भारत का "रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट मिशन": स्वदेशीकरण, रणनीतिक स्वायत्तता और हरित प्रौद्योगिकी की दिशा में परिवर्तनकारी कदम
भारत ने 27 नवंबर 2025 को 7,280 करोड़ रुपये की लागत वाली जिस “रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट मिशन” को मंजूरी दी है, वह न केवल औद्योगिक आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल है, बल्कि वैश्विक रणनीतिक परिदृश्य में भारत की स्थिति मजबूत करने वाला ऐतिहासिक निर्णय भी है। यह मिशन भविष्य की उन सभी प्रौद्योगिकियों का आधार है, जिन पर 21वीं सदी की ऊर्जा व्यवस्था, डिजिटल अवसंरचना और रक्षा क्षमता निर्भर करती है।
दुर्लभ पृथ्वी चुंबकों का बढ़ता महत्व
नियोडिमियम-आयरन-बोरॉन (NdFeB) और सैमेरियम-कोबाल्ट (SmCo) जैसे उच्च-प्रदर्शन स्थायी चुंबक आधुनिक तकनीकी जगत की अनिवार्य इकाइयाँ हैं। इनका उपयोग अनेक अत्याधुनिक क्षेत्रों में होता है, जैसे—
- विद्युत वाहनों (EVs) के ट्रैक्शन मोटर्स में
- पवन ऊर्जा के डायरेक्ट-ड्राइव टरबाइनों में
- रक्षा प्रणालियों—मिसाइल गाइडेंस, रडार, सोनार और एयरोस्पेस में
- उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स—स्मार्टफोन, लैपटॉप, हार्ड डिस्क ड्राइव
- मेडिकल उपकरणों—MRI व अन्य इमेजिंग तकनीक
आज वैश्विक उच्च-प्रदर्शन चुंबक उत्पादन का लगभग 90% हिस्सा चीन के पास है। ऐसे में आपूर्ति शृंखला में किसी भी बाधा का सीधा प्रभाव भारत के ऊर्जा, रक्षा और इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों पर पड़ सकता है। इस परिप्रेक्ष्य में नया मिशन रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत निर्णायक है।
मिशन के चार आधार-स्तंभ
1. खनन और प्रसंस्करण (Mining & Separation)
भारत के तटीय और खनिज-समृद्ध क्षेत्रों—केरल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और राजस्थान—में मौजूद लगभग 13 मिलियन टन मोनाजाइट भंडार का वैज्ञानिक व सुरक्षित दोहन किया जाएगा। इससे नेओडिमियम, प्रसीओडिमियम, डिस्प्रोसियम जैसे महत्त्वपूर्ण दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की घरेलू आपूर्ति संभव होगी।
2. ऑक्साइड से धातु रूपांतरण
REO (Rare Earth Oxides) को उच्च शुद्धता वाली धातुओं में बदलने की क्षमता विकसित करना इस मिशन का सबसे तकनीकी हिस्सा है। भारत अब अपने स्वयं के Nd, Pr, Dy और Tb धातुएँ तैयार करेगा—जो अब तक लगभग पूरी तरह आयात पर निर्भर थीं।
3. स्थायी चुंबक निर्माण (Magnet Manufacturing)
इस मिशन के तहत भारत पहली बार एकीकृत NdFeB और SmCo मैग्नेट उत्पादन संयंत्र स्थापित करेगा।
लक्ष्य: 2028-29 तक 2,000 टन प्रतिवर्ष की उत्पादन क्षमता
यह क्षमता भारत के EV, पवन ऊर्जा और रक्षा उद्योगों की महत्वपूर्ण मांग को पूरा कर सकेगी।
4. रिसाइक्लिंग एवं सर्कुलर इकॉनॉमी
दुर्लभ पृथ्वी तत्व सीमित प्राकृतिक संसाधन हैं। मिशन पुराने इलेक्ट्रॉनिक कचरे, मोटर्स और मैग्नेट स्क्रैप से REEs की पुनर्प्राप्ति को बढ़ावा देगा—जिससे लगातार उपलब्धता सुनिश्चित होगी और पर्यावरणीय दबाव कम होगा।
मिशन के व्यापक प्रभाव
1. ईवी उद्योग को नई गति
स्थायी चुंबकों का घरेलू निर्माण विद्युत वाहनों की उत्पादन लागत 15–20% तक कम कर सकता है। इससे भारतीय ईवी कंपनियों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा क्षमता बढ़ेगी।
2. रणनीतिक स्वायत्तता
रक्षा उत्पादन में चुंबक एक अत्यधिक संवेदनशील तत्व हैं। स्वदेशी उत्पादन भारत को
- सैन्य आपूर्ति शृंखला में मजबूती,
- निर्यात क्षमता,
- और सैन्य गोपनीयता-सुरक्षा
प्रदान करेगा।
3. रोजगार और औद्योगिक विकास
खनन से लेकर उन्नत चुंबक निर्माण तक, मिशन से 50,000+ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार उत्पन्न होने का अनुमान है। साथ ही भारत में उच्च-तकनीकी विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र मजबूत होगा।
4. हरित ऊर्जा संक्रमण
पवन ऊर्जा और ईवी—दोनों का हृदय स्थायी चुंबक हैं। इनका स्वदेशी निर्माण भारत की नेट-जीरो यात्रा को तेज करेगा।
निष्कर्ष
दुर्लभ पृथ्वी चुंबक मिशन केवल एक औद्योगिक निवेश या आत्मनिर्भरता का कार्यक्रम नहीं है—यह भारत के ऊर्जा सुरक्षा, प्रौद्योगिकी नेतृत्व, और रणनीतिक स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त करने वाली पहल है। चीन के एकाधिकार वाले बाजार में भारत अब पूरी मूल्य शृंखला—खनन, धातु-उत्पादन, चुंबक निर्माण और रिसाइक्लिंग—में सक्रिय और सक्षम भूमिका निभाने की ओर अग्रसर है।
“आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ की मूल भावना को मूर्त रूप देने वाला यह मिशन भारत को 21वीं सदी की हरित, डिजिटल और रक्षा-संबद्ध प्रौद्योगिकियों में वैश्विक नेता बनाने की क्षमता रखता है।”
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