प्रधानमंत्री मोदी की आसियान शिखर सम्मेलन में गहन सांस्कृतिक संबंधों की अपील: एक विश्लेषणात्मक दृष्टि
प्रस्तावना
आसियान (ASEAN - Association of Southeast Asian Nations) शिखर सम्मेलन केवल आर्थिक या रणनीतिक संवाद का मंच नहीं है, बल्कि यह साझा सभ्यताओं के बीच पुल का कार्य भी करता है। 2025 के आसियान शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभासी संबोधन इसी दृष्टिकोण को सजीव रूप में प्रस्तुत करता है। उन्होंने कहा — “हम केवल व्यापारिक साझेदार नहीं, बल्कि सांस्कृतिक सहयोगी भी हैं।” यह कथन भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के बीच हजारों वर्षों पुराने ऐतिहासिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक संबंधों को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक सशक्त संदेश देता है।
मोदी का यह वक्तव्य उस नीति-परिवर्तन का प्रतीक है जो भारत की विदेश नीति को केवल भू-राजनीतिक रणनीति तक सीमित न रखकर सभ्यतागत कूटनीति की दिशा में आगे बढ़ा रहा है।
1. सांस्कृतिक बंधनों का ऐतिहासिक आधार
भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच सांस्कृतिक संपर्क का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म, और वैदिक परंपराएँ न केवल धार्मिक रूप से, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी इन देशों में गहराई से समाहित हैं।
- इंडोनेशिया में रामायण और महाभारत के प्रसंगों पर आधारित नृत्य-नाट्य आज भी लोकप्रिय हैं।
- थाईलैंड के राजा ‘राम’ उपाधि धारण करते हैं, जो भारतीय रामकथा परंपरा की प्रतिध्वनि है।
- कंबोडिया का विश्वविख्यात अंगकोरवाट मंदिर भारतीय स्थापत्य और धार्मिक विचारधारा का जीता-जागता उदाहरण है।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में इस साझा सांस्कृतिक विरासत को 21वीं सदी की साझेदारी की नींव बताया। उन्होंने कहा कि “इतिहास हमें जोड़ता है, भविष्य हमें साथ बढ़ने का अवसर देता है।”
2. सॉफ्ट पावर और सांस्कृतिक कूटनीति
भारत की सॉफ्ट पावर नीति का मूल तत्व है — संस्कृति के माध्यम से कूटनीतिक संबंधों को सशक्त बनाना।
योग, आयुर्वेद, भारतीय संगीत, साहित्य और सिनेमा जैसे तत्व विश्व स्तर पर भारत की पहचान बन चुके हैं। मोदी ने सुझाव दिया कि आसियान देशों में भारत की सांस्कृतिक विरासत को अधिक सशक्त रूप से प्रस्तुत किया जाए —
- “ASEAN-India Cultural Year” जैसे वार्षिक उत्सव आयोजित किए जाएं।
- दोनों पक्षों के बीच फिल्म फेस्टिवल, सांस्कृतिक यात्राएं और पर्यटन महोत्सव को बढ़ावा दिया जाए।
- बौद्ध सर्किट, नालंदा विश्वविद्यालय, और इंडोनेशिया-थाईलैंड के धार्मिक स्थलों को जोड़ते हुए ‘Spiritual Tourism Corridor’ विकसित किया जाए।
इस प्रकार की पहलें न केवल सांस्कृतिक समझ को गहरा करेंगी, बल्कि पर्यटन और आर्थिक लाभ का भी द्वार खोलेंगी।
3. आर्थिक साझेदारी में सांस्कृतिक सहयोग का योगदान
प्रधानमंत्री मोदी ने यह स्पष्ट किया कि सांस्कृतिक संबंध केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी अत्यंत व्यावहारिक हैं।
भारत और आसियान के बीच 2024-25 में 120 बिलियन डॉलर से अधिक का व्यापार हुआ है। यदि सांस्कृतिक सहयोग के माध्यम से पर्यटन, हस्तशिल्प, शिक्षा, और सृजनात्मक उद्योगों में साझेदारी बढ़ाई जाए, तो यह व्यापारिक संबंध और भी मजबूत होंगे।
उदाहरण के लिए —
- हेरिटेज संरक्षण परियोजनाओं में संयुक्त निवेश किया जा सकता है।
- कला और हस्तशिल्प एक्सचेंज प्रोग्राम से लघु उद्योगों को वैश्विक मंच मिलेगा।
- सांस्कृतिक पर्यटन के लिए वीज़ा सुगमता और ई-कनेक्टिविटी से नए अवसर पैदा होंगे।
इस तरह सांस्कृतिक और आर्थिक सहयोग एक-दूसरे के पूरक बन सकते हैं।
4. शिक्षा और युवा आदान-प्रदान की भूमिका
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कहा कि “भविष्य की साझेदारी युवा मनों से बनती है।”
भारत और आसियान देशों के बीच छात्रवृत्तियों, विश्वविद्यालयीय सहयोग और युवा नेतृत्व मंचों के माध्यम से सांस्कृतिक मूल्यों का आदान-प्रदान अत्यंत आवश्यक है।
- भारत के ICCR (Indian Council for Cultural Relations) के तहत ASEAN Fellowship Scheme को और विस्तारित किया जा सकता है।
- विश्वविद्यालयों में ASEAN-India Study Centres की स्थापना से अनुसंधान और भाषा अध्ययन को बढ़ावा मिलेगा।
- युवा उत्सवों और डिजिटल संवाद मंचों के माध्यम से “जन से जन संपर्क” (People-to-People Connectivity) को बल मिलेगा।
5. सांस्कृतिक कूटनीति: वैश्विक चुनौतियों का समाधान
सांस्कृतिक सहयोग केवल परंपरा का सम्मान नहीं, बल्कि वैश्विक चुनौतियों का एक संभावित समाधान भी है।
- जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध पारंपरिक जीवनशैली और पर्यावरणीय ज्ञान प्रणाली (Indigenous Knowledge) से प्रेरणा ली जा सकती है।
- आतंकवाद और असहिष्णुता के दौर में साझा सभ्यतागत मूल्यों – जैसे करुणा, अहिंसा और संतुलन – से शांति का संदेश प्रसारित किया जा सकता है।
- महामारी और आपदाओं के समय सामुदायिक एकता और सहकारिता की भावना, सांस्कृतिक कूटनीति से सुदृढ़ होती है।
भारत की एक्ट ईस्ट नीति का भी यही उद्देश्य है — आर्थिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और मानवीय सेतु निर्माण।
6. प्रमुख चुनौतियाँ और संभावित समाधान
सांस्कृतिक साझेदारी को गहराने में कुछ व्यावहारिक चुनौतियाँ सामने आती हैं —
- भाषाई विविधता: कई देशों में भारतीय भाषाओं की समझ सीमित है।
- डिजिटल विभाजन: ग्रामीण क्षेत्रों में सांस्कृतिक परियोजनाओं की पहुंच कम है।
- आधुनिकता बनाम परंपरा: युवा पीढ़ी में पारंपरिक सांस्कृतिक पहचान का क्षरण।
इन चुनौतियों का समाधान इस प्रकार हो सकता है —
- डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से वर्चुअल म्यूज़ियम और ऑनलाइन सांस्कृतिक प्रदर्शनी आयोजित की जाएं।
- संयुक्त सरकारी और गैर-सरकारी साझेदारियों के माध्यम से फंडिंग और टेक्नोलॉजी सपोर्ट उपलब्ध कराया जाए।
- शिक्षा प्रणाली में साझा सांस्कृतिक विरासत पर मॉड्यूल शामिल किए जाएं।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री मोदी का आसियान शिखर सम्मेलन में सांस्कृतिक साझेदारी पर दिया गया जोर केवल भाषण नहीं, बल्कि भारत की विदेश नीति में एक सभ्यतागत दृष्टिकोण का उद्घोष है।
सांस्कृतिक कूटनीति भारत और आसियान के बीच न केवल ऐतिहासिक संबंधों को पुनर्जीवित करेगी, बल्कि व्यापार, शिक्षा, और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में भी नई संभावनाओं का द्वार खोलेगी।
यदि भारत और आसियान देश इस दिशा में ठोस कदम उठाते हैं — जैसे कि संयुक्त सांस्कृतिक उत्सव, हेरिटेज संरक्षण परियोजनाएं, और शिक्षा-आदान-प्रदान कार्यक्रम, तो आने वाला दशक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, विकास और साझा सांस्कृतिक पुनर्जागरण का साक्षी बन सकता है।
संदर्भ
- The Times of India, “Asean Summit: PM Modi calls for deeper cultural ties,”
- भारत सरकार, विदेश मंत्रालय — “Act East Policy and India-ASEAN Partnership” आधिकारिक दस्तावेज।
- ICCR Annual Report 2024-25, “Cultural Diplomacy in Southeast Asia.”
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