India-China Relations Reimagined: From the 2020 Galwan Clash to the 2025 Tianjin Summit – A Geopolitical and Economic Reconciliation
भारत-चीन संबंधों का पुनरुद्धार: 2020 की सीमा झड़प से 2025 के तियानजिन शिखर सम्मेलन तक
भूमिका
2020 की गलवान घाटी की झड़प के बाद भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों में जो दरार आई, वह न केवल सैन्य गतिरोध थी बल्कि राजनैतिक-आर्थिक व सामाजिक परिप्रेक्ष्य में भी गहरी प्रतिबिंबित हुई। पांच वर्षों के भीतर 2025 के तियानजिन शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बैठक ने दोनों देशों के व्यवहारात्मक पुन:निकटरण (pragmatic rapprochement) का संकेत दिया। यह लेख उस परिवर्तन के कारणों, प्रक्रियात्मक रूपरेखा तथा क्षेत्रीय और वैश्विक निहितार्थों का समग्र और विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत करता है।
1. 2020 का संकट: घटनाक्रम और प्रभाव
जून 2020 में लद्दाख के गलवान घाटी में हुई हिंसक टकराव ने 1962 के बाद पहली बार दोनों सेनाओं के बीच घातक परिणाम दृष्टिगत किए। भारत की ओर से आधिकारिक रूप से घोषित मृत्यु-सांख्यिकियाँ व घटनाक्रम ने दोनों देशों के अंदर गहरे राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं उत्पन्न कर दीं — जनता में देशविरोधी भावनाएँ, चीनी ब्रांडों व सेवाओं के प्रति बहिष्कार की मुहिम, तथा सूचना-प्रौद्योगिकी और निवेश-नियमों में तात्कालिक बदलाव। सुरक्षा-दृष्टि से देखा जाए तो गलवान ने LAC (Line of Actual Control) के अस्पष्ट स्वरूप और सीमा-प्रवर्तन तंत्रों की कमज़ोरियों को उजागर किया।
2. संकट के बाद की अवधि: धारणा, नीति और अर्थव्यवस्था
गलवान के पश्चात् दोनों देशों ने कूटनीतिक, सैन्य और आर्थिक स्तरों पर कठोर रुख अपनाया — सीमा पर सैनिक तैयारियाँ, राजनयिक चैनलों का महत्वाक्रम, और घरेलू नीतिगत कदम जैसे कुछ चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध व FDI-नियमों में बदलाव। इसके बावजूद वास्तविक अर्थव्यवस्थात्मक निर्भरता एक ही समय में बनी रही। 2024-25 में द्विपक्षीय व्यापार ने फिर बढ़त दिखाई और कुछ रिपोर्टों के अनुसार व्यापार-घनत्व करीब 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर के आस-पास पहुँचा, जिसका अर्थ यह है कि नीति-निर्माताओं के लिए परस्पर आर्थिक जरूरतें राजनीतिक उद्देश्यों से अलग कर फलित व्यवहार (instrumental pragmatism) अपनाना अनिवार्य बनाती रहीं।
3. विक्षेप से व्यावहारिकता तक: कारण-संग्रह
निम्नलिखित कारणों ने 2020-2025 के बीच रिश्तों में धीरे-धीरे सामंजस्य की सम्भावना पैदा की:
- आर्थिक परस्परनिर्भरता: आपूर्ति-श्रृंखला, अत्यावश्यक औद्योगिक कच्चा माल (APIs), और इलेक्ट्रॉनिक्स की आपूर्ति में चीन की भूमिका ने व्यापारिक लागत और घरेलू कीमतों पर सीधे प्रभाव डाला — इसलिए दीर्घकालिक कटौती महँगी साबित होती।
- सीमा-व्यवस्थापन में उत्तरदायित्व: 2023-2025 के दौरों में सैन्य और कूटनीतिक वार्ताओं की निरंतरता ने सीमावर्ती प्रतिकूलताओं को न्यून करने में भूमिका निभाई; कुछ तनाव-बिंदुओं पर विसैन्यीकरण और बफर-जोन प्रस्तावों ने शांति के लिए व्यवहार्य ढांचे दिए।
- बहुपक्षीय प्रेरक और क्षेत्रीय परिप्रेक्षा: SCO, ब्रिक्स और अन्य मंचों पर गतिविधियों के कारण दोनों पक्षों को क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिए सहयोग का वास्तविक लाभ दिखा। भारत-चीन दोनों के लिए आशंकाएँ और अवसर साथ मौजूद रहे।
- रणनीतिक आत्मनिर्णय (Strategic Autonomy): भारत की ‘मल्टी-अलाइनमेंट’ नीति और चीन की क्षेत्रीय प्रतिबद्धताओं ने दोनों को third-party प्रभावों से पृथक्करण भर में समानांतर हितों को प्राथमिकता देने के लिए प्रेरित किया।
4. प्रक्रियाएँ: वार्ताओं, विसैन्यीकरण और भरोसे का निर्माण
2023 से 2025 के दौरान दोनों देशों ने सैन्य और विदेश मंत्रालय स्तर पर कई दौर की वार्ता की — जिनका प्रयोजन LAC पर नियंत्रण विनियमों का पक्ष-पुष्टि करना और पैट्रोलिंग-नियमों को पुनर्संरचित करना रहा। रिपोर्टों के अनुसार कई विवादित स्थानों (जैसे पांगोंग, डेपसांग, गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स) पर बफर जोन या सीमित-पैट्रोलिंग तंत्र लागू किए गए तथा verified disengagement के कुछ उदाहरण सामने आए। इस तरह के कदमों से शिखर-बैठकों (जैसे तियानजिन) की संवाद की संभावनाएँ मजबूत हुईं और नेताओं के बीच सीधे सम्पर्क के मार्ग खुल पाए।
5. तियानजिन शिखर सम्मेलन (2025): संकेत और परिणाम
तियानजिन में आयोजित SCO शिखर सम्मेलन के अवसर पर मोदी-शी की द्विपक्षीय चर्चा ने निर्णायक सिग्नल भेजे: दो नेताओं ने सीमा-क्षेत्रों में शांति तथा द्विपक्षीय बातचीत जारी रखने पर जोर दिया, तथा व्यापार, निवेश और लोगों-से-लोगों संपर्क को पुनर्जीवित करने पर सहमति व्यक्त की। आधिकारिक प्रेस-स्टेटमेंटों में यह संदेश भी निहित था कि सीमा-विवादों को द्विपक्षीय रिश्तों की परिभाषा नहीं बनने दिया जाएगा और स्थिरता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यह चरण दर्शाता है कि परस्पर हितों और क्षेत्रीय जिम्मेदारियों के कारण दोनों पक्षों ने ‘व्यवहारिक वापसी’ चुन ली है।
6. सैद्धांतिक विवेचना (तत्वगत-विश्लेषण)
यहाँ तीन प्रमुख अंतरराष्ट्रिय संबंधों के सिद्धान्तों के परिप्रेक्ष्य से विश्लेषण प्रस्तुत है:
- वास्तववाद (Realism): राज्य अपनी सुरक्षा और हितों का पर्यवेक्षण करते हैं; गलवान जैसी घटनाएँ इस नज़रिए से शक्ति-द्वंद्व के उदाहरण हैं। तथापि व्यवहारिक नीति-निर्माण (disengagement, buffer zones) यह दिखाता है कि शक्ति-संतुलन की स्वीकृति के साथ आर्थिक व्यवहारिकताएँ भी दखल देती हैं।
- उदारवाद (Liberalism): बढ़ता हुआ व्यापार और बहुपक्षीय संस्थागत जुड़ाव अभिव्यक्त करता है कि आर्थिक-सहयोग संघर्ष की संभावना को सीमित कर सकता है (commercial pacifism)। तियानजिन में दोनों नेताओं का सहयोग व वाणिज्यिक मुद्दों पर फोकस इसी विमर्श का प्रतिक है।
- संरचनात्मक/संयोजक परिवर्तन (Structural Change & Multi-Alignment): क्वाड, SCO और ब्रिक्स जैसे क्षेत्रीय/अंतरराष्ट्रीय संदर्भों में भारत का भूमिका-निर्धारण यह इंगित करता है कि छोटे-विकल्पों का संयोजन कर पेशेवर कूटनीति दोनों के बीच संतुलन बनाती है—यानी प्रतिद्वंद्विता और समन्वय एक साथ संभव हैं।
7. भू-राजनीतिक निहितार्थ और भारत की चुनौतियाँ
तियानजिन-स्तर का पुनरुद्धार कई मायनों में सकारात्मक है—यह आर्थिक गतिविधि के सामान्यीकरण, क्षेत्रीय स्थिरता और बहुपक्षीय संवाद के लिए रास्ता खोलता है। परन्तु कुछ सतत चुनौतियाँ मौजूद हैं:
- LAC की अस्थिरता व परिभाषा: वास्तविक नियंत्रण रेखा का कोई सर्वमान्य मानचित्र अभी शेष है; छोटे-छोटे टकराव फिर से उभर सकते हैं यदि पैट्रोलिंग-प्रोटोकॉल की कड़ाई से निगरानी नहीं की गई।
- अर्थव्यवस्था में निर्भरता का जोखिम: चीन पर अत्यधिक निर्भरता (खासकर APIs, इलेक्ट्रॉनिक्स) भारत की आपूर्ति-सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा कर सकती है; इसलिए आपूर्ति-श्रृंखला-विविधीकरण आवश्यक है।
- विश्व-रणनीति में दुविधाएँ: रूस-पार्सल सम्बंधित, अमेरिका-चीन-भारत के बीच बदलते समीकरणों के कारण भारत को संतुलन नीति में सतत चुस्ती बरतनी होगी ताकि राष्ट्रीय हित बाधित न हों।
8. नीतिगत सिफारिशें (नीतिगत-फ्रेमवर्क)
भारत के लिए व्यावहारिक नीतिगत विकल्प निम्न हो सकते हैं:
- आत्मनिर्भरता का लक्षित निर्माण, विविधीकरण नहीं प्रतिश्रुति: सौर, इलेक्ट्रॉनिक्स और API आपूर्ति में घरेलू-आधारित उद्योगों और मित्र राष्ट्रों के साथ साझेदारी बढ़ाना।
- प्रोटोकॉल-आधारित सीमा-प्रबंधन: VERIFIED disengagement, संयुक्त मानचित्र समीक्षा, सीमांत पैट्रोलिंग-रूटीन और त्वरित सैन्य-कमीशन-कॉन्टेक्ट मैकेनिज्म को औपचारिक रूप देना।
- बहु-स्तरीय कूटनीति: SCO, BRICS जैसे बहुपक्षीय मंचों का उपयोग, साथ ही द्विपक्षीय आर्थिक फोरमों द्वारा विश्वास-निर्माण और व्यापार चेन सुरक्षा को सुदृढ़ करना।
- जन-संबंध और परस्पर-संस्कृति संपर्क: लोगों-से-लोगों के प्रोग्रामों, अकादमिक व व्यावसायिक गठबंधनों को धीरे-धीरे पुनर्जीवित करना ताकि सामाजिक स्तर पर भरोसा आकार ले सके।
9. निष्कर्ष: वास्तविकता बनाम आकांक्षा
2020 के गलवान झटके और 2025 के तियानजिन शिखर सम्मेलन के बीच का मार्ग बताता है कि भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और आर्थिक सहयोग पारस्परिक रूप से विरोधाभासी नहीं होते — वे जटिल, परस्पर-निर्भर और परिस्थितिजन्य होते हैं। तियानजिन समझौता एक महत्वपूर्ण मील-पत्थर है, परन्तु दीर्घकालिक स्थायित्व के लिए LAC पर स्वीकार्य नियम, भरोसे की बहाली और अर्थव्यवस्था-सुरक्षा संतुलन की रणनीति आवश्यक रहेगी। भारत और चीन के लिए वास्तविक चुनौती यह सुनिश्चित करना होगी कि आर्थिक सहयोग भू-राजनीतिक स्थिरता का पूरक बने न कि उसका विकल्प।
संदर्भ
- Economic Times — “India-China border dispute explained: Revisiting the 2020 Galwan clash…” (2024).
- Ministry of External Affairs, Government of India — Press releases and bilateral meeting transcript (August–September 2025).
- Reuters / AP — Coverage of Modi-Xi meeting and commitments at Tianjin (2025).
- Times of India / Trade reports — India-China trade figures 2024-25.
- The Washington Post. (2025). “Five years after Galwan, India-China ties revive.”
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