दक्षिण अफ़्रीका G20 शिखर सम्मेलन, अमेरिका की अनुपस्थिति और जलवायु घोषणापत्र: एक व्यापक विश्लेषण
दक्षिण अफ़्रीका में 22-23 नवंबर 2025 को संपन्न G20 नेताओं का शिखर सम्मेलन वैश्विक जलवायु शासन और बहुपक्षीय सहयोग में एक निर्णायक मोड़ सिद्ध हुआ। इस सम्मेलन में पारित जलवायु घोषणापत्र न केवल अपने महत्वाकांक्षी प्रावधानों के कारण ऐतिहासिक है, बल्कि इसलिए भी कि इसे संयुक्त राज्य अमेरिका की भागीदारी, समर्थन या सहमति के बिना अपनाया गया। अमेरिकी प्रशासन ने इस कदम को “शर्मनाक” कहकर खारिज किया, जबकि दक्षिण अफ़्रीका ने स्पष्ट कर दिया कि घोषणापत्र की भाषा पर किसी प्रकार की पुनर्विचार प्रक्रिया संभव नहीं है।
यह स्थिति ट्रम्प प्रशासन के दूसरे कार्यकाल में अमेरिका की जलवायु कूटनीति से पीछे हटने की प्रवृत्ति को उजागर करती है और यह भी संकेत देती है कि वैश्विक शक्ति-संतुलन अब नए भू-राजनीतिक ढांचे की ओर बढ़ रहा है।
1. घोषणापत्र की प्रमुख विशेषताएँ
दक्षिण अफ़्रीका G20 घोषणापत्र को जलवायु कार्रवाई की दृष्टि से अभूतपूर्व माना जा रहा है। इसकी मुख्य विशेषताएँ हैं:
• जलवायु संकट को अस्तित्वगत खतरा घोषित करना
घोषणापत्र जलवायु परिवर्तन को “मानवता के समक्ष अस्तित्व का संकट” बताते हुए कठोर और समयबद्ध कार्रवाई की अनिवार्यता पर सहमति स्थापित करता है।
• वैश्विक दक्षिण के लिए वित्तीय प्रतिबद्धताओं का विस्तार
कमज़ोर और अल्पविकसित देशों के लिए अनुकूलन, हानि-लाभ (Loss & Damage) और क्षमता-निर्माण में उल्लेखनीय वित्तीय वृद्धि का आह्वान किया गया है।
• जीवाश्म ईंधन से ऊर्जा संक्रमण का स्पष्ट रोडमैप
ऊर्जा परिवर्तन के लिए समय-सीमा, वित्त-व्यवस्था और तकनीकी सहायता के ठोस तंत्र सम्मिलित किए गए हैं।
• ‘साझा लेकिन भिन्न ज़िम्मेदारी’ (CBDR) का पुनर्स्थापन
घोषणापत्र वैश्विक दक्षिण की इस मांग को पुनः स्थापित करता है कि जलवायु कार्रवाई की जवाबदेही ऐतिहासिक उत्सर्जनों के आधार पर क्रमबद्ध होनी चाहिए।
इन सभी बिंदुओं का अमेरिका वर्षों से विरोध करता रहा है, विशेषकर ट्रम्प प्रशासन जिसके अनुसार जलवायु वित्त “अमेरिकी करदाताओं के धन का दुरुपयोग” है और CBDR सिद्धांत “अमेरिका के खिलाफ भेदभावपूर्ण” है।
2. अमेरिकी अनुपस्थिति का रणनीतिक अर्थ
G20 जलवायु कार्य-समूह की बैठकों से दूरी और शिखर सम्मेलन में उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भेजने से इंकार, अमेरिका की रणनीति को स्पष्ट रूप से तीन रूपों में प्रकट करता है:
• घरेलू ऊर्जा उद्योग की सुरक्षा
अमेरिकी प्रशासन का मानना है कि कठोर वैश्विक जलवायु दायित्व उसकी तेल, गैस और कोयला उद्योगों को नुकसान पहुँचाएंगे।
• बहुपक्षीय दायित्वों से विमुख होना
“अमेरिका पहले” की नीति अमेरिकी विदेश नीति को ऐसे समझौतों से दूर ले जा रही है, जिनमें साझा ज़िम्मेदारियाँ या वित्तीय योगदान की शर्तें हों।
• चीन के उभरते प्रभाव का प्रतिरोध
अमेरिका का तर्क है कि जलवायु वित्त तंत्र, विशेषकर बहुपक्षीय मंचों के ज़रिए, चीन को प्रभाव बढ़ाने का माध्यम बन सकता है।
इन कारणों से अमेरिका ने घोषणापत्र के साथ स्वयं को जोड़ने से स्पष्ट रूप से इनकार किया।
3. वैश्विक दक्षिण का उभरता आत्मविश्वास
अमेरिकी अनुपस्थिति ने दक्षिण अफ़्रीका, भारत, ब्राज़ील, इंडोनेशिया और अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को अपने एजेंडा को अधिक दृढ़ता से आगे बढ़ाने का अवसर दिया।
“G19 + EU” ढांचे के रूप में घोषणापत्र पारित करना यह दर्शाता है कि वैश्विक दक्षिण अब किसी भी बड़े मंच पर अमेरिकी वीटो की संभावनाओं को दरकिनार करने में सक्षम हो चुका है।
इस आत्मविश्वास के पीछे कई कारक हैं:
• विस्तारित BRICS समूह का बढ़ता प्रभाव
BRICS का आर्थिक वजन और वैकल्पिक संस्थागत ढांचे (जैसे न्यू डेवलपमेंट बैंक) इसे पश्चिमी ढांचे के समानांतर शक्तिशाली बना रहे हैं।
• चीन का वैकल्पिक वित्तीय नेटवर्क
बेल्ट एंड रोड और विकास बैंकों के ज़रिए चीन विकासशील देशों के लिए महत्वपूर्ण फंडिंग का स्रोत बन चुका है।
• यूरोपीय संघ का आंशिक संरेखण
EU ने जलवायु मुद्दे पर वैश्विक दक्षिण की प्राथमिकताओं को अधिक स्वीकारना प्रारंभ किया है, जिससे समीकरण अमेरिका से हटकर दक्षिण की ओर झुक रहा है।
4. दीर्घकालिक वैश्विक प्रभाव
दक्षिण अफ़्रीका घोषणापत्र वैश्विक जलवायु शासन पर गहरे और दूरगामी प्रभाव डाल सकता है:
• अमेरिकी नेतृत्व का क्षरण
अमेरिका की जलवायु नेतृत्व की स्थिति अब लगभग समाप्तप्राय दिखाई देती है। यह रुझान आगामी COP बैठकों में और स्पष्ट हो सकता है।
• नए बहुपक्षीय ढांचों का उदय
संभावना है कि जलवायु वित्त, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और अनुकूलन के लिए ऐसे नए बहुपक्षीय ढांचे सामने आएँगे जिनमें अमेरिका की भूमिका न्यूनतम या अनुपस्थित होगी।
• पेरिस समझौते पर पुनर्विचार
यदि अमेरिका अलगाव जारी रखता है, तो पेरिस समझौता अपनी मूल राजनीतिक और आर्थिक संरचना खो सकता है—और विश्व नए वैकल्पिक जलवायु शासन मॉडल की ओर बढ़ सकता है।
निष्कर्ष
दक्षिण अफ़्रीका में हुआ G20 शिखर सम्मेलन और उसका जलवायु घोषणापत्र वैश्विक जलवायु राजनीति के इतिहास में एक मील का पत्थर है। यह पहली बार है जब G20 जैसे प्रमुख मंच पर इतना व्यापक और बाध्यकारी जलवायु एजेंडा बिना अमेरिकी सहमति के स्वीकार किया गया।
यह घटना स्पष्ट संकेत देती है कि वैश्विक नेतृत्व अब पश्चिम से हटकर वैश्विक दक्षिण की ओर पुनर्संतुलित हो रहा है।
आने वाले वर्षों में यह परिवर्तन न केवल जलवायु कूटनीति का ढांचा बदल देगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों की व्यापक संरचना पर भी गहरा प्रभाव डालेगा।
With Reuters Inputs
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