Pakistan Blames India After Islamabad Suicide Blast and Wana Attack: A Desperate Attempt to Divert Attention from Internal Failures
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ के भारत-विरोधी आरोप: विफल शासन, झूठे दावे और क्षेत्रीय अस्थिरता का नया अध्याय
प्रस्तावना
इस्लामाबाद की जिला अदालत परिसर के बाहर हुए हालिया आत्मघाती विस्फोट, जिसमें 12 निर्दोष लोगों की जान चली गई, तथा वाना कैडेट कॉलेज पर आतंकी हमला — ये घटनाएँ पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था की भयावह विफलता को उजागर करती हैं। किंतु इन त्रासद घटनाओं के तुरंत बाद प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ द्वारा भारत पर “राज्य प्रायोजित आतंकवाद” (State-sponsored terrorism) के निराधार आरोप लगाना न केवल हास्यास्पद है, बल्कि एक राजनीतिक पलायनवाद का उदाहरण भी है।
यह आरोप, वस्तुतः, पाकिस्तान की लंबे समय से चली आ रही उस कूटनीतिक परंपरा का विस्तार है जिसके तहत जब भी उसके अपने पाले-पोसे आतंकी संगठन उसके विरुद्ध उठ खड़े होते हैं, वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान भटकाने के लिए भारत को दोषी ठहराने का पुराना राग अलापने लगता है।
पाकिस्तान की “ब्लेम इंडिया” रणनीति: पुरानी परंपरा, नया रूप
पाकिस्तान का इतिहास गवाह है कि जब भी उसके भीतर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP), लश्कर-ए-झंगवी, जमात-उल-अहरार, या अन्य इस्लामिक उग्रवादी गुट उसके अपने नागरिकों या सेना पर हमला करते हैं, तब वहां की राजनीतिक व्यवस्था तुरंत भारत विरोधी शोर मचाकर जनता का ध्यान मोड़ने का प्रयास करती है।
वर्तमान प्रकरण में भी, इस्लामाबाद हमले की जिम्मेदारी टीटीपी (TTP) ने स्वयं स्वीकार की है। पाकिस्तानी सेना ने भी वाना हमले को तथाकथित “इंडियन प्रॉक्सी फितना अल-ख्वारीज” कहकर TTP से जोड़ा है। इसके बावजूद कुछ ही घंटों में प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ का भारत को आतंकवाद प्रायोजक करार देना यह दर्शाता है कि यह एक पूर्व नियोजित राजनीतिक कथा (pre-scripted narrative) थी, जिसका उद्देश्य था –
- जनता के गुस्से को भारत की ओर मोड़ना,
- सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी पर पर्दा डालना, और
- विपक्षी दलों द्वारा उठाए जा रहे “आंतरिक सुरक्षा संकट” के मुद्दे से ध्यान हटाना।
पाकिस्तान: आतंकवाद का जन्मस्थल और निर्यातक
विश्व समुदाय लंबे समय से पाकिस्तान को “Global Epicentre of Terrorism” के रूप में पहचानता आया है।
FATF (Financial Action Task Force) की ग्रे लिस्ट से बाहर आने के लिए किए गए “दिखावटी प्रयासों” के बावजूद, पाकिस्तान की भूमि आज भी TTP, अल-कायदा के अवशेष, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, बलोच लिबरेशन आर्मी (BLA) जैसे संगठनों की शरणस्थली बनी हुई है।
विडंबना यह है कि जिस तालिबान शासन को पाकिस्तान ने वर्षों तक पोषित कर काबुल की सत्ता तक पहुंचाया, वही आज TTP को खुला समर्थन दे रहा है। अफगान सीमा के पार से संचालित हमलों ने पाकिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था को पंगु बना दिया है।
इसके बावजूद इस्लामाबाद का शासन अपनी नीतिगत असफलता को छिपाने के लिए भारत को दोषी ठहराने में व्यस्त है।
भारत को घसीटने की कूटनीतिक विफलता
भारत ने हमेशा आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई है और स्वयं दशकों से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का शिकार रहा है – चाहे वह 26/11 मुंबई हमला हो, पठानकोट या पुलवामा जैसी घटनाएँ। ऐसे में पाकिस्तान द्वारा भारत पर आतंकवाद को “राज्य प्रायोजित” बताना न केवल तथ्यहीन है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने अपनी विश्वसनीयता के अंतिम अवशेषों को भी नष्ट कर देने के समान है।
इस प्रकार के बयान –
- द्विपक्षीय संबंधों को विषाक्त करते हैं,
- दक्षेस (SAARC) जैसे क्षेत्रीय मंचों में सहयोग की संभावना को समाप्त करते हैं,
- और दक्षिण एशिया की स्थिरता को खतरे में डालते हैं।
शहबाज़ शरीफ सरकार का राजनीतिक संकट
आर्थिक रूप से दिवालिया हो चुका पाकिस्तान वर्तमान में IMF के दबाव, महंगाई, ऊर्जा संकट, और बढ़ती बेरोज़गारी से जूझ रहा है। जनता का भरोसा टूट चुका है, सेना और नागरिक सरकार के बीच संबंध तनावपूर्ण हैं, और टीटीपी द्वारा किए जा रहे लगातार हमलों ने आंतरिक सुरक्षा तंत्र को खोखला कर दिया है।
ऐसे समय में भारत-विरोधी बयानबाज़ी सरकार के लिए एक सुविधाजनक “राष्ट्रीय एकता” का नैरेटिव बनाती है।
शहबाज़ शरीफ का बयान उसी राजनीतिक हताशा और कूटनीतिक दिशाहीनता का प्रतीक है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका
संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, यूरोपीय संघ और खाड़ी देशों को पाकिस्तान के इन निराधार आरोपों पर अंकुश लगाना चाहिए।
उन्हें इस्लामाबाद से यह पूछना चाहिए कि –
- उसके पास भारत को दोषी ठहराने के कौन से ठोस साक्ष्य हैं?
- क्यों उसकी खुफिया एजेंसियाँ अपने ही देश की राजधानी में आतंकी हमलों को रोकने में विफल हैं?
- और क्यों उसके यहां आतंकवादी संगठनों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है?
जब तक अंतरराष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान से जवाबदेही की मांग नहीं करेगा, तब तक यह “ब्लेम इंडिया” रणनीति जारी रहेगी और क्षेत्रीय शांति एक कल्पना मात्र बनी रहेगी।
निष्कर्ष
शहबाज़ शरीफ द्वारा भारत पर लगाए गए आरोप न केवल निंदनीय और असत्य हैं, बल्कि पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा और नीतिगत विफलताओं को छिपाने का एक घृणित प्रयास हैं।
भारत को इन आरोपों का दृढ़ता से कूटनीतिक खंडन करना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि –
“आतंकवाद किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है, चाहे वह इस्लामाबाद से उपजे या रावलपिंडी से।”
पाकिस्तान यदि सचमुच शांति चाहता है, तो उसे भारत पर झूठे आरोप लगाने के बजाय अपने भीतर पनप रहे आतंकवाद, कट्टरवाद और सैन्य-राजनीतिक गठजोड़ को समाप्त करना होगा।
अन्यथा यह घटना भी पाकिस्तान की उसी लंबी श्रंखला का हिस्सा बन जाएगी जिसमें अपने ही बनाए दैत्य उसके विरुद्ध उठ खड़े होते हैं, और दोष भारत पर मढ़ दिया जाता है।
👎😡 — पूरी तरह बेबुनियाद, शर्मनाक और अस्वीकार्य। अंततः यही कहेंगे कि "जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे।"
📚 आधारित संदर्भ
1. पाकिस्तान मीडिया रिपोर्ट्स (Dawn, The Express Tribune, Geo News) – इस्लामाबाद और वाना हमलों से संबंधित समाचार।
2. अंतरराष्ट्रीय विश्लेषण (BBC, Reuters, Al Jazeera) – पाकिस्तान की सुरक्षा स्थिति पर रिपोर्टें।
3. FATF एवं UNCTC रिपोर्ट्स – पाकिस्तान में आतंकवादी संगठनों की सक्रियता से संबंधित तथ्य।
4. भारतीय विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के सार्वजनिक बयान – भारत की प्रतिक्रिया।
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