Kerala Becomes India’s First Extreme Poverty-Free State: A Model of Inclusive and Human-Centric Development
केरल: भारत का प्रथम चरम गरीबी-मुक्त राज्य — समावेशी विकास का जीवंत प्रमाण
भारत के संघीय गणराज्य में 1 नवम्बर 2025 का दिन ऐतिहासिक स्याही से लिखा जाएगा, जब केरल विश्व बैंक के कठोर मापदण्ड अर्थात प्रतिदिन 2.15 डॉलर से कम आय वाले चरम गरीब जनसंख्या को शून्य पर ले आकर देश का पहला “चरम गरीबी-मुक्त राज्य” घोषित होगा। यह केवल एक सांख्यिकीय विजय नहीं है; यह उस दीर्घकालिक मानव-केन्द्रित यात्रा का परिणाम है, जो शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा को आर्थिक वृद्धि से ऊपर रखती है। केरल ने सिद्ध किया है कि विकास का अर्थ केवल जीडीपी की ऊँचाई नहीं, बल्कि समाज के अंतिम व्यक्ति की गरिमा है।
केरल की इस सफलता की जड़ें उसके सामाजिक सुधार आन्दोलनों में हैं। नारायण गुरु और आय्यंकाली जैसे दूरदृष्टा नेताओं ने जातिगत बंधनों को तोड़ा और शिक्षा को जन-जन तक पहुँचाया। परिणामस्वरूप आज केरल की साक्षरता दर 96 प्रतिशत से अधिक है — भारत के राष्ट्रीय औसत से लगभग 20 प्रतिशत ऊपर। यह साक्षरता केवल अक्षर-ज्ञान नहीं, बल्कि अधिकारों की समझ और आर्थिक अवसरों की खोज का माध्यम बनी। एक शिक्षित माँ अपने बच्चे के स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देती है, एक शिक्षित युवा कौशल-आधारित रोजगार की तलाश करता है — यही वह आधारभूत परिवर्तन है जो गरीबी के चक्र को तोड़ता है।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में केरल ने प्राथमिकता को व्यवस्था में बदला। राज्य में प्रत्येक तीस हजार जनसंख्या पर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है, आशा कार्यकर्ताओं का घना जाल घर-घर तक पहुँचता है। शिशु मृत्यु दर मात्र 6 प्रति हजार है — राष्ट्रीय औसत का एक-चौथाई। जीवन प्रत्याशा 77 वर्ष से अधिक है। यह स्वास्थ्य अवसंरचना केवल उपचार नहीं देती, बल्कि गरीबी के स्वास्थ्य-संबंधी जाल से मुक्ति दिलाती है। एक स्वस्थ व्यक्ति ही आय अर्जित कर सकता है; एक स्वस्थ परिवार ही बचत कर सकता है।
सामाजिक सुरक्षा की मजबूत दीवार केरल की सबसे बड़ी ताकत है। कुदुम्बश्री मिशन ने 45 लाख से अधिक महिलाओं को स्व-सहायता समूहों से जोड़ा, जिसने न केवल माइक्रो-क्रेडिट प्रदान किया, बल्कि सामुदायिक नेतृत्व को जन्म दिया। लाइफ मिशन ने पाँच लाख से अधिक बेघर परिवारों को पक्के मकान दिए। सार्वजनिक वितरण प्रणाली और व्यापक स्वास्थ्य बीमा ने अंतिम व्यक्ति तक सुरक्षा जाल बिछाया। खाड़ी देशों से आने वाला प्रवासी धन इस प्रक्रिया का सहायक रहा, परंतु यह मुख्य चालक नहीं — मुख्य चालक राज्य की नीतियाँ और जन-भागीदारी रही।
चरम गरीबी उन्मूलन मिशन इस समग्र दृष्टिकोण का संगठित रूप था। स्थानीय निकायों ने घर-घर सर्वेक्षण किया, कुदुम्बश्री नेटवर्क ने वास्तविक समय डेटा प्रदान किया। पंचायतों को वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार देकर योजनाओं को जमीनी स्तर पर उतारा गया। मनरेगा, पीडीएस, प्रधानमंत्री आवास योजना और स्व-सहायता समूहों की योजनाओं को एकीकृत कर एक ही परिवार को बहुआयामी सहायता दी गई। परिणामस्वरूप 2021 से 2025 के बीच चरम गरीबी दर शून्य के करीब पहुँच गई।
यह मॉडल भारत के सहकारी संघवाद के लिए एक प्रयोगशाला है। जहाँ केंद्र “आकांक्षी जिला कार्यक्रम” चला रहा है, वहीं केरल ने “आकांक्षी पंचायत” का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया। विकेन्द्रीकरण, सामुदायिक भागीदारी और लैंगिक संवेदनशीलता का यह त्रिकोण अन्य राज्यों के लिए पथ-प्रदर्शक है। नीति आयोग के बहुआयामी गरीबी सूचकांक में केरल का स्कोर 1.2 प्रतिशत है — राष्ट्रीय औसत का बारहवाँ हिस्सा। यह दर्शाता है कि स्थानीय सशक्तिकरण राष्ट्रीय लक्ष्यों को कैसे प्राप्त कर सकता है।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह उपलब्धि संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य-1 की स्थानीय सफलता की मिसाल है। यूएनडीपी ने इसे “स्थानीयकृत एसडीजी सफलता” कहा है। विश्व बैंक ने विकेन्द्रीकृत गरीबी उन्मूलन की सर्वोत्तम प्रथा के रूप में मान्यता दी है। केरल ने सिद्ध किया है कि आर्थिक वृद्धि और सामाजिक न्याय परस्पर विरोधी नहीं हैं — वे एक-दूसरे के पूरक हैं।
फिर भी चुनौतियाँ बाकी हैं। राज्य की जनसंख्या का बीस प्रतिशत से अधिक वृद्ध है, जिससे स्वास्थ्य व्यय का बोझ बढ़ रहा है। प्रवासी आय पर निर्भरता वैश्विक संकटों में जोखिम पैदा करती है। जलवायु परिवर्तन मत्स्य और कृषि आधारित आजीविका को प्रभावित कर रहा है। शहरी क्षेत्रों में अदृश्य गरीबी एक नया खतरा है। इनके समाधान के लिए केरल को “लचीला विकास मॉडल” अपनाना होगा — जहाँ हरित अर्थव्यवस्था, डिजिटल समावेश और सामाजिक सुरक्षा का नया संस्करण हो।
नैतिक दृष्टि से यह उपलब्धि गांधी के “अंत्योदय” और अम्बेडकर के “सामाजिक न्याय” का व्यावहारिक रूप है। गरीब को लाभार्थी नहीं, सह-निर्माता बनाया गया। यह स्मरण दिलाता है कि सच्चा विकास वह है जो समाज के अंतिम व्यक्ति की मुस्कान में झलकता है।
केरल की यह यात्रा भारत के लिए एक संदेश है — कि विकेन्द्रीकरण, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामुदायिक सशक्तिकरण का संयोजन असंभव को संभव बना सकता है। यह सिद्ध करता है कि “विकसित भारत” का सपना केवल दिल्ली के नीति-कक्षों में नहीं, बल्कि गाँव की पंचायतों और महिला स्व-सहायता समूहों की बैठकों में साकार होता है। केरल ने जो राह दिखाई है, वह न केवल अनुकरणीय है, बल्कि अनिवार्य भी है।
UPSC संभावित प्रश्न
1. केरल का “Extreme Poverty-Free” राज्य घोषित होना भारत के समावेशी विकास मॉडल के लिए किस प्रकार प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत करता है? चर्चा करें।
2. “केरल मॉडल ऑफ डेवलपमेंट” को भारत के अन्य राज्यों में दोहराने की व्यवहारिक सीमाएँ क्या हैं?
🟢 श्रोत (Sources):
- Government of Kerala – Mission Extreme Poverty Eradication Report, 2025
- World Bank – Global Poverty Line Update ($2.15/day)
- NITI Aayog – Multidimensional Poverty Index (MPI) Report 2023
- UNDP India – Human Development and SDG Progress Report, 2024
- The Hindu – “Kerala to be India’s first extreme poverty-free state by Nov 1”, October 2025
- Kudumbashree Mission – Annual Performance Report, 2024-25
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