Nuclear Weapons Testing: A Historical Analysis of Its Origins, Global Ban, and the Possibility of Resumption in a New Cold War Era
परमाणु हथियार परीक्षण: ऐतिहासिक अवलोकन, स्थगन के कारण और पुनः आरंभ की संभावनाएँ
सारांश
परमाणु हथियार परीक्षण 20वीं सदी की सैन्य और वैज्ञानिक प्रतिस्पर्धा की सबसे विवादास्पद विरासतों में से एक हैं। 1945 से 1996 के बीच विश्वभर में लगभग 2,000 से अधिक परमाणु विस्फोट किए गए — जिन्होंने न केवल वैश्विक सुरक्षा संतुलन को बदल दिया, बल्कि मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर गहरा प्रभाव डाला।
यह लेख इन परीक्षणों के ऐतिहासिक क्रम, व्यापक परमाणु-परीक्षण-निषेध संधि (CTBT) जैसे नियंत्रण ढांचों के तहत इनके स्थगन के कारणों और हाल के अमेरिकी संकेतों के संदर्भ में इनके संभावित पुनः आरंभ पर केंद्रित है।
मुख्य तर्क यह है कि परीक्षणों पर रोक ने भले ही संयम का वैश्विक मानदंड स्थापित किया हो, परंतु वर्तमान भू-राजनीतिक तनाव और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा उस नाजुक संतुलन को पुनः चुनौती दे रहे हैं।
परिचय
16 जुलाई 1945 को न्यू मैक्सिको के रेगिस्तान में जब ‘ट्रिनिटी परीक्षण’ के नाम से पहला परमाणु विस्फोट हुआ, तब मानव सभ्यता ने शक्ति और भय दोनों के एक नए युग में प्रवेश किया।
इसके केवल तीन सप्ताह बाद ही हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बमों का प्रयोग हुआ — जिससे न केवल द्वितीय विश्व युद्ध का अंत हुआ, बल्कि एक लंबा ‘परमाणु शीतयुद्ध युग’ प्रारंभ हुआ, जिसमें परीक्षण तकनीकी श्रेष्ठता और सामरिक निवारक (deterrence) दोनों का प्रतीक बन गए।
1950 से 1980 के बीच अमेरिका और सोवियत संघ ने सैकड़ों परीक्षण किए, जिनसे ‘शक्ति संतुलन’ की अवधारणा लगभग पूरी तरह सैन्य-तकनीकी गणना में बदल गई। लेकिन इस दौड़ का एक दूसरा पक्ष भी था — पर्यावरणीय प्रदूषण, रेडियोधर्मी फॉलआउट और लाखों लोगों के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव। यही कारण था कि अंतरराष्ट्रीय जनमत ने धीरे-धीरे ‘न्यूक्लियर मॉरलिटी’ (nuclear morality) का विमर्श खड़ा किया, जिसने परीक्षण-निषेध की दिशा में रास्ता खोला।
परमाणु हथियार परीक्षणों का ऐतिहासिक परिदृश्य
ट्रिनिटी के बाद, 1945 से 1996 तक कुल 2,056 परमाणु परीक्षण दर्ज किए गए।
- संयुक्त राज्य अमेरिका ने लगभग 1,032 परीक्षण किए (वायुमंडलीय, भूमिगत और समुद्री सभी प्रकारों में)।
- सोवियत संघ ने 715 परीक्षण, जिनमें से अधिकांश कज़ाखस्तान के सेमिपालाटिंस्क स्थल पर हुए।
- फ्रांस ने 210, ब्रिटेन और चीन ने लगभग 45–45 परीक्षण किए।
- इसके अतिरिक्त, भारत (1974, 1998), पाकिस्तान (1998) और उत्तर कोरिया (2006–2017) ने कुल मिलाकर 18 परीक्षण संपन्न किए।
1962 वह वर्ष था जब दुनिया ने सबसे अधिक 178 वायुमंडलीय विस्फोट देखे — जो कुल मिलाकर लगभग 340 मेगाटन TNT ऊर्जा के बराबर थे, यानी हिरोशिमा जैसे बमों के 22,000 गुना।
वायुमंडलीय परीक्षणों से रेडियोधर्मी कण पृथ्वी के वातावरण में फैल गए और अनुमानतः दो से पाँच लाख लोगों की मौतों का परोक्ष कारण बने।
यह मानवता के लिए एक चेतावनी थी — विज्ञान ने अपनी सीमाएँ लांघ दी थीं।
परीक्षणों के स्थगन के प्रमुख कारण
(1) पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संकट
1950–60 के दशकों में वायुमंडलीय परीक्षणों से फैला रेडियोधर्मी फॉलआउट अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय बना।
1954 के अमेरिकी ‘कैसल ब्रावो परीक्षण’ के दौरान जापान के मछुआरों के विकिरण-प्रदूषण से संक्रमित होने की घटना ने परमाणु-विरोधी आंदोलन को जन्म दिया।
भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उसी वर्ष विश्व समुदाय से परीक्षणों पर "स्थगन" की अपील की।
सेमिपालाटिंस्क (कजाखस्तान), मार्शल द्वीपसमूह और नेवादा जैसे स्थलों पर स्थानीय आबादी पीढ़ियों तक कैंसर, आनुवंशिक दोष और पारिस्थितिक विनाश का सामना करती रही।
(2) कूटनीतिक प्रयास और संधियाँ
परमाणु परीक्षणों के स्थगन का मार्ग Partial Test Ban Treaty (PTBT), 1963 से प्रारंभ हुआ, जिसने वायुमंडलीय, जलमग्न और अंतरिक्ष परीक्षणों पर रोक लगाई।
यह संधि अमेरिका, ब्रिटेन और सोवियत संघ के बीच एक सीमित सहमति थी, पर इसने आगे चलकर Nuclear Non-Proliferation Treaty (NPT), 1968 की नींव रखी।
इसके बाद, शीतयुद्ध के अंत के बाद Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty (CTBT), 1996 सामने आई — जिसने हर प्रकार के परीक्षण पर वैश्विक प्रतिबंध का प्रस्ताव रखा।
हालांकि यह अभी तक पूर्ण रूप से लागू नहीं हो सकी (क्योंकि अमेरिका, चीन, उत्तर कोरिया जैसे कुछ देशों ने इसे अनुसमर्थित नहीं किया), फिर भी इसने एक वैश्विक "नैतिक संधि" का रूप ले लिया है।
(3) तकनीकी आत्मनिर्भरता
1990 के दशक तक अमेरिका और रूस जैसे देशों ने इतने परीक्षण कर लिए थे कि उनके पास पर्याप्त डेटा और सिमुलेशन मॉडल मौजूद थे।
उच्च-शक्ति कंप्यूटरों और प्रयोगशाला आधारित सिमुलेशन (subcritical testing) ने वास्तविक विस्फोट की आवश्यकता को सीमित कर दिया।
इस तकनीकी आत्मनिर्भरता ने परीक्षण-विरोधी माहौल को मजबूत किया।
पुनः आरंभ की संभावनाएँ: क्यों उभर रही हैं नई आशंकाएँ
(1) रणनीतिक प्रतिस्पर्धा और शक्ति प्रदर्शन
2020 के दशक में अमेरिका, रूस और चीन के बीच बढ़ती सैन्य-तकनीकी प्रतिस्पर्धा ने फिर से परमाणु परीक्षण की बहस को हवा दी है।
30 अक्टूबर 2025 को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने “रूस और चीन के साथ समान स्तर” पर परीक्षण पुनः आरंभ करने की संभावना व्यक्त की — यह संकेत देता है कि हथियार नियंत्रण की जगह "शक्ति-संतुलन की राजनीति" लौट रही है।
रूस ने हाल ही में CTBT की पुष्टि को रद्द कर दिया है, जो इस दिशा में एक खतरनाक संकेत है।
यदि एक महाशक्ति परीक्षण दोबारा शुरू करती है, तो अन्य भी प्रतिक्रिया स्वरूप ऐसा कर सकते हैं — यही "न्यूक्लियर डोमिनो इफ़ेक्ट" कहलाता है।
(2) तकनीकी औचित्य
परमाणु वैज्ञानिकों का एक वर्ग यह तर्क देता है कि पुराने वॉरहेड्स (जिनकी आयु 30–40 वर्ष हो चुकी है) की विश्वसनीयता परखने के लिए सीमित परीक्षण जरूरी हो सकते हैं।
नई तकनीकें जैसे मिनिएचर वॉरहेड्स, हाइपरसोनिक मिसाइल प्रणालियाँ और स्वचालित लॉन्च सिस्टम ऐसे डेटा की मांग करते हैं, जिसे केवल प्रयोगशाला सिमुलेशन से सत्यापित करना कठिन है।
(3) कूटनीतिक संदेश और निवारक संकेत
उत्तर कोरिया जैसे देश परीक्षणों का प्रयोग केवल वैज्ञानिक कारणों से नहीं करते — यह उनके लिए एक राजनयिक संदेश भी होता है।
एक विस्फोट वैश्विक मंच पर शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक बन जाता है। यदि महाशक्तियाँ ऐसा कदम उठाती हैं, तो अन्य क्षेत्रीय शक्तियों — जैसे भारत और पाकिस्तान — पर भी दबाव बढ़ सकता है।
भारत का दृष्टिकोण
भारत ने अब तक दो बार परमाणु परीक्षण किए हैं — 1974 में ‘स्माइलिंग बुद्धा’ और 1998 में ‘ऑपरेशन शक्ति’।
1998 के बाद भारत ने स्वेच्छा से “टेस्ट मोरेटोरियम” (moratorium) अपनाया और तब से किसी परीक्षण में शामिल नहीं हुआ।
भारत की नीति “न्यूनतम विश्वसनीय प्रतिरोध (Credible Minimum Deterrence)” पर आधारित है, जिसका अर्थ है कि हथियारों का उद्देश्य केवल सुरक्षा निवारक है, हथियारों की होड़ नहीं।
यदि भविष्य में वैश्विक स्तर पर परीक्षणों की नई लहर उठती है, तो भारत के लिए संतुलन कठिन होगा —
एक ओर राष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकता, और दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय नैतिकता एवं कूटनीतिक प्रतिष्ठा का प्रश्न।
निष्कर्ष
बीते आठ दशकों की परमाणु यात्रा यह सिखाती है कि विनाश की शक्ति भी अपने नियंत्रण की नीति से ही सुरक्षित होती है।
2,000 से अधिक परीक्षणों के बाद मानवता ने समझा कि किसी भी युद्ध का ‘अंतिम हथियार’ ही सभ्यता का अंत हो सकता है।
इसीलिए परीक्षणों पर रोक केवल वैज्ञानिक या राजनीतिक निर्णय नहीं था, बल्कि यह मानव विवेक की विजय थी।
आज जब अमेरिका, रूस और चीन फिर से प्रतिस्पर्धा के मोड़ पर हैं, तब परीक्षणों की पुनर्वापसी न केवल हथियार दौड़ को पुनर्जीवित करेगी, बल्कि वैश्विक स्थिरता को भी खतरे में डालेगी।
CTBT और अन्य नियंत्रण संधियों का अस्तित्व केवल कागज़ी नहीं है — यह उस नैतिक प्रतिबद्धता का प्रतीक है जिसने अब तक तीसरे परमाणु युद्ध को रोके रखा है।
भविष्य की दिशा इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या विश्व शक्तियाँ "शक्ति-संतुलन" के बजाय "विश्व-संतुलन" की ओर लौट सकती हैं।
क्योंकि अंततः, परमाणु परीक्षण का वास्तविक परिणाम मेगाटन में नहीं, बल्कि मानव विवेक की परीक्षा में निहित है।
संदर्भ:
- Arms Control Association. Nuclear Testing Tally.
- United Nations. International Day Against Nuclear Tests – History.
- Reuters (2025, October 30). Why Nuclear Tests Were Stopped and Why They Might Return.
- Our World in Data (2024). Number of Nuclear Weapons Tests per Year.
- Wikipedia (2025). List of Nuclear Weapons Tests.
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