रहा है। यह घटना न केवल दिल्ली की सुरक्षा व्यवस्थाओं पर प्रश्न उठाती है, बल्कि भारत की आंतरिक सुरक्षा, साइबर-प्रचार आधारित रेडिकलाइजेशन, और सीमा-पार आतंकवाद के नए स्वरूपों की गहराई को भी उजागर करती है।
परिचय
भारत की राजधानी दिल्ली – जहाँ इतिहास और आधुनिकता एक साथ सांस लेते हैं – बार-बार आतंकी संगठनों के निशाने पर रही है। लाल किला, जो स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक है और हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस का साक्षी बनता है, देश की सुरक्षा और एकता का प्रतीक भी है।
10 नवंबर की शाम 6:50 बजे, जब बाजारों में दिवाली की भीड़ थी और मेट्रो स्टेशन पर रोज़मर्रा की हलचल चल रही थी, सुभाष मार्ग पर खड़ी एक ह्युंडई i20 कार में अचानक विस्फोट हुआ। विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि आसपास की तीन अन्य गाड़ियाँ जलकर खाक हो गईं और पूरे क्षेत्र में अफरातफरी मच गई।
इस धमाके की तीव्रता ने न केवल भौतिक नुकसान पहुँचाया, बल्कि नागरिकों के मानस में भय और असुरक्षा का भाव भी गहरा कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूटान दौरे से तत्काल प्रतिक्रिया दी और गृह मंत्री अमित शाह को जांच तेज़ करने के निर्देश दिए, यह कहते हुए कि “भारत आतंक के किसी भी स्वरूप को बर्दाश्त नहीं करेगा।”
घटना का क्रम और प्रारंभिक जांच
सीसीटीवी फुटेज के अनुसार, कार सिग्नल पर कुछ समय रुकी रही और अचानक एक तीव्र चमक के साथ विस्फोट हुआ। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि धमाके के बाद "लाल गुब्बारे" जैसी आग की लपटें उठीं। जांच एजेंसियों ने इसे अमोनियम नाइट्रेट आधारित आईईडी विस्फोट माना है। कार के अवशेषों और पास के इलेक्ट्रॉनिक सिग्नलों से यह भी संकेत मिला कि विस्फोट एक रिमोट या टाइमर-डिवाइस से नियंत्रित था।
मृतकों में एक टैक्सी ड्राइवर, एक व्यवसायी और एक दुकानदार शामिल हैं — तीनों सामान्य नागरिक, जो दिवाली की खरीदारी के बाद लौट रहे थे। यह चयनित लक्ष्य नहीं था; बल्कि भीड़ में भय पैदा करने की एक रणनीति थी।
दिल्ली पुलिस ने यूएपीए की धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की और तुरंत एनआईए को जांच सौंपी। एनआईए की प्राथमिक रिपोर्ट के अनुसार, यह नेटवर्क जम्मू-कश्मीर में हाल ही में पकड़े गए मॉड्यूल से जुड़ा है, जो चिकित्सा और तकनीकी पेशेवरों के माध्यम से रासायनिक विस्फोटक तैयार करता था।
संदिग्धों की पृष्ठभूमि: “व्हाइट-कॉलर मॉड्यूल”
इस घटना की सबसे चिंताजनक बात यह है कि इसमें संलिप्त लोग पारंपरिक आतंकी प्रोफ़ाइल से बिल्कुल भिन्न हैं।
मुख्य संदिग्ध उमर नबी भट — पुलवामा के कोइल गाँव का निवासी, मेडिकल स्नातक, और अल-फलाह मेडिकल कॉलेज में जूनियर डॉक्टर — पिछले कुछ महीनों से "अचानक कट्टरपंथी" रुझान दिखा रहा था। वह तीन अन्य सहकर्मियों के साथ लगातार संपर्क में था, जिनमें शामिल हैं:
- डॉ. मुजम्मिल अहमद गनाई: फरीदाबाद में किराए के फ्लैट में विस्फोटक सामग्री (350 किलोग्राम अमोनियम नाइट्रेट, रिमोट, टाइमर, वायरिंग) बरामद हुई।
- डॉ. अदील मजीद राथर: विस्फोटक रसायनों की आपूर्ति श्रृंखला संभालने वाला व्यक्ति।
- डॉ. शाहीन शाहिद अंसारी: लखनऊ निवासी, जिसने कथित रूप से ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से संपर्क स्थापित किया था।
इन डॉक्टरों का 2019 का एमबीबीएस बैच था — जो इस नेटवर्क की लंबी तैयारी और योजनाबद्ध कार्यशैली को दर्शाता है। यह आतंकी मॉड्यूल, पारंपरिक ‘फिजिकल ट्रेनिंग’ की बजाय साइबर रैडिकलाइजेशन, रासायनिक ज्ञान और पेशेवर नेटवर्किंग पर आधारित था — जिसे विशेषज्ञ “व्हाइट-कॉलर टेररिज़्म” की संज्ञा दे रहे हैं।
जांच की दिशा और एजेंसियों की भूमिका
एनआईए और दिल्ली पुलिस की संयुक्त टीमों ने फरीदाबाद, गुरुग्राम और जम्मू-कश्मीर में 15 से अधिक ठिकानों पर छापेमारी की। एक लीक ऑडियो कॉल में उमर नबी अपने किसी साथी से “त्योहार की रात सबसे सही वक्त” होने की बात कहता सुनाई दिया।
जांचकर्ताओं को शक है कि इस नेटवर्क का संबंध कश्मीर के उस मॉड्यूल से है जिसे हाल ही में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने ध्वस्त किया था और जो ‘अमोनियम-नाइट्रेट आधारित विस्फोटक’ का प्रयोग कर रहा था।
एनआईए सूत्रों के अनुसार, “यह कोई एकल-घटना नहीं, बल्कि भीड़भाड़ वाले त्योहारों में श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों की योजना का हिस्सा थी।” दिल्ली, जयपुर और अहमदाबाद जैसे शहरों में भी संदिग्धों की गतिविधियाँ पाई गई हैं।
इस बीच, अंतरराष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों — विशेष रूप से अमेरिका और इज़राइल — ने भारतीय एजेंसियों को साइबर ट्रैफिक से संबंधित कुछ चेतावनियाँ साझा की हैं।
व्यापक निहितार्थ: शहरी आतंकवाद का बदलता स्वरूप
यह हमला भारत में “अर्बन रेडिकलाइजेशन” के बढ़ते खतरे की ओर इशारा करता है, जहाँ उच्च शिक्षित, आर्थिक रूप से संपन्न और सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित वर्ग के कुछ लोग भी चरमपंथी विचारधाराओं के प्रभाव में आ रहे हैं।
पूर्व कोर कमांडर ले. जन. सैयद अता हसनैन ने कहा कि “यह घटना केवल सुरक्षा विफलता नहीं, बल्कि समाज में वैचारिक विष के धीरे-धीरे फैलने का संकेत है।”
तकनीकी रूप से प्रशिक्षित युवाओं द्वारा आतंकवादी रणनीति अपनाना सुरक्षा एजेंसियों के लिए नई चुनौती है। साइबर माध्यमों से कट्टरपंथी साहित्य, फेक नैरेटिव और धार्मिक रूप से प्रेरित घृणा प्रचार, “लोन वुल्फ” मॉडल को बढ़ावा दे रहे हैं।
यह घटना भारत की आंतरिक सुरक्षा नीति में तीन बड़े सुधारों की आवश्यकता पर बल देती है:
- एआई-सक्षम निगरानी प्रणाली — जो असामान्य साइबर पैटर्न और डिजिटल कट्टरपंथी गतिविधियों को ट्रैक कर सके।
- इंटर-स्टेट इंटेलिजेंस कोऑर्डिनेशन — क्योंकि नेटवर्क अक्सर एक राज्य से दूसरे में छिप जाते हैं।
- मानसिक और सामाजिक डीरैडिकलाइजेशन प्रोग्राम — विशेषकर विश्वविद्यालयों और प्रोफेशनल कॉलेजों में।
राजनीतिक और राजनयिक प्रतिक्रिया
घटना के बाद भारत के प्रमुख शहरों में सुरक्षा बढ़ा दी गई। दिल्ली मेट्रो का लाल किला स्टेशन तीन दिनों तक बंद रहा। अमेरिकी दूतावास ने अपने नागरिकों के लिए सुरक्षा सलाह जारी की, जबकि ब्रिटेन, फ्रांस और जापान ने भारत के प्रति एकजुटता व्यक्त की।
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने “भारत में आंतरिक कानून-व्यवस्था की विफलता” पर टिप्पणी की, जिस पर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि “आतंक का पोषण करने वाले देश नैतिक उपदेश देने की स्थिति में नहीं हैं।”
न्याय और पारदर्शिता की दिशा में
भारत में आतंकवादी मामलों में न्यायिक प्रक्रिया लंबी रही है। सुप्रीम कोर्ट ने निठारी केस और अजमल कसाब केस में यह स्पष्ट किया कि “आतंकी मामलों में जल्दबाज़ी नहीं, साक्ष्य आधारित कार्रवाई सर्वोपरि है।” लाल किला विस्फोट की जांच भी इसी कसौटी पर खरा उतरनी चाहिए — पारदर्शिता, साक्ष्य और समयबद्धता के साथ।
निष्कर्ष
लाल किले मेट्रो स्टेशन के निकट हुआ यह कार विस्फोट केवल एक आपराधिक कृत्य नहीं, बल्कि भारत की सुरक्षा संरचना, सामाजिक एकता और वैचारिक दृढ़ता की परीक्षा है।
व्हाइट-कॉलर मॉड्यूल का खुलासा बताता है कि आतंकवाद अब सीमाओं या वर्गों में बंधा नहीं है — यह विचारधारा, तकनीक और मनोवैज्ञानिक प्रभावों का मिश्रित रूप बन चुका है।
भारत को इस नई चुनौती के लिए अपनी नीति, खुफिया समन्वय, और डिजिटल सतर्कता को नए सिरे से परिभाषित करना होगा। तभी शायद हम सुनिश्चित कर सकेंगे कि लाल किले जैसी ऐतिहासिक धरोहरें भविष्य में केवल इतिहास के गौरव की साक्षी बनें — किसी विस्फोट की नहीं।
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