पेरू में लिमा और कैलाओ में 30 दिनों की आपातकाल की घोषणा: अपराध, राजनीति और लोकतंत्र के बीच संतुलन की जंग
परिचय
21 अक्टूबर 2025 की रात पेरू के राजनीतिक इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया, जब नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जोस जेरी ने राजधानी लिमा और निकटवर्ती प्रांत कैलाओ में 30 दिनों की आपातकाल स्थिति (State of Emergency) की घोषणा की। मंत्रिपरिषद द्वारा अनुमोदित इस निर्णय के तहत सेना को पुलिस के साथ मिलकर कानून-व्यवस्था बनाए रखने का अधिकार दिया गया है।
राष्ट्रीय टेलीविज़न पर अपने संबोधन में राष्ट्रपति जेरी ने कहा — “यह कदम अपराध के खिलाफ रक्षा नहीं, बल्कि आक्रमण की शुरुआत है — ताकि पेरूवासियों का विश्वास, शांति और सुकून वापस लाया जा सके।”
यह घोषणा ऐसे समय में आई जब पूर्व राष्ट्रपति दीना बोलुआर्ते को भ्रष्टाचार के आरोपों और जनविरोध के कारण बर्खास्त किया गया था, और देश राजनीतिक अस्थिरता व सामाजिक विभाजन से जूझ रहा था। ऐसे में जेरी की यह घोषणा केवल सुरक्षा नीति नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश भी है — कि उनका शासन “निर्णायक और कठोर” होगा।
1. अपराध संकट: पेरू की राजधानी का असुरक्षित चेहरा
लिमा और कैलाओ, पेरू के सबसे बड़े शहरी क्षेत्र हैं — जहाँ लगभग 1 करोड़ लोग रहते हैं। पिछले कुछ महीनों में इन दोनों क्षेत्रों में हत्याओं, उगाही, नशीली दवाओं की तस्करी और संगठित अपराध के मामलों में तेज़ी आई है।
पुलिस और नागरिक संगठनों के अनुमान बताते हैं कि कैलाओ का बंदरगाह अब दक्षिण अमेरिकी ड्रग तस्करी नेटवर्क का मुख्य केंद्र बन चुका है। इसके साथ ही गैंगवार और सड़क अपराधों ने आम नागरिकों के जीवन को असुरक्षित बना दिया है।
युवाओं और नागरिक समाज ने हाल के महीनों में कई विरोध प्रदर्शन किए, जिनमें अपराध नियंत्रण की मांग को लेकर व्यापक जनदबाव देखा गया। इन प्रदर्शनों में हुई हिंसा में एक व्यक्ति की मौत और 100 से अधिक घायल हुए — जिससे स्पष्ट है कि सुरक्षा का सवाल अब केवल अपराध तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह राज्य की वैधता (Legitimacy) और जनविश्वास का सवाल बन चुका है।
जेरी का “आक्रामक सुरक्षा दृष्टिकोण” इस असंतोष को संबोधित करने का प्रयास है, परंतु यह सवाल भी उठता है कि क्या सेना की तैनाती स्थायी समाधान है या फिर यह संरचनात्मक असमानताओं पर अस्थायी पट्टी लगाने जैसा है।
2. कार्यान्वयन ढांचा: संवैधानिक वैधता और व्यावहारिक सीमाएँ
पेरू के संविधान का अनुच्छेद 137 सरकार को "गंभीर आंतरिक अशांति" या "राष्ट्रीय सुरक्षा संकट" की स्थिति में आपातकाल घोषित करने का अधिकार देता है। इस घोषणा के तहत सेना को पुलिस कार्यों में भागीदारी की अनुमति दी गई है — जिसमें तलाशी, गिरफ्तारी, और सार्वजनिक गश्त शामिल हैं।
हालांकि, 30 दिनों की समय-सीमा यह स्पष्ट करती है कि यह कदम अस्थायी है, और इसे आगे बढ़ाने के लिए मंत्रिपरिषद की स्वीकृति आवश्यक होगी। फिर भी, अधिकारों के अस्थायी निलंबन (जैसे सभा की स्वतंत्रता या रात के कर्फ्यू की संभावना) नागरिक स्वतंत्रता के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
ऐतिहासिक अनुभव बताते हैं कि पेरू में इस तरह के सैन्य हस्तक्षेप अक्सर अत्यधिक बल प्रयोग और मानवाधिकार उल्लंघनों के मामलों को जन्म देते हैं। उदाहरण के लिए, मार्च 2025 में पूर्व राष्ट्रपति दीना बोलुआर्ते द्वारा घोषित समान आपातकाल ने अपराध को नहीं रोका — बल्कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार हत्या दर में 15% की वृद्धि हुई।
यदि जेरी का प्रशासन इस बार भी केवल सैनिक गश्त तक सीमित रहा, तो यह “आकर्षक लेकिन अप्रभावी उपाय” सिद्ध हो सकता है। सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि समुदाय आधारित पुलिसिंग, युवाओं के लिए पुनर्वास कार्यक्रम, और न्यायिक पारदर्शिता जैसे दीर्घकालिक उपायों के बिना आपातकाल महज़ राजनीतिक प्रतीक बन जाता है।
3. राजनीतिक निहितार्थ: वैधता, सत्ता और ऐतिहासिक पैटर्न
जेरी का यह कदम एक राजनीतिक रूप से संवेदनशील समय में आया है। पूर्ववर्ती प्रशासन भ्रष्टाचार और हिंसा से जूझ रहे थे, जिससे जनता में नेतृत्व के प्रति गहरा अविश्वास पनपा।
ऐसे में, आपातकाल की घोषणा राष्ट्रपति जेरी को “कठोर और निर्णायक नेता” के रूप में प्रस्तुत करने का अवसर देती है। किंतु यह कदम उसी पुरानी परंपरा की याद दिलाता है जिसमें पेरू के नेता संकट की घड़ी में कार्यकारी अधिकारों का विस्तार कर लोकतांत्रिक संस्थानों को दरकिनार करते रहे हैं — जैसे अल्बर्टो फुजिमोरी (1992) के शासनकाल में हुआ था।
यह खतरा तब और बढ़ जाता है जब संसद या न्यायपालिका से चर्चा किए बिना निर्णय लिए जाएँ। इस दृष्टि से, जेरी का आदेश पेरू में संविधानिक संतुलन और संस्थागत जवाबदेही पर नए सवाल खड़े करता है।
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि इस तरह के कदमों से “कानून के शासन की भावना” कमजोर पड़ सकती है। यदि इस आपातकाल को बार-बार बढ़ाया गया या राजनीतिक असहमति को दबाने के लिए प्रयोग किया गया, तो यह लोकतंत्र की आत्मा पर गहरा आघात होगा।
4. सामाजिक-आर्थिक आयाम: अपराध का असली कारण क्या है?
पेरू में अपराध का विस्फोट केवल पुलिस विफलता का परिणाम नहीं है। इसके पीछे गहरी आर्थिक असमानता, युवाओं में बेरोज़गारी, और महामारी के बाद की आर्थिक अस्थिरता जैसे कारण हैं।
लिमा के शहरी इलाकों में लगभग 60% लोग अनौपचारिक क्षेत्र (Informal Sector) में कार्यरत हैं, जहाँ सामाजिक सुरक्षा या न्यूनतम मजदूरी की कोई गारंटी नहीं। ऐसे में अपराध और गैंग संस्कृति कई युवाओं के लिए “विकल्प अर्थव्यवस्था” बन चुकी है।
यदि सरकार इस सामाजिक जटिलता को समझे बिना केवल सेना पर निर्भर रही, तो यह समस्या को जड़ों से काटने के बजाय लक्षणों पर मरहम लगाने जैसा होगा।
निष्कर्ष: आपातकाल नहीं, सामाजिक पुनर्निर्माण की आवश्यकता
राष्ट्रपति जोस जेरी की आपातकाल घोषणा तत्कालिक रूप से अपराध पर नियंत्रण पाने का प्रयास है, लेकिन यह पेरू की सुरक्षा नीति की सीमाओं को भी उजागर करती है।
वास्तविक सुधार तब होगा जब सरकार
- पुलिस सुधार और पारदर्शी न्याय प्रणाली पर निवेश करे,
- शहरी युवाओं के लिए शिक्षा व रोजगार के अवसर बढ़ाए,
- और स्थानीय समुदायों को सुरक्षा निर्णयों में शामिल करे।
यदि यह कदम नागरिक अधिकारों के उल्लंघन या राजनीतिक विरोधियों के दमन में बदल गया, तो पेरू एक बार फिर “संकट शासन” (Crisis Governance) के चक्र में फँस जाएगा।
इसलिए, जेरी सरकार के सामने चुनौती केवल अपराध नियंत्रण की नहीं, बल्कि यह सिद्ध करने की भी है कि लोकतंत्र और सुरक्षा एक-दूसरे के पूरक हैं, विरोधी नहीं।
संदर्भ:
[1] Reuters, “Peru declares 30-day emergency in Lima to tackle rising crime”, 21 October 2025.
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