भारत–यूके मार्टलेट मिसाइल समझौता: आत्मनिर्भर रक्षा की दिशा में निर्णायक कदम
भारत और यूनाइटेड किंगडम के बीच हाल ही में संपन्न हुआ 468 मिलियन डॉलर का मार्टलेट मिसाइल समझौता न केवल एक व्यापारिक लेन-देन है, बल्कि यह भारत की रक्षा नीति, सामरिक दृष्टि और वैश्विक साझेदारी के बदलते स्वरूप का प्रतीक है। यह सौदा भारत के उस दीर्घकालिक लक्ष्य को साकार करने की दिशा में एक ठोस कदम है, जिसमें देश स्वदेशी उत्पादन और तकनीकी आत्मनिर्भरता के साथ-साथ रणनीतिक मित्रता को भी समान महत्व देता है।
समुद्री सुरक्षा की नई परिभाषा
मार्टलेट मिसाइलें हल्की, तीव्र गति वाली और बहुउद्देशीय हैं — विशेषकर समुद्री युद्ध में ड्रोन, हल्के हमलावर जहाजों और मिसाइल नौकाओं को निष्क्रिय करने में अत्यंत कारगर। इन मिसाइलों के भारतीय नौसेना में शामिल होने से हमारी समुद्री प्रतिरोधक क्षमता (maritime deterrence) और रक्षात्मक प्रतिक्रिया गति (response agility) दोनों में गुणात्मक सुधार होगा।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता, समुद्री मार्गों की अस्थिरता और तटीय सुरक्षा चुनौतियों के बीच, यह समझौता भारत के लिए सामरिक संतुलन (strategic equilibrium) बनाए रखने का साधन बन सकता है।
रणनीतिक साझेदारी का नया अध्याय
भारत–यूके संबंध ऐतिहासिक रूप से गहरे रहे हैं, लेकिन यह समझौता उन्हें तकनीकी विश्वास और रक्षा सहयोग के नए स्तर पर ले जाता है। यह केवल मिसाइल आपूर्ति तक सीमित नहीं है; इसमें संयुक्त अनुसंधान (joint research), तकनीकी हस्तांतरण (technology transfer) और स्वदेशी निर्माण में सहयोग के अवसर भी निहित हैं। इससे भारत को न केवल आधुनिक हथियार प्रणालियों की समझ बढ़ेगी, बल्कि दीर्घकाल में अपने ‘मेक इन इंडिया’ और ‘डिफेंस एक्सपोर्ट नेशन’ बनने के लक्ष्य की ओर भी अग्रसर करेगा।
आत्मनिर्भर भारत के परिप्रेक्ष्य में
यह समझौता भारत के ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के अनुरूप है, जो विदेशी सहयोग को विकल्प नहीं बल्कि सशक्तिकरण का माध्यम मानता है। विदेशी साझेदारियों से प्राप्त तकनीकी ज्ञान और अनुभव यदि भारत के घरेलू रक्षा उद्योगों—जैसे HAL, DRDO, और BEL—के साथ समेकित रूप से जुड़ता है, तो यह दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता का मार्ग प्रशस्त करेगा।
संभावित चुनौतियां
हालांकि, हर रक्षा सौदे के साथ कुछ सावधानियां भी आवश्यक हैं।
- पारदर्शिता और लागत नियंत्रण सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है।
- तकनीकी हस्तांतरण को केवल दस्तावेजी उपलब्धि न बनाकर वास्तविक उत्पादन क्षमता में रूपांतरित करना अनिवार्य है।
- भारत को यह भी देखना होगा कि इस सहयोग से उसकी रणनीतिक स्वतंत्रता प्रभावित न हो, बल्कि और अधिक दृढ़ बने।
निष्कर्ष
भारत–यूके मिसाइल समझौता एक ऐसे समय में हुआ है जब वैश्विक भू-राजनीति तीव्र बदलावों से गुजर रही है। यह समझौता भारत को न केवल समुद्री शक्ति संतुलन में एक निर्णायक भूमिका प्रदान करेगा, बल्कि यह नई तकनीकी साझेदारी, आत्मनिर्भरता और सामरिक स्वावलंबन की दिशा में एक बड़ा कदम भी है।
भारत को इस अवसर का उपयोग केवल आयातक के रूप में नहीं, बल्कि एक नवोन्मेषी निर्माता राष्ट्र के रूप में करना चाहिए — जो अपनी सुरक्षा जरूरतों को स्वयं परिभाषित कर सके और विश्व को समाधान भी प्रदान कर सके। यही इस समझौते का सच्चा अर्थ और भारत की रक्षा नीति का भावी लक्ष्य होना चाहिए।
With Times Of India Inputs
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