From MGNREGA to VB-G RAM G: India’s Shift from Rights-Based Rural Employment to a Development Mission
2025 का अंत: MGNREGA से VB-G RAM G एक्ट तक — ग्रामीण रोजगार गारंटी में नया विवाद और सत्ता-विपक्ष की जंग
भूमिका
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में रोज़गार सुरक्षा हमेशा से एक निर्णायक नीति-क्षेत्र रही है। विशेष रूप से निम्न-आय, कृषि-आश्रित और श्रम-प्रधान समाज में रोज़गार गारंटी का विचार केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, गरिमा और अधिकार से भी जुड़ा माना गया है। इसी पृष्ठभूमि में 2005 में लागू हुआ महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) दो दशकों तक ग्रामीण भारत की सामाजिक सुरक्षा का एक प्रमुख स्तंभ बना रहा।
लेकिन 2025 के अंतिम महीनों में इस व्यवस्था ने एक बड़ा मोड़ लिया, जब केंद्र सरकार ने MGNREGA को निरस्त कर उसकी जगह विकसित भारत – ग्रामीण रोजगार और आजीविका मिशन गारंटी (VB-G RAM G एक्ट, 2025) लागू कर दिया। यह बदलाव केवल एक प्रशासनिक पुनर्गठन नहीं, बल्कि एक राजनीतिक और वैचारिक टकराव का नया मंच बन गया है। सरकार इसे सुधार की दिशा में बड़ा कदम मानती है, जबकि विपक्ष इसे गरीबों के अधिकारों और गांधीवादी परंपरा पर हमला बता रहा है।
MGNREGA: सामाजिक अधिकार से विकास नीति तक
MGNREGA केवल एक योजना नहीं, बल्कि कानूनी अधिकार आधारित ढांचा था, जिसने ग्रामीण परिवारों को साल में कम से कम 100 दिन के अकुशल श्रम कार्य की गारंटी दी। यदि कार्य उपलब्ध न कराया जाए, तो बेरोज़गारी भत्ते का प्रावधान भी था। इस योजना की वैचारिक जड़ें राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (NAC) के सामाजिक न्याय आधारित मॉडल में थीं।
- 2009 में इसके नाम के साथ महात्मा गांधी जोड़े जाने से यह नीतिगत रूप से गांधीवादी मूल्यों का प्रतीक भी बन गया।
- इसने ग्रामीण मजदूरी बढ़ाई, पलायन कम किया और गरीबों के लिए सुरक्षा-कवच का काम किया।
- कोविड-19 महामारी के दौरान यही योजना लाखों परिवारों के लिए जीविका-रक्षक सहारा बनी।
इस अर्थ में, MGNREGA केवल रोजगार नहीं देता था, बल्कि राज्य और नागरिक के बीच सामाजिक अनुबंध का प्रतिनिधित्व करता था।
VB-G RAM G एक्ट: संरचनात्मक बदलाव और नई दिशा
नए कानून ने योजना के मूल ढांचे में कई बड़े बदलाव किए हैं:
- रोजगार गारंटी 100 से बढ़ाकर 125 दिन
- योजना को केंद्र-प्रायोजित मॉडल में बदला गया
- सामान्य राज्यों में 60:40 (केंद्र:राज्य)
- पूर्वोत्तर व हिमालयी राज्यों में 90:10
- डिमांड-ड्रिवन मॉडल की जगह सप्लाई-ड्रिवन आवंटन
- कृषि-मौसम में 60 दिन का कार्य विराम
- ग्राम पंचायतों की स्वायत्त भूमिका अपेक्षाकृत सीमित
- नाम-परिवर्तन में ‘गांधी’ की जगह ‘RAM’ का समावेश
सरकार इसे डिजिटल निगरानी, पारदर्शिता और बेहतर संसाधन-प्रबंधन की दिशा में कदम बताती है। उसका दावा है कि 125 दिन की गारंटी और संरचनात्मक पुनर्गठन से योजना अधिक लचीली और विकासोन्मुख बनेगी।
नाम-परिवर्तन पर विवाद: विरासत, प्रतीक और राजनीति
सबसे तीखी प्रतिक्रिया नाम परिवर्तन पर सामने आई।
कांग्रेस और विपक्ष का आरोप है कि:
- गांधी का नाम हटाना वैचारिक प्रतीकों का राजनीतिक प्रतिस्थापन है
- फंडिंग का बोझ राज्यों पर डालकर योजना की रीढ़ कमजोर की गई
- कृषि-मौसम विराम से मजदूरों की सौदेबाजी क्षमता घटेगी
- केंद्रीकरण से स्थानीय लोकतंत्र व पंचायती संस्थाएँ हाशिए पर जाएँगी
विपक्ष इसे “गरीब-केंद्रित अधिकार-आधारित योजना को केंद्र-नियंत्रित प्रशासनिक स्कीम में बदलने” का प्रयास मानता है।
बीजेपी का बचाव: सुधार, दक्षता और ‘नया ग्रामीण विकास’
सरकार का तर्क है कि:
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था बदल चुकी है
- फर्जी जॉब-कार्ड, डुप्लीकेट भुगतान और लीकेज की समस्याएँ गंभीर थीं
- निगरानी, डिजिटल सत्यापन और लक्ष्य-आधारित कार्य आवंटन आवश्यक था
- 125 दिन की गारंटी गरीबों के हित में विस्तारवादी कदम है
- ‘राम’ का उल्लेख सांस्कृतिक-नैतिक प्रतीकवाद के रूप में किया गया
सरकार इसे “सुधार बनाम स्थायित्व” की बहस के रूप में प्रस्तुत कर रही है।
राजनीतिक अर्थ: ‘गांधी बनाम राम’ की वैचारिक रेखा?
यह परिवर्तन केवल नीतिगत पुनर्संरचना नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश भी देता है।
- MGNREGA कांग्रेस की ऐतिहासिक विरासत योजना रही है
- 2025 के बदलाव को विपक्ष विचारधारात्मक पुनर्लेखन के रूप में देख रहा है
- प्रियंका गांधी वाड्रा और कांग्रेस इसे राष्ट्रीय अभियान मुद्दा बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं
- बीजेपी इसे विकास-केंद्रित सुधार के रूप में पेश कर रही है
2026 के चुनावों की पृष्ठभूमि में यह मुद्दा ग्रामीण मतदाताओं, राज्यों और राजनीतिक विमर्श को सीधे प्रभावित कर सकता है।
ग्रामीण भारत के लिए असली प्रश्न
मुख्य प्रश्न यह नहीं कि कानून का नाम क्या है, बल्कि यह कि —
- क्या 125 दिन की गारंटी वास्तव में ज्यादा रोज़गार देगी?
- क्या राज्यों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ से कार्यान्वयन प्रभावित होगा?
- क्या सप्लाई-ड्रिवन मॉडल गरीबों के अधिकार को कमज़ोर करेगा?
- क्या स्थानीय संस्थाओं की भूमिका घटने से भागीदारी लोकतंत्र प्रभावित होगा?
इन सवालों के उत्तर ही तय करेंगे कि यह बदलाव सुधार है या पुनरावर्तन।
निष्कर्ष
VB-G RAM G एक्ट 2025 सरकार के “विकसित भारत@2047” के दृष्टि-फ्रेम से जुड़ा बताया जा रहा है। लेकिन इससे जुड़े विवाद—नाम, वित्तीय साझेदारी, संस्थागत स्वायत्तता और अधिकार आधारित ढांचे का प्रश्न—ग्रामीण नीति-परिवर्तन को गहरी राजनीतिक-सामाजिक बहस में बदल देते हैं।
आने वाले समय में यह स्पष्ट होगा कि यह परिवर्तन गरीब-केंद्रित सुरक्षा कवच को सुदृढ़ करता है, या फिर यह सिर्फ राजनीतिक पहचान-निर्माण और वैचारिक पुनर्संरचना का एक और अध्याय बनकर रह जाता है।
With Indian Express Inputs
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