India’s 16th Finance Commission: Arvind Panagariya’s Roadmap for Fiscal Balance and Stronger Federal Governance
भारत की 16वीं वित्त आयोग: डॉ. अरविंद पनागरिया के नेतृत्व में संघीय वित्तीय संतुलन की नई दिशा
एक संडे-स्पेशल विस्तृत विश्लेषण
प्रस्तावना: नए आर्थिक युग की पृष्ठभूमि में एक नया आयोग
भारत आज एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जहाँ आर्थिक निर्णय न केवल विकास दर तय करते हैं, बल्कि राज्यों के बीच अधिकार-वितरण, केंद्र-राज्य संबंधों की प्रकृति, और स्थानीय शासन की भविष्य की दिशा भी निर्धारित करते हैं।
2020 का दशक भारत के लिए परिवर्तन का दशक है—GST के प्रभावों की परिपक्वता, कोविड-19 के बाद की वित्तीय पुनर्बहाली, बढ़ते जलवायु जोखिम, और डिजिटल शासन के विस्तार ने वित्तीय ढांचे को जटिल बनाया है।
इसी पृष्ठभूमि में 16वीं वित्त आयोग का गठन हुआ और इसके अध्यक्ष बने—डॉ. अरविंद पनागरिया, भारत के उन चुनिंदा अर्थशास्त्रियों में से एक जिनके विचार भारत की नीति-निर्माण प्रक्रिया को वास्तविक दिशा दे सकते हैं।
इस संडे-स्पेशल ब्लॉग में हम समझेंगे:
- 16वीं वित्त आयोग की जरूरत क्यों पड़ी?
- डॉ. पनागरिया का दृष्टिकोण इस आयोग को कैसे प्रभावित करता है?
- आयोग की संरचना, कार्यक्षेत्र और संभावित सिफारिशें
- और अंत में—भारत के संघीय ढांचे पर इसका दीर्घकालिक प्रभाव
यह लेख आपको केवल सूचित ही नहीं करेगा, बल्कि आर्थिक नीति-निर्माण के “अंदरूनी तंत्र” को समझने की एक विशिष्ट खिड़की भी प्रदान करेगा।
1. वित्त आयोग: भारत के आर्थिक संघवाद की रीढ़
वित्त आयोग को समझे बिना 16वीं आयोग का महत्व समझना कठिन है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 ने वित्त आयोग को एक स्थायी संघीय तंत्र के रूप में स्थापित किया।
इसके मूल कार्य:
- केंद्र और राज्यों के बीच कर-साझेदारी तय करना
- राज्यों के बीच संसाधनों का न्यायोचित वितरण
- राज्यों और स्थानीय निकायों को अनुदान
- वित्तीय स्थिरता व ऋण प्रबंधन पर सुझाव
क्योंकि भारत एक विशाल और विविधतापूर्ण संघीय देश है—हिमालयी राज्य से लेकर सघन आबादी वाले पूरब तक, समृद्ध दक्षिण से लेकर भारी जनसंख्या वाले उत्तर तक—इसलिए एक समान आर्थिक नीति व्यावहारिक नहीं।
इसीलिए वित्त आयोग एक “संतुलनकर्ता संस्थान” है—जो विकास, क्षमता, आवश्यकता और प्रदर्शन को समग्र रूप से तौलता है।
2. 16वीं वित्त आयोग क्यों विशेष है?
16वाँ आयोग ऐसे दौर में आया जब देश के आर्थिक समीकरण बदले जा रहे हैं:
(1) GST मुआवजे का अंत
2022 के बाद राज्यों को 5 वर्ष का मुआवजा समाप्त हो चुका है। अब उन्हें अपने स्वयं के राजस्व स्रोतों के बल पर खड़ा होना है।
(2) राज्यों का बढ़ता ऋण संकट
कई राज्य – पंजाब, राजस्थान, केरल, बंगाल – 35% से अधिक कर्ज-GSDP अनुपात पार कर चुके हैं। ओल्ड पेंशन स्कीम जैसी नीतियाँ संकट को और बढ़ाती हैं।
(3) स्थानीय निकायों की बढ़ती जिम्मेदारियाँ
शहरीकरण की गति तेज हो चुकी है। 2036 तक 40% भारत शहरी होगा—परंतु नगर निगमों के पास पर्याप्त संसाधन नहीं।
(4) जलवायु परिवर्तन का आर्थिक खतरा
बाढ़, सूखा, तूफान—यह सब राज्य के बजट को भारी नुकसान पहुँचा रहे हैं।
(5) 2011 की जनगणना बनाम 1971 की बहस
दक्षिण भारत की आपत्ति—“जनसंख्या नियंत्रण के लिए हमें दंड क्यों?”
इन सबका समाधान वित्त आयोग से अपेक्षित है—और यही 16वीं आयोग को अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है।
3. डॉ. अरविंद पनागरिया: एक सुधारवादी अर्थशास्त्री की दृष्टि
डॉ. पनागरिया का व्यक्तित्व और बौद्धिक दृष्टिकोण इस आयोग की मूल आत्मा है।
उनके प्रमुख गुण:
- मुक्त व्यापार और उदारीकरण के प्रबल समर्थक
- उच्च विकास दर के लिए संरचनात्मक सुधारों के प्रवक्ता
- नीति आयोग के पहले उपाध्यक्ष (2015-17)
- भारत की “आर्थिक प्रतिस्पर्धा” के बड़े विचारक
- आर्थिक तर्कशीलता और विवेकपूर्ण वित्तीय अनुशासन के पक्षधर
उनका दृष्टिकोण केंद्रित है—
“उच्च विकास के लिए राज्यों की वित्तीय स्वतंत्रता और दक्षता ज़रूरी है।”
वे ऐसे अर्थशास्त्री हैं जो “लोकलुभावन” नीतियों की जगह “दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता” को प्राथमिकता देते हैं।
राजस्थान की पुरानी पेंशन योजना को “खतरनाक अविवेक” कहना उनकी सीधी और ईमानदार आर्थिक दृष्टि का प्रमाण है।
इसलिए 16वीं वित्त आयोग का नेतृत्व उनसे अपेक्षाओं को और अधिक यथार्थवादी व परिवर्तनकारी बनाता है।
4. आयोग की संरचना: विशेषज्ञता और अनुभव का मिश्रण
आयोग की संरचना इस तरह बनाई गई है कि इसमें—
- अनुभव
- अकादमिक शक्ति
- प्रशासनिक ज्ञान
- और व्यावहारिक समझ
सबका संतुलित मिश्रण मौजूद रहे।
मुख्य सदस्य:
- डॉ. अरविंद पनागरिया – अध्यक्ष
- अजय नारायण झा – पूर्व वित्त सचिव और 15वीं आयोग सदस्य
- एनी जॉर्ज मैथ्यू – पूर्णकालिक सदस्य
- प्रो. मनोज पांडा – प्रसिद्ध अर्थशास्त्री
- रितविक पांडे – सचिव (वित्त मंत्रालय)
यह टीम भारत की वित्तीय जटिलताओं को वैज्ञानिक और व्यावहारिक दोनों दृष्टिकोणों से संबोधित कर सकती है।
5. कार्यक्षेत्र: आयोग वास्तव में करता क्या है?
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तीन मुख्य कार्य तय किए:
(1) केंद्र और राज्यों के बीच कर-साझेदारी तय करना
यह तय होता है—
- राज्यों की क्षमता
- जरूरत
- कमजोर राज्यों की सहायता
- विकास संतुलन
(2) राज्यों को अनुदान देने के सिद्धांत
इनमें शामिल हो सकते हैं—
- प्राकृतिक आपदा
- स्वास्थ्य
- शिक्षा
- पुलिस बल
- जल प्रबंधन
- जलवायु अनुकूलन
- शहरीकरण प्रबंधन
(3) स्थानीय निकायों की वित्तीय क्षमता बढ़ाना
आने वाले वर्षों में पंचायतों और नगरपालिकाओं के लिए अलग फंड मॉडल विकसित होना तय है।
6. 16वीं आयोग की प्रमुख संभावित सिफारिशें
अब बात करते हैं उन सिफारिशों की जो भारत के आर्थिक परिदृश्य को बदल देंगी।
(1) राज्यों का कर-हिस्सा 41% से बढ़ सकता है
पिछले 8 वर्षों में राज्यों की जिम्मेदारियाँ बढ़ीं, पर संसाधन उतनी तेजी से नहीं।
संभावना है कि हिस्सा 41% से बढ़ाकर 42–45% किया जाए।
(2) “जनसंख्या आधारित फॉर्मूला” में सुधार
दक्षिण भारत की नाराज़गी दूर करने के लिए आयोग कर सकता है:
- 1971 और 2011 दोनों को समायोजित करना
- जनसंख्या नियंत्रण को “बोनस” के रूप में शामिल करना
- विकास स्तर, स्वास्थ्य, शिक्षा को प्रमुख संकेतक बनाना
(3) स्थानीय निकायों के लिए नए अनुदान
कुछ संभावित मॉडल:
- “परफॉर्मेंस बेस्ड फंडिंग”
- संपत्ति कर सुधार लागू करने पर बोनस
- जलवायु-जोखिम आधारित फंड
- स्मार्ट शहरी शासन के लिए विशेष अनुदान
(4) राज्यों के ऋण प्रबंधन पर कठोर दिशानिर्देश
पनागरिया “वित्तीय अनुशासन” को बहुत महत्व देते हैं।
इसलिए आयोग ध्यान देगा:
- ऑफ-बजट लोन पर नियंत्रण
- पेंशन बोझ के लिए चेतावनी
- DISCOM ऋण पुनर्गठन
- FRBM सुधार
(5) जलवायु वित्त को पहली बार शामिल करने की संभावना
भारत अब ऐसे युग में है जहां बाढ़, गर्मी, चक्रवात सीधे राज्यों के बजट तोड़ते हैं।
16वीं आयोग दे सकता है:
- ग्रीन फंड
- कार्बन कर-साझेदारी मॉडल
- आपदा राहत फंड का पुनर्गठन
7. आर्थिक प्रभाव: भारत किस दिशा में जाएगा?
यदि आयोग की सिफारिशें लागू होती हैं तो—
(1) राज्यों की वित्तीय स्वतंत्रता बढ़ेगी
वे अधिक योजनाएँ स्वयं डिज़ाइन कर पाएँगे।
(2) स्थानीय निकाय मजबूत होंगे
शहरीकरण की चुनौती कम होगी।
(3) केंद्र–राज्य संबंधों में संतुलन आएगा
सहकारी संघवाद को मजबूती मिलेगी।
(4) वित्तीय अनुशासन बढ़ेगा
लोकलुभावन खर्च सीमित होंगे।
(5) जलवायु प्रबंधन अधिक वैज्ञानिक बनेगा
भारत का विकास अधिक “सतत” होगा।
8. चुनौतियाँ: क्या सब इतना आसान होगा?
किसी भी सुधार की तरह, यह आयोग भी चुनौतियों से घिरा है।
(1) केंद्र और राज्यों के बीच राजनीतिक मतभेद
कर-वितरण पर हमेशा संघर्ष की संभावना रहती है।
(2) GST परिषद बनाम वित्त आयोग
दोनों का कार्यक्षेत्र कभी-कभी एक-दूसरे से टकराता है।
(3) राज्यों की वित्तीय अनियमितताएँ
कई राज्य सुधारों को लागू करने में इच्छुक नहीं।
(4) राजनीतिक वर्षों (चुनाव वाला वर्ष / चुनाव के नज़दीकी वर्ष) में आयोग की सिफारिशें विवादास्पद बन सकती हैं
2026-31 का काल आने वाले लोकसभा चुनावों को कवर करता है।
निष्कर्ष: भारत के आर्थिक भविष्य का निर्णायक मोड़
16वीं वित्त आयोग सिर्फ एक संवैधानिक अनिवार्यता नहीं है—
यह भारत के आर्थिक संघवाद की दिशा तय करने वाली सबसे महत्वपूर्ण संस्थागत प्रक्रिया है।
डॉ. अरविंद पनागरिया के नेतृत्व में यह आयोग—
- अधिक वैज्ञानिक
- अधिक व्यावहारिक
- और अधिक सुधारवादी
दिखाई देता है।
आने वाले वर्षों में इसकी सिफारिशें तय करेंगी कि—
- भारत की विकास गति कैसी होगी,
- राज्यों की क्षमता कितनी बढ़ेगी,
- और स्थानीय शासन कितनी मजबूती से उभरेगा।
भारत एक नए आर्थिक युग में प्रवेश कर रहा है—और 16वीं वित्त आयोग इस यात्रा के नक्शे का प्रमुख वास्तुकार है।
Comments
Post a Comment