ट्रंप का नोबेल शांति पुरस्कार का जुनून: दावे बनाम हकीकत
डोनाल्ड ट्रंप का नोबेल शांति पुरस्कार का सपना 2018 से 2025 तक चर्चा में रहा है। 2018 में उन्होंने अब्राहम समझौतों को ऐतिहासिक बताकर खुद को नोबेल का हकदार ठहराया। 2025 में उनके दावे और बड़े हो गए—उन्होंने कहा कि उन्होंने सात युद्ध खत्म किए और गाजा में शांति की योजना बनाई। लेकिन क्या उनके दावे सचमुच इतने बड़े हैं, या यह सिर्फ प्रचार है? 10 अक्टूबर 2025 को नोबेल समिति की घोषणा से पहले, गाजा और यूक्रेन के संकटों के बीच यह सवाल और गहरा गया है। आलोचक इसे "प्रभुत्व, न कि संवाद" कहते हैं। आइए, सरल भाषा में उनके दावों और हकीकत की पड़ताल करें।
2018: अब्राहम समझौते और नोबेल का दावा
2018 में ट्रंप ने अब्राहम समझौतों को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बताया। इन समझौतों के तहत इजरायल ने संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मोरक्को और सूडान जैसे अरब देशों के साथ राजनयिक संबंध बनाए। ट्रंप ने इसे मध्य पूर्व में शांति की नींव कहा और नोबेल की मांग की। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी उनका समर्थन किया। लेकिन आलोचकों का कहना है कि ये समझौते अमेरिकी हथियारों की बिक्री और आर्थिक लालच पर आधारित थे। गाजा में फिलिस्तीनियों के लिए कोई राहत नहीं मिली, और वहां का संघर्ष आज भी बदतर है। ये समझौते एक कदम थे, लेकिन स्थायी शांति से कोसों दूर। नोबेल समिति ऐसी उपलब्धियों को पुरस्कार नहीं देती, जो सिर्फ सौदों पर टिकी हों।
2025: सात युद्ध खत्म करने का दावा
2025 में ट्रंप के दावे और ऊंचे हो गए। संयुक्त राष्ट्र में उन्होंने कहा कि उन्होंने सात "असमाप्तीय" युद्ध खत्म किए:
- भारत-पाकिस्तान तनाव: कश्मीर में तनाव कम करने में उनकी कोई ठोस भूमिका नहीं रही।
- इजरायल-ईरान संघर्ष: यह तनाव आज भी गाजा और लेबनान में दिखता है।
- आर्मेनिया-अजरबैजान विवाद: नागोर्नो-करबाख में संघर्ष अभी भी सुलग रहा है।
- रवांडा-कांगो झड़पें: सीमित डिप्लोमेसी थी, लेकिन कोई स्थायी हल नहीं।
- सर्बिया-कोसोवो तनाव: बातचीत शुरू हुई, लेकिन पूरी शांति नहीं।
- इथियोपिया-मिस्र जल विवाद: यह कोई युद्ध था ही नहीं, सिर्फ कूटनीतिक तनाव।
- अन्य छोटे विवाद: ट्रंप ने कई छोटे तनावों को युद्ध बताकर श्रेय लिया।
उन्होंने गाजा के लिए 20-सूत्री शांति योजना का दावा भी किया, जिसे वे "आठवां युद्ध" खत्म करने की कुंजी बताते हैं। लेकिन पोलिटिफैक्ट और न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे फैक्ट-चेकर्स ने इन दावों को गलत या अतिशयोक्तिपूर्ण बताया। कई "युद्ध" तो युद्ध थे ही नहीं, और कुछ में ट्रंप की भूमिका सिर्फ बयानबाजी तक सीमित थी। गाजा में आज भी बमबारी और मानवीय संकट है, जो उनकी योजना की नाकामी दिखाता है।
"रसियागेट" और यूक्रेन-रूस युद्ध
ट्रंप का रूस-यूक्रेन युद्ध को "24 घंटे में खत्म" करने का दावा सबसे विवादास्पद है। उन्होंने यूक्रेन को सैन्य मदद रोकने, नाटो की राह में रोड़ा डालने, और रूस के राष्ट्रपति पुतिन को "उदार" बताने की बात की। यह शांति का रास्ता नहीं, बल्कि यूक्रेन को रूस के सामने झुकाने की नीति है। आलोचक कहते हैं कि ट्रंप की नीतियां शांति नहीं, बल्कि एक पक्ष को मजबूत करने की कोशिश हैं। नोबेल समिति ऐसी रणनीति को कभी स्वीकार नहीं करेगी, क्योंकि यह हिंसा को बढ़ावा दे सकती है।
क्यों नहीं मिलेगा ट्रंप को नोबेल?
नोबेल शांति पुरस्कार लंबे समय तक चलने वाली शांति, अंतरराष्ट्रीय सहयोग, और मानवाधिकारों को बढ़ावा देने वालों को मिलता है। ट्रंप की नीतियां इन मापदंडों पर खरी नहीं उतरतीं:
- जलवायु पर रुख: ट्रंप ने जलवायु संधियों को खारिज किया, जबकि नोबेल समिति जलवायु कार्यों को प्राथमिकता देती है।
- ट्रांजेक्शनल डिप्लोमेसी: ट्रंप की नीतियां सौदों और दबाव (जैसे टैरिफ) पर आधारित हैं, न कि संवाद पर।
- अल्पकालिक प्रभाव: अब्राहम समझौते एक कदम थे, लेकिन गाजा और यूक्रेन जैसे संकटों में उनकी नीतियां नाकाम रहीं।
नॉर्वे के नोबेल विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप की संभावनाएं "लगभग शून्य" हैं। समिति स्थायी शांति और वैश्विक सहयोग को महत्व देती है, जो ट्रंप की शैली से मेल नहीं खाता।
10 अक्टूबर की घोषणा और हकीकत
10 अक्टूबर 2025 को नोबेल समिति अपना फैसला सुनाएगी। गाजा में बमबारी और यूक्रेन में युद्ध के बीच ट्रंप का नोबेल जुनून हास्यास्पद लगता है। उन्हें कुछ नामांकन मिले होंगे—समिति नामांकन गोपनीय रखती है—लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि पुरस्कार मिलना असंभव है। ट्रंप कहते हैं कि नोबेल न मिलना "अमेरिका का अपमान" होगा, लेकिन असल अपमान तो उनके अतिशयोक्तिपूर्ण दावे हैं, जो शांति को प्रचार का हथियार बनाते हैं।
निष्कर्ष: हाइप से ज्यादा कुछ नहीं
ट्रंप का रिकॉर्ड उनके दावों से कहीं कमजोर है। अब्राहम समझौते एक उपलब्धि थे, लेकिन सात युद्ध खत्म करने का दावा खोखला है। गाजा और यूक्रेन के संकट उनकी नीतियों की नाकामी उजागर करते हैं। शांति के लिए संवाद, सहानुभूति और स्थिरता चाहिए, न कि ट्वीट्स और दबाव। नोबेल समिति का फैसला ट्रंप के जुनून को शांत करेगा और दुनिया को याद दिलाएगा कि सच्ची शांति प्रचार से नहीं, बल्कि सार्थक प्रयासों से बनती है। ट्रंप का यह सपना शायद उनकी रैलियों में तालियां बटोरे, लेकिन नोबेल की मंच पर यह फीका पड़ता है।
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