India’s High-Risk HPAI (H5N1) Outlook: Impacts on Food Security, Poultry Industry & Public Health in 2025–26
भारत के संदर्भ में अत्यधिक रोगजनक एवियन इन्फ्लुएंजा (HPAI) का वर्तमान एवं संभावी प्रकोप : खाद्य सुरक्षा, पोल्ट्री उद्योग एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
प्रस्तावना
नवंबर 2025 में यूरोप और उत्तरी अमेरिका में अत्यधिक रोगजनक बर्ड फ्लू (H5N1, क्लेड 2.3.4.4b) का जो असाधारण और व्यापक प्रकोप दर्ज किया गया है, वह भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है। विश्व के सबसे बड़े backyard poultry आधारित देशों में शामिल भारत, प्रवासी पक्षियों के चार मुख्य फ्लाई-वे के बीच स्थित है, जिससे जोखिम और बढ़ जाता है। पिछले पाँच वर्षों में देश ने कई बड़े प्रकोप झेले – 2021, 2022 और 2024 के प्रकोपों में लगभग 80 लाख से अधिक पक्षियों की मौत या वध हुआ। मौजूदा वैश्विक स्थिति को देखते हुए 2025-26 की सर्दियों में भारत में गंभीर प्रकोप की संभावना प्रबल है।
भारत में ऐतिहासिक एवं वर्तमान परिदृश्य
भारत में HPAI का पहला पुष्टि किया गया प्रकोप फरवरी 2006 में महाराष्ट्र और गुजरात में सामने आया था। उसके बाद यह वायरस हर वर्ष अलग-अलग रूपों में लौटता रहा।
- 2020-21: 12 से अधिक राज्यों में बड़े स्तर पर संक्रमण, लगभग 55 लाख पक्षियों का वध।
- 2022: केरल में एशिया का सबसे बड़ा डक प्रकोप, 7 लाख से अधिक बतखों की मृत्यु।
- 2024: महाराष्ट्र, केरल, झारखंड, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पुनः प्रकोप।
नवंबर 2025 तक किसी बड़े प्रकोप की आधिकारिक पुष्टि नहीं है, लेकिन राजस्थान, गुजरात और पंजाब में प्रवासी पक्षियों का आगमन शुरू हो चुका है। साइबेरिया से आने वाले बार-हेडेड गूज, नॉर्दर्न पिंटेल और कॉमन टील जैसे पक्षी हर सर्दी भारत पहुंचते हैं और ऐतिहासिक रूप से H5N1 के प्रमुख वाहक माने जाते हैं। इनके ठहरने वाले जलाशय—जैसे भरतपुर का केवलीदेव घाना राष्ट्रीय उद्यान, गुजरात का नल सरोवर तथा उत्तर प्रदेश का ओखला बर्ड सैंक्चुअरी—उच्च जोखिम वाले क्षेत्र बन जाते हैं।
भारतीय पोल्ट्री उद्योग पर संभावित प्रभाव
भारत विश्व के सबसे बड़े अंडा उत्पादक और ब्रॉयलर उत्पादक देशों में शामिल है—लगभग 130 अरब अंडे प्रति वर्ष और वैश्विक ब्रॉयलर उत्पादन में चौथा स्थान। पोल्ट्री उद्योग का अनुमानित मूल्य 1.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक है।
लेकिन इस उद्योग की सबसे बड़ी कमजोरी है कि 70–75% उत्पादन पिछवाड़े पोल्ट्री पर निर्भर है। ग्रामीण परिवारों में 10–50 देसी मुर्गियों का मुक्त चराई आधारित पालन सामान्य है, जिसे नियंत्रित करना प्रकोप के समय अत्यंत कठिन होता है।
एक बार संक्रमण फैलने पर 1 किमी के दायरे में कुल वध की नीति लागू होती है। इससे छोटे और सीमांत किसान—विशेषकर आदिवासी और ग्रामीण महिलाएँ, जिनकी आय का मुख्य स्रोत देसी मुर्गी है—गंभीर आर्थिक संकट का सामना करती हैं।
यदि 2025-26 में व्यापक प्रकोप होता है, तो यह उद्योग उत्पादन, रोजगार और निर्यात—तीनों स्तरों पर गंभीर प्रभाव महसूस कर सकता है।
खाद्य सुरक्षा एवं पोषण पर प्रभाव
अंडा और चिकन भारत में सस्ते और सुलभ प्रोटीन स्रोत हैं। इस समय प्रति व्यक्ति वार्षिक अंडा खपत केवल 90–95 है, जबकि वैश्विक औसत लगभग 170 है। किसी भी प्रकोप के दौरान बाजार में घबराहट या सप्लाई चेन बाधित होते ही कीमतें तुरंत बढ़ जाती हैं।
2021 में केरल में अंडे की कीमतें 4 रुपये से बढ़कर 9–10 रुपये प्रति अंडा हो गई थीं। ऐसी स्थिति दोबारा बनने पर गरीब परिवारों की थाली से प्रोटीन गायब होना तय है।
इसके अलावा, मिड-डे मील और आंगनवाड़ी पोषण कार्यक्रम अंडों पर निर्भर हैं। उत्पादन में गिरावट या परिवहन में प्रतिबंध जुड़ते ही बच्चों और गर्भवती महिलाओं के पोषण कार्यक्रम प्रभावित होने का खतरा बढ़ जाता है। भारत पहले से ही कुपोषण से जूझ रहा है; ऐसे में HPAI प्रकोप खाद्य सुरक्षा पर बहु-स्तरीय प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम
भारत में अब तक मनुष्यों में H5N1 संक्रमण का केवल एक पुष्टि मामला दर्ज हुआ है (2021 में हरियाणा में 11 वर्षीय बालक की मृत्यु)। हालांकि, यह भी सच है कि देश में मानव-पशु इंटरफेस की निगरानी प्रणाली अब भी मजबूत नहीं है, जिससे हल्के अथवा अपुष्ट मामलों के छूट जाने की संभावना बनी रहती है।
पिछवाड़े पोल्ट्री में बच्चों और महिलाओं का सीधा संपर्क अधिक होता है—मुर्गियों की सफाई, आँगन में खुले में वध, बीमार पक्षियों को हाथ लगाने जैसी गतिविधियाँ नियमित हैं। ऐसे परिवेश में वायरस के छलांग लगाने का जोखिम बना रहता है। अभी तक H5N1 मानव-से-मानव कुशलता से नहीं फैलता, लेकिन प्रत्येक बड़े प्रकोप के साथ म्यूटेशन की संभावना बनी रहती है।
नीतिगत एवं वैज्ञानिक सुझाव
1. तत्काल कदम (नवंबर–दिसंबर 2025)
- प्रमुख प्रवासी पक्षी जलाशयों के 10 किमी दायरे में सक्रिय निगरानी—क्लीनिक सैंपलिंग, मृत पक्षियों की RT-PCR स्क्रीनिंग, और जमीनी रिपोर्टिंग तंत्र—तुरंत प्रारंभ की जाए।
- राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के सभी मध्यम एवं बड़े पोल्ट्री फार्मों में बायोसिक्योरिटी ऑडिट अनिवार्य हों।
- पिछवाड़े पोल्ट्री में 1 किमी के दायरे में अनिवार्य वध के बजाय रिंग वैक्सीनेशन और targeted containment को नीति विकल्प के रूप में अपनाने पर विचार हो।
2. मध्यम अवधि (2026–2028)
- भारत सरकार द्वारा स्वीकृत घरेलू H5N1 इनएक्टिवेटेड वैक्सीन (ICAR-NIHSAD एवं हेस्टर बायोसाइंसेज) को चरणबद्ध तरीके से बड़े पैमाने पर लागू किया जाए।
- केरल द्वारा 2022 में अपनाए गए “डक वैक्सीनेशन मॉडल” को अन्य उच्च-जोखिम राज्यों में लागू किया जाए।
- पोल्ट्री निर्यात बनाए रखने हेतु कॉम्पार्टमेंटलाइजेशन नीति को तेज गति से अमल में लाया जाए।
3. दीर्घकालिक उपाय
- पिछवाड़े पोल्ट्री को संगठित ढांचे से जोड़ने के लिए “देसी मुर्गी मिशन” जैसी पहल शुरू की जाए, जिसमें प्रशिक्षण, बीज मुर्गी आपूर्ति, प्रबंधन और बायोसिक्योरिटी सहायता शामिल हो।
- जलवायु परिवर्तन के कारण प्रवासी पक्षियों के मार्ग और समय में हो रहे परिवर्तनों की मॉडलिंग, सैटेलाइट ट्रैकिंग और दीर्घकालिक शोध को प्राथमिकता मिले।
- One Health दृष्टिकोण को संस्थागत रूप से मजबूत किया जाए—पशु चिकित्सा, मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण और वन्यजीव विभागों के बीच एकीकृत आपात प्रतिक्रिया तंत्र तैयार किया जाए।
निष्कर्ष
यूरोप और उत्तरी अमेरिका में जारी 2025 का HPAI प्रकोप भारत के लिए स्पष्ट चेतावनी है। यदि हम अभी से सक्रिय निगरानी, बायोसिक्योरिटी और वैक्सीनेशन का सुदृढ़ ढांचा तैयार नहीं करते, तो जनवरी–मार्च 2026 का समय 2021 की तुलना में कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
यह केवल पोल्ट्री उद्योग का संकट नहीं होगा—यह ग्रामीण आजीविका, बच्चों के पोषण, महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा और देश की खाद्य सुरक्षा से जुड़ा व्यापक मुद्दा है। समय पर, वैज्ञानिक और समन्वित कदम ही इस संभावित संकट से निपटने का एकमात्र प्रभावी उपाय हैं।
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