इज़राइल द्वारा सोमालिलैंड की स्वतंत्रता की मान्यता: अंतरराष्ट्रीय कानून, क्षेत्रीय स्थिरता और भू-राजनीतिक निहितार्थ
भूमिका
26 दिसंबर 2025 को इज़राइल ने सोमालिया के उत्तर-पश्चिम में स्थित क्षेत्र सोमालिलैंड को एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के रूप में आधिकारिक मान्यता दे दी। इस प्रकार, वह ऐसा करने वाला संयुक्त राष्ट्र के किसी सदस्य देश द्वारा पहला राष्ट्र बन गया। इज़राइल ने इस निर्णय को अब्राहम समझौतों की भावना के विस्तार के रूप में प्रस्तुत किया—एक ऐसा कूटनीतिक ढाँचा जिसने 2020 के बाद पश्चिम एशिया-उत्तरी अफ्रीका क्षेत्र में नई सामरिक साझेदारियाँ गढ़ीं।
हालाँकि, यह निर्णय तुरंत ही क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय विरोध का कारण बना। सोमालिया, अफ्रीकी संघ (AU), अरब लीग, मिस्र, तुर्की और जिबूती ने इसे अवैध और अस्वीकार्य ठहराया, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी इस कदम का समर्थन करने से इनकार कर दिया। यह प्रकरण वैश्विक राजनीति में सेसेशनवाद बनाम राज्य-संप्रभुता, कानूनी मान्यता बनाम वास्तविक शासन-क्षमता, तथा क्षेत्रीय स्थिरता बनाम भू-रणनीतिक हितों के बीच उभरते तनाव को स्पष्ट करता है।
ऐतिहासिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि
1991 में सियाद बर्रे शासन के पतन के बाद सोमालिया हिंसा, गृहयुद्ध और उग्रवाद की जकड़ में चला गया। इसी काल में हरगेइसा केंद्रित क्षेत्र ने स्वयं को "सोमालिलैंड गणराज्य" घोषित किया। पिछले तीन दशकों में इसने—
- अलग प्रशासनिक व्यवस्था
- अपनी मुद्रा और सेना
- बहुदलीय चुनाव
- अपेक्षाकृत स्थिर राजनीतिक ढाँचा
का निर्माण किया — जो इसे एक कार्यात्मक de facto राज्य के रूप में स्थापित करता है।
परंतु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे मान्यता नहीं मिली। इसका मूल कारण अफ्रीकी संघ द्वारा 1964 के काहिरा सिद्धांत का पालन रहा, जिसके अनुसार उपनिवेशकालीन सीमाएँ अपरिवर्तनीय मानी जाती हैं। यह रुख महाद्वीप-व्यापी अलगाववादी आंदोलनों को हतोत्साहित करने के लिए अपनाया गया था।
इज़राइल के निर्णय के रणनीतिक कारण
इज़राइल के इस कदम के पीछे कई परतों वाली भू-रणनीतिक गणनाएँ दिखाई देती हैं—
1. लाल सागर–बाब अल-मंदब क्षेत्र में सामरिक मौजूदगी
सोमालिलैंड का भौगोलिक स्थान वैश्विक व्यापार गलियारों के समीप है। यमन संघर्ष और हूती हमलों के बाद यह समुद्री मार्ग सुरक्षा-चिंताओं का केंद्र बन चुका है।
बेरबेरा बंदरगाह इज़राइल के लिए—
- रसद समर्थन
- सुरक्षा सहयोग
- समुद्री अवसंरचना साझेदारी
का संभावित आधार बन सकता है।
2. अब्राहम समझौतों का भू-विस्तार
इज़राइल मुस्लिम बहुल समाजों में नए राजनीतिक सहयोगी तलाश रहा है। सोमालिलैंड नेतृत्व पहले से ही सामान्यीकरण ढाँचे का हिस्सा बनने की इच्छा व्यक्त कर चुका था—ऐसे में यह कदम राजनीतिक संकेत-संदेश भी है।
3. क्षेत्रीय शक्ति-प्रतिस्पर्धा और चीन कारक
होर्न ऑफ अफ्रीका में जिबूती चीन के बढ़ते प्रभाव का केंद्र है। कुछ विश्लेषकों के अनुसार इज़राइल इस मान्यता के माध्यम से वैकल्पिक सामरिक धुरी निर्मित करना चाहता है—जो पश्चिमी सुरक्षा तंत्र के साथ संरेखित हो।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ: वैधता और स्थिरता का सवाल
- सोमालिया ने इसे अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर सीधा हमला बताया।
- अफ्रीकी संघ ने चेताया कि यह निर्णय महाद्वीप-व्यापी अस्थिरता को जन्म दे सकता है।
- अरब लीग, मिस्र, तुर्की एवं जिबूती ने संयुक्त बयान में अलगाववादी इकाइयों को बढ़ावा देने का विरोध किया।
- संयुक्त राज्य अमेरिका ने सावधानीपूर्ण दूरी बनाए रखी और सोमालिया में आतंकवाद-रोधी साझेदारी को प्राथमिकता दी।
स्पष्ट है कि इज़राइल का कदम राजनीतिक रूप से एकाकी दायरे में सीमित प्रतीत होता है—कम से कम फिलहाल।
अंतरराष्ट्रीय कानून बनाम भू-राजनीतिक यथार्थ
सोमालिलैंड का मामला वैश्विक कूटनीति में एक जटिल प्रश्न खड़ा करता है—
- मॉंटेविडियो कन्वेंशन के मानदंड — स्थायी जनसंख्या, परिभाषित क्षेत्र, प्रभावी सरकार, बाहरी संबंध की क्षमता — पर यह क्षेत्र लगभग खरा उतरता है।
- फिर भी de jure मान्यता उससे दूर रही है, क्योंकि राजनीतिक-क्षेत्रीय जोखिम अधिक माने जाते रहे।
इज़राइल द्वारा मान्यता इस दुविधा को तीखा बनाती है—
क्या वास्तविक शासन-क्षमता मान्यता का आधार होनी चाहिए, या सीमाओं की पवित्रता सर्वोच्च सिद्धांत बनी रहनी चाहिए?
यह प्रश्न विशेष रूप से संवेदनशील है क्योंकि आलोचक इसे फिलिस्तीनी राज्यत्व प्रश्न के संदर्भ में "नीतिगत विरोधाभास" मानते हैं।
संभावित प्रभाव: अवसर या अस्थिरता?
इस निर्णय के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं—
- अफ्रीका में अन्य सेसेशनिस्ट आंदोलनों को नैतिक प्रेरणा मिल सकती है।
- सोमालिया-होर्न ऑफ अफ्रीका क्षेत्र में सुरक्षा प्रतिस्पर्धा तीव्र हो सकती है।
- अब्राहम समझौतों का दायरा बढ़ेगा, परंतु अमेरिकी समर्थन के बिना इसकी सीमाएँ भी स्पष्ट होंगी।
यदि अधिक देश साथ नहीं आते, तो यह मान्यता एक एकाकी कूटनीतिक संकेत बनकर रह सकती है; लेकिन यदि समर्थन बढ़ता है, तो यह अफ्रीकी राजनीतिक मानचित्र में नया मिसाल-बिंदु भी बन सकता है।
निष्कर्ष
सोमालिलैंड को इज़राइल द्वारा दी गई मान्यता केवल कूटनीतिक घटना नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति की उन संरचनात्मक पहेलियों का प्रतीक है—जहाँ कानूनी सिद्धांत, भू-रणनीतिक हित, ऐतिहासिक स्मृतियाँ और क्षेत्रीय संतुलन एक-दूसरे से टकराते हैं।
अंततः प्रश्न यही है—
क्या de facto स्थिरता किसी इकाई को मान्यता दिलाने के लिए पर्याप्त है, या औपनिवेशिक सीमाओं की अक्षुण्णता अब भी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का मूल स्तंभ बनी रहेगी?
सोमालिलैंड का भविष्य बहुत हद तक इसी प्रश्न के उत्तर पर निर्भर करता है।
With The Times of India Inputs
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