भारत का प्रमुख वैश्विक सूचकांकों में प्रदर्शन: एक व्यापक विश्लेषणात्मक अध्ययन
परिचय
वर्तमान वैश्वीकृत युग में किसी भी राष्ट्र की प्रगति का मापन केवल उसकी आर्थिक वृद्धि दर या औद्योगिक उत्पादन से नहीं किया जा सकता। इसके लिए विविध वैश्विक सूचकांक विकसित किए गए हैं जो नवाचार, लैंगिक समानता, मानव विकास, भूख, सुशासन तथा नागरिक गतिशीलता जैसे बहुआयामी पहलुओं का समग्र मूल्यांकन करते हैं। ये सूचकांक न केवल अंतरराष्ट्रीय तुलना का माध्यम हैं, बल्कि नीति निर्माण, वैश्विक प्रतिष्ठा, और सामाजिक प्रगति के लिए दिशासूचक का कार्य भी करते हैं।
यह अध्ययन वर्ष 2025 (हेनले पासपोर्ट सूचकांक हेतु 2024) तक भारत की स्थिति का विश्लेषण करता है, जिससे यह समझा जा सके कि भारत किन क्षेत्रों में उन्नति कर रहा है, और कहाँ नीति-स्तरीय सुधार की आवश्यकता है।
1. वैश्विक नवाचार सूचकांक (Global Innovation Index – 2025): 139 में से 38वाँ स्थान
विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) द्वारा प्रकाशित यह सूचकांक किसी देश की नवाचार क्षमता, अनुसंधान निवेश, पेटेंट, ज्ञान सृजन, और स्टार्टअप इकोसिस्टम का मूल्यांकन करता है।
भारत का 38वाँ स्थान यह दर्शाता है कि वह उभरते हुए नवाचार केंद्रों में से एक बन चुका है। "मेक इन इंडिया", "स्टार्टअप इंडिया" और "डिजिटल इंडिया" जैसी पहलों ने इस दिशा में गहन प्रभाव डाला है।
फिर भी, चुनौतियाँ बनी हुई हैं—R&D पर भारत का व्यय जीडीपी का केवल 0.7% है, जो विकसित अर्थव्यवस्थाओं के औसत (2–3%) से काफी कम है। उच्च शिक्षा में अनुसंधान परक दृष्टिकोण और उद्योग-शिक्षा सहयोग को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
यदि भारत इन कमियों को दूर करे, तो वह वैश्विक नवाचार शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को और सुदृढ़ कर सकता है।
2. वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक (Global Gender Gap Index – 2025): 148 में से 131वाँ स्थान
विश्व आर्थिक मंच (WEF) द्वारा जारी यह सूचकांक आर्थिक भागीदारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और राजनीतिक सशक्तिकरण के चार आयामों पर आधारित है।
भारत की निम्न रैंकिंग यह संकेत देती है कि लैंगिक समानता अब भी एक संरचनात्मक चुनौती बनी हुई है।
महिला शिक्षा और मातृ स्वास्थ्य में सुधार हुआ है, परंतु कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी घटकर 23% के आसपास रह गई है। राजनीतिक प्रतिनिधित्व में भी असंतुलन स्पष्ट है, यद्यपि हालिया महिला आरक्षण विधेयक (2023) आशा की किरण प्रस्तुत करता है।
समाज में रूढ़िगत लैंगिक धारणाएँ, वेतन असमानता और असुरक्षित कार्य वातावरण लैंगिक समता को बाधित करते हैं।
भारत को सुरक्षा, शिक्षा, कौशल विकास और राजनीतिक अवसरों में समानता लाने हेतु ठोस नीतियाँ लागू करनी होंगी।
3. मानव विकास सूचकांक (Human Development Index – 2025): 193 में से 130वाँ स्थान
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा जारी यह सूचकांक जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और प्रति व्यक्ति आय के आधार पर मानव कल्याण का मापन करता है।
भारत का 130वाँ स्थान यह दर्शाता है कि आर्थिक वृद्धि के बावजूद समावेशी विकास अब भी अपूर्ण है।
स्वास्थ्य सेवाओं तक असमान पहुँच, कुपोषण, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी, तथा आय वितरण में विषमता भारत के HDI प्रदर्शन को प्रभावित करती है।
यद्यपि जीवन प्रत्याशा 70 वर्ष से ऊपर पहुँच चुकी है और साक्षरता में सुधार हुआ है, परंतु मानव पूंजी पर निवेश अभी भी अपर्याप्त है।
यदि भारत सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवाओं, कौशल-आधारित शिक्षा और रोजगार सृजन पर बल देता है, तो वह HDI में उल्लेखनीय सुधार प्राप्त कर सकता है।
4. वैश्विक भूख सूचकांक (Global Hunger Index – 2025): 123 में से 102वाँ स्थान
कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्थुंगरहिल्फ़ द्वारा प्रकाशित यह सूचकांक कुपोषण, बाल स्टंटिंग, अपक्षय और मृत्यु दर के संकेतकों पर आधारित है।
भारत की स्थिति चिंताजनक है—यह “गंभीर भूख” (Serious Hunger) श्रेणी में आता है।
हालांकि भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर है, लेकिन पोषण वितरण और खाद्य पहुँच में असमानता बनी हुई है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, आंगनवाड़ी और मध्याह्न भोजन योजना जैसी योजनाएँ नीतिगत दृष्टि से मजबूत हैं, परंतु इनके कार्यान्वयन में पारदर्शिता और दक्षता की कमी है।
जलवायु परिवर्तन और ग्रामीण गरीबी के कारण भी खाद्य असुरक्षा बढ़ती जा रही है।
भारत को “पोषण-केंद्रित विकास मॉडल” अपनाना होगा, जो उत्पादन से अधिक पोषण परिणामों पर केंद्रित हो।
5. भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक (Corruption Perceptions Index – 2025): 180 में से 96वाँ स्थान, स्कोर 39/100
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा प्रकाशित यह सूचकांक सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार की धारणा का आकलन करता है।
भारत की स्थिति मध्यम स्तर के भ्रष्टाचार को इंगित करती है। यद्यपि ई-गवर्नेंस, डिजिटलीकरण, और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) ने पारदर्शिता को बढ़ाया है, फिर भी नौकरशाही जटिलता, राजनीतिक प्रभाव और न्यायिक विलंब जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
भ्रष्टाचार-विरोधी संस्थाओं को अधिक स्वायत्तता और जवाबदेही देना, लोकपाल संस्थान को सशक्त करना और व्हिसलब्लोअर सुरक्षा कानून का प्रभावी क्रियान्वयन इस दिशा में अहम कदम होंगे।
6. हेनले पासपोर्ट सूचकांक (Henley Passport Index – 2024): 85वाँ स्थान
यह सूचकांक इस बात को दर्शाता है कि किसी देश के नागरिक बिना वीजा या आगमन पर वीजा की सुविधा के साथ कितने देशों की यात्रा कर सकते हैं।
भारत का 85वाँ स्थान दर्शाता है कि उसकी वैश्विक गतिशीलता सीमित है, जबकि जापान, सिंगापुर और जर्मनी जैसे देशों के नागरिक 190 से अधिक देशों में वीजा-मुक्त यात्रा कर सकते हैं।
भारत की स्थिति उसके राजनयिक संबंधों, वीजा पारस्परिकता और वैश्विक प्रतिष्ठा से जुड़ी है।
क्षेत्रीय साझेदारियों, व्यापार समझौतों, और रणनीतिक गठबंधनों को सुदृढ़ कर भारत अपने नागरिकों के लिए अधिक वीजा-मुक्त अवसर प्राप्त कर सकता है।
विश्लेषण और नीतिगत निहितार्थ
भारत का प्रदर्शन “विकास और विषमता” के द्वंद्व को उजागर करता है।
जहाँ नवाचार और डिजिटलीकरण में भारत अग्रणी बनता जा रहा है, वहीं मानव विकास, लैंगिक समानता, और पोषण जैसे क्षेत्रों में संरचनात्मक कमियाँ हैं।
भारत के लिए आवश्यक है कि वह “समावेशी नवाचार” (Inclusive Innovation) की दिशा में आगे बढ़े, जहाँ तकनीकी प्रगति के साथ सामाजिक समानता भी सुनिश्चित हो।
नीतिगत रूप से निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है –
- मानव पूंजी सुदृढ़ीकरण – शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल प्रशिक्षण में निवेश।
- सशक्त शासन संरचना – पारदर्शिता, ई-गवर्नेंस और जवाबदेही को बढ़ावा।
- लैंगिक सशक्तिकरण – महिलाओं के लिए आर्थिक और राजनीतिक अवसरों का विस्तार।
- पोषण सुरक्षा – जलवायु-संवेदनशील कृषि और पोषण-आधारित योजनाएँ।
- नवाचार को सामाजिक रूप से जोड़ना – अनुसंधान को ग्रामीण और सामाजिक विकास से जोड़ना।
- राजनयिक सक्रियता – द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों को सशक्त बनाकर वैश्विक गतिशीलता बढ़ाना।
निष्कर्ष
भारत का प्रदर्शन एक विकासशील राष्ट्र की संक्रमणकालीन अवस्था को प्रतिबिंबित करता है — जहाँ तीव्र आर्थिक वृद्धि और तकनीकी उन्नति के बावजूद सामाजिक असमानताएँ, लैंगिक अंतर और संस्थागत चुनौतियाँ विद्यमान हैं।
इन सूचकांकों से प्राप्त संकेत नीति निर्माताओं के लिए केवल आँकड़े नहीं, बल्कि सुधार के लिए चेतावनी संकेत हैं।
यदि भारत शिक्षा, स्वास्थ्य, शासन और समानता में समग्र सुधार लाता है, तो वह न केवल वैश्विक सूचकांकों में उच्च रैंक प्राप्त करेगा, बल्कि न्यायपूर्ण, समावेशी और टिकाऊ विकास मॉडल का उदाहरण भी बनेगा।
अंततः, भारत के लिए लक्ष्य केवल रैंकिंग सुधारना नहीं, बल्कि ऐसे मानवीय और संस्थागत परिवर्तन लाना है जो हर नागरिक के जीवन की गुणवत्ता को वास्तविक रूप से उन्नत करें — यही “नया भारत” की पहचान होगी।
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