Supreme Court’s Landmark Verdict: Orders Removal of Stray Dogs and Cattle from Public Places for Public Safety and Animal Welfare
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: सार्वजनिक स्थानों से आवारा कुत्तों एवं मवेशियों को हटाने के निर्देश
परिचय
भारत जैसे विशाल और जनसंख्या-घनत्व वाले देश में आवारा पशुओं की समस्या नई नहीं है, किंतु हाल के वर्षों में यह जन-सुरक्षा, सार्वजनिक स्वच्छता और शहरी शासन — तीनों स्तरों पर एक गंभीर चुनौती के रूप में उभरी है। स्कूलों, अस्पतालों, बस अड्डों, पार्कों और राजमार्गों पर घूमते आवारा कुत्ते और मवेशी न केवल नागरिकों की सुरक्षा के लिए खतरा बन चुके हैं, बल्कि ये सड़क दुर्घटनाओं, रेबीज जैसी बीमारियों और पर्यावरणीय अव्यवस्था का भी कारण हैं। इसी पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट का हालिया निर्णय अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसमें न्यायालय ने अधिकारियों को स्कूलों, बस अड्डों तथा राजमार्गों से आवारा कुत्तों और मवेशियों को हटाकर पशु आश्रयों में रखने का निर्देश दिया है। यह फैसला न केवल मानवीय सुरक्षा से जुड़ा है, बल्कि पशु कल्याण और शहरी नियोजन के बीच संतुलन स्थापित करने का भी प्रयास है।
समस्या का स्वरूप
भारत में आवारा कुत्तों की संख्या लगभग 6 करोड़ आंकी गई है — जो विश्व में सबसे अधिक है। इनमें से अधिकांश शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में रहते हैं, जहाँ भोजन के स्रोत और आश्रय की सुविधा उन्हें उपलब्ध हो जाती है। लेकिन यही क्षेत्र बच्चों, विद्यार्थियों और यात्रियों के लिए सबसे असुरक्षित बन जाते हैं। प्रतिवर्ष हजारों लोग कुत्तों के काटने की घटनाओं का शिकार होते हैं, जिनमें से बड़ी संख्या में लोग रेबीज जैसी घातक बीमारी से पीड़ित होकर अपनी जान गंवाते हैं।
दूसरी ओर, राजमार्गों पर मवेशियों की उपस्थिति एक और गंभीर समस्या है। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के आंकड़ों के अनुसार, पशुओं से संबंधित दुर्घटनाएँ प्रतिवर्ष हजारों जानें लेती हैं और वाहनों व संपत्तियों की क्षति करोड़ों रुपये में होती है। अनेक बार ये पशु किसान या पशुपालक द्वारा छोड़े गए होते हैं, जिन्हें भोजन या देखभाल की व्यवस्था न होने के कारण सड़कों पर भटकना पड़ता है। यह स्थिति शहरी अपशिष्ट प्रबंधन और ग्रामीण पशु-कल्याण दोनों की खामियों को उजागर करती है।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट किया कि “मानवीय सुरक्षा और पशु अधिकार दोनों समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।” न्यायालय ने अपने निर्णय में प्रशासनिक संस्थाओं की निष्क्रियता पर चिंता जताई और निम्नलिखित ठोस निर्देश दिए—
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आवारा कुत्तों का प्रबंधन:
स्थानीय निकायों को निर्देश दिया गया कि वे स्कूलों, बस अड्डों और सार्वजनिक स्थानों से आवारा कुत्तों को सुरक्षित रूप से पकड़कर पशु आश्रय गृहों में भेजें। इसके साथ ही, नसबंदी और टीकाकरण की प्रक्रिया को तेजी से लागू करने की बात कही गई है ताकि जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ रोग-निवारण भी सुनिश्चित हो सके। -
मवेशियों का नियंत्रण:
NHAI और राज्य सरकारों को आदेश दिया गया है कि वे राष्ट्रीय राजमार्गों से मवेशियों को हटाने के लिए तत्काल कदम उठाएँ। न्यायालय ने यह भी कहा कि गो-आश्रय गृहों की संख्या बढ़ाई जाए तथा पशुपालकों को ऐसी योजनाओं से जोड़ा जाए जो उन्हें अपने मवेशियों की बेहतर देखभाल हेतु प्रोत्साहित करें। -
प्रगति रिपोर्ट का निर्देश:
सभी संबंधित एजेंसियों — नगर निकायों, राज्य प्रशासन और NHAI — को तीन माह के भीतर इस आदेश के पालन की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है।
यह आदेश पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 289 (पशुओं के प्रति लापरवाही) के अनुरूप है, और न्यायपालिका द्वारा नीतिगत रूप से संतुलित दृष्टिकोण का उदाहरण प्रस्तुत करता है।
प्रभाव एवं संभावित चुनौतियाँ
1. सकारात्मक प्रभाव
- जन-सुरक्षा में सुधार:
स्कूलों में बच्चों और राहगीरों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी, साथ ही राजमार्ग दुर्घटनाओं में कमी आएगी। - सार्वजनिक स्वच्छता:
कचरा फैलाने वाले आवारा पशुओं के हटने से शहरी क्षेत्रों की सफाई व्यवस्था में सुधार होगा। - पशु कल्याण:
आश्रय गृहों में बेहतर चिकित्सा, टीकाकरण और पुनर्वास सुविधाओं से पशुओं की स्थिति भी सुधरेगी। - शहरी शासन में सुधार:
यह आदेश स्थानीय निकायों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करता है, जिससे नगर नियोजन अधिक जिम्मेदार और व्यवस्थित हो सकेगा।
2. प्रमुख चुनौतियाँ
- आश्रय गृहों की कमी:
देश में पशु आश्रयों की संख्या जनसंख्या की तुलना में बहुत कम है। इससे कुत्तों और मवेशियों को समुचित रूप से रखने में कठिनाई होगी। - वित्तीय संसाधन:
नसबंदी, टीकाकरण और आश्रय निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर धन की आवश्यकता होगी। - सामाजिक स्वीकार्यता:
पशु अधिकार कार्यकर्ता एवं पशुप्रेमी संगठनों द्वारा इस कदम का विरोध भी संभावित है, विशेषकर यदि उन्हें पशुओं के साथ दुर्व्यवहार का भय लगे। - संस्थागत समन्वय की कमी:
स्थानीय निकाय, राज्य प्रशासन और केंद्रीय एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल के बिना यह योजना प्रभावी नहीं हो पाएगी।
आगे की राह
इस आदेश के सफल क्रियान्वयन के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को संयुक्त कार्ययोजना (Joint Action Plan) तैयार करनी होगी, जिसमें निम्नलिखित बिंदु शामिल हों—
- प्रत्येक जिले में पर्याप्त पशु आश्रय गृहों का निर्माण।
- पशुपालकों को प्रोत्साहन देने के लिए "गौ-पोषण सब्सिडी" जैसी योजनाओं का विस्तार।
- शहरी विकास योजनाओं में पशु प्रबंधन नीति को एकीकृत करना।
- नागरिकों में पशु व्यवहार और सार्वजनिक जिम्मेदारी को लेकर जन-जागरूकता अभियान चलाना।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश भारत के शहरी और ग्रामीण दोनों ताने-बाने को प्रभावित करने वाला ऐतिहासिक निर्णय है। यह न केवल एक न्यायिक हस्तक्षेप है, बल्कि एक नीति-सुधार का संकेत भी है — जिसमें नागरिक सुरक्षा, पशु अधिकार, स्वच्छता और विकास का समन्वित दृष्टिकोण दिखाई देता है।
अब यह जिम्मेदारी प्रशासन और समाज दोनों की है कि वे इस निर्णय को केवल “कानूनी आदेश” न मानें, बल्कि मानवीय और पर्यावरणीय संतुलन की दिशा में एक आवश्यक कदम समझें। जब सरकार, स्थानीय निकाय और नागरिक सामूहिक रूप से इस दिशा में कार्य करेंगे, तभी भारत सड़कों से लेकर स्कूलों तक — एक सुरक्षित, स्वच्छ और संवेदनशील समाज का निर्माण कर पाएगा।
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