पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की सेहत और सुरक्षा का सवाल
अफवाहों की लहर, पारदर्शिता की मांग और अंतरराष्ट्रीय चिंता
परिचय
पाकिस्तान की राजनीति में इमरान खान सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि सत्ता संघर्ष, जनसमर्थन और संस्थागत तनाव का प्रतीक बन चुके हैं। अगस्त 2023 से आदियाला जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री को लेकर नवंबर 2025 में अचानक उठी अफवाहों ने न सिर्फ पाकिस्तान के भीतर हलचल मचा दी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी सतर्क कर दिया। सोशल मीडिया पर उनके समर्थकों द्वारा #WhereIsImranKhan अभियान छेड़ने और परिवार व पीटीआई द्वारा “प्रूफ ऑफ लाइफ” की मांग के बाद मामला और गंभीर हो गया। इसी परिप्रेक्ष्य में भारतीय सांसद डॉ. शशि थरूर का बयान मानवाधिकार और पारदर्शिता के प्रश्न को और प्रमुखता से सामने रखता है।
कैद, प्रतिबंध और अफवाहों का विस्फोट
इमरान खान, जिनकी सरकार 2022 में अविश्वास प्रस्ताव से गिर गई थी, पिछले दो वर्षों में कई संगीन आरोपों से घिरे रहे—जिन्हें वे राजनीतिक प्रतिशोध बताते हैं। 73 वर्षीय नेता को आदियाला जेल में 14 साल की सजा के तहत रखा गया है, लेकिन नवंबर 2025 में परिवार और वकीलों से अचानक मुलाकातें रोक दिए जाने से शक पैदा होने लगा।
स्थिति तब और विस्फोटक हो गई जब अफगान मीडिया की एक स्रोत-आधारित खबर ने दावा कर दिया कि खान की “जेल में हत्या कर दी गई।” यह दावा कुछ ही घंटों में सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गया।
उनकी बहनों—अलीमा और रुबिया—को जेल के बाहर मिलने की कोशिश के दौरान कथित रूप से पुलिस द्वारा रोका और मारा-पीटा गया, जिसने जनता का अविश्वास और बढ़ा दिया। खान के बेटे सुलेमान इसा खान ने सोशल मीडिया पर चिंता जताते हुए लिखा कि उनके पिता को “एकांत में रखा गया है और कोई पारदर्शिता नहीं है।”
पीटीआई के प्रवक्ता ज़ुल्फ़िकार बुखारी ने सरकार से तत्काल आधिकारिक बयान की मांग करते हुए कहा कि “देश और दुनिया को बताया जाए कि खान सुरक्षित हैं या नहीं।”
दूसरी ओर, पाकिस्तानी प्रशासन ने सभी अफवाहों को खारिज करते हुए दावा किया कि खान “पूरी तरह स्वस्थ” हैं और उन्हें “बेहतरीन चिकित्सा सुविधाएँ” मिल रही हैं। रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने इसे “फाइव-स्टार ट्रीटमेंट” तक कहा। लेकिन जेल के बाहर भारी सुरक्षा बढ़ा दी गई—2,500 अतिरिक्त पुलिसकर्मी, बैरिकेड, और सुरक्षा अलर्ट—जिससे अंदेशा और गहरा गया।
स्थानीय मीडिया ने यह भी रिपोर्ट किया कि खान को “उच्च-निरोध” सुविधा में स्थानांतरित करने की योजना थी, जो मुलाकातों पर और सख्ती लाता।
शशि थरूर का बयान: मानवता के पक्ष में कूटनीतिक संतुलन
ऐसे संवेदनशील समय में 29 नवंबर 2025 को कांग्रेस सांसद डॉ. शशि थरूर ने एएनआई से बातचीत में पाकिस्तान की चुप्पी पर सवाल उठाए।
उन्होंने कहा:
“यह पाकिस्तान का आंतरिक मामला माना जा सकता है, लेकिन अंततः बात एक इंसान की जिंदगी की है। किसी को जेल में बंद करके ‘गायब’ नहीं किया जा सकता। सरकार को स्पष्ट और पारदर्शी जानकारी देनी चाहिए।”
थरूर ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत को प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, लेकिन “चुप्पी सबसे चिंताजनक” है। उनका रुख मानवाधिकारों के दृष्टिकोण से था, जो संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों से मेल खाता है।
भारतीय विपक्ष के इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ राजनीतिक मतभेदों के बावजूद मानवाधिकार के मुद्दों पर सुसंगत आवाज उठाई जाती रही है। 2022 में इमरान खान पर हुए हमले के बाद भी भारतीय नेताओं ने चिंता जताई थी—थरूर का यह बयान उसी परंपरा का विस्तार है।
सियासत, सेना और मानवाधिकार: बहुआयामी संकट
पाकिस्तान की राजनीति में सेना का प्रभाव किसी से छिपा नहीं। सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर की हालिया पदोन्नति और खान के साथ उनके पुराने मतभेद विभिन्न राजनीतिक विश्लेषकों को यह संकेत देते हैं कि राज्य की शक्ति-संरचना और विपक्षी नेतृत्व के बीच टकराव चरम पर है।
पीटीआई यह दावा कर रही है कि खान की लोकप्रियता और विरोध आंदोलन सेना के लिए चुनौती बन चुके हैं—और इसी वजह से अफवाहें दबाने या जनमत को भटकाने का प्रयास किया जा रहा है।
मानवाधिकारों के दृष्टिकोण से यह मामला और गंभीर है। संयुक्त राष्ट्र के मानकों के अनुसार, कैदियों को नियमित चिकित्सकीय निरीक्षण और परिवार से मिलने का अधिकार है। खान को एकांत में रखने, मुलाकातें रोकने और आधिकारिक जानकारी न देने को अंतरराष्ट्रीय संगठन चिंताजनक मान रहे हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी हाल के वर्षों में पाकिस्तान की जेल पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं।
निष्कर्ष
इमरान खान की सेहत और सुरक्षा को लेकर फैली अफवाहें मात्र राजनीतिक हलचल नहीं, बल्कि पाकिस्तान की संस्थागत कार्यप्रणाली, पारदर्शिता और मानवाधिकारों की स्थिति का आईना हैं।
शशि थरूर का बयान इस संकट के मानवीय पहलू को उजागर करता है—यह याद दिलाता है कि लोकतंत्र में राज्य की जवाबदेही अपरिहार्य है।
पाकिस्तानी सरकार के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदम होगा:
- इमरान खान की स्थिति पर स्पष्ट और प्रमाणिक जानकारी जारी करना
- परिवार और वकीलों से नियमित मुलाकात बहाल करना
- जेल पारदर्शिता के मानक उपायों को लागू करना
अस्पष्टता और चुप्पी न केवल जनता को भड़काती है, बल्कि क्षेत्रीय राजनीति में अविश्वास भी बढ़ाती है। भारत-पाकिस्तान जैसे संवेदनशील पड़ोसियों के बीच तो यह और भी गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
अंततः, यह संकट याद दिलाता है कि सत्ता संघर्ष चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो—मानवता, पारदर्शिता और जीवन की सुरक्षा किसी भी सीमा से ऊपर है।
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