Trump’s First Major Move Against Russia: Sanctions on Lukoil and Rosneft, 25% Oil Tariff on India amid Ukraine War
यह लेख अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दूसरी पारी में रूस पर लगाए गए पहले यूक्रेन-संबंधी प्रतिबंधों का गहन, संतुलित और मौलिक विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिसमें ऊर्जा सुरक्षा, वैश्विक भू-राजनीति और भारत की स्थिति के बहुआयामी निहितार्थों पर प्रकाश डाला गया है।
अमेरिकी प्रतिबंध: ट्रंप की दूसरी पारी में रूस पर पहला यूक्रेन-संबंधी कदम, लुकोइल और रोसनेफ्ट पर निशाना
परिचय
22 अक्टूबर 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी दूसरी कार्यकाल की सबसे बड़ी विदेश नीति घोषणा करते हुए रूस की दो प्रमुख तेल कंपनियों—लुकोइल और रोसनेफ्ट—पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए। यह कदम यूक्रेन युद्ध (फरवरी 2022 से जारी) पर पुतिन की “अड़ियल नीति” के जवाब में उठाया गया है।
अमेरिकी वित्त मंत्रालय ने इन कंपनियों को “क्रेमलिन की युद्ध मशीनरी के प्रमुख वित्त पोषक” बताया, जबकि ट्रंप ने भारत से आने वाले रूसी तेल पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा कर वैश्विक ऊर्जा राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी। यह लेख प्रतिबंधों की संरचना, कारणों, संभावित प्रभावों तथा ऊर्जा सुरक्षा पर उनके व्यापक निहितार्थों का विश्लेषण करता है।
प्रतिबंधों की संरचना और आर्थिक तंत्र
अमेरिकी वित्त मंत्रालय द्वारा जारी ये नए प्रतिबंध रूस की तेल-आधारित अर्थव्यवस्था को निशाना बनाते हैं, जो वैश्विक तेल उत्पादन का लगभग 12% नियंत्रित करती है। इनका उद्देश्य रूस के राजस्व स्रोतों को कमजोर कर उसकी युद्ध क्षमता पर अंकुश लगाना है।
मुख्य प्रावधान:
रोसनेफ्ट (लगभग 2 मिलियन बैरल दैनिक उत्पादन) और लुकोइल (1.1 मिलियन बैरल) को सीधे निशाने पर लिया गया है। ये दोनों कंपनियाँ मिलकर रूस के कुल तेल निर्यात का आधे से अधिक हिस्सा नियंत्रित करती हैं।वित्तीय प्रतिबंध:
अमेरिकी बैंकों और डॉलर-आधारित लेन-देन से इन कंपनियों को बाहर कर दिया गया है। साथ ही, विदेशी संपत्तियों की जब्ती और अमेरिकी वित्तीय बाजारों तक पहुँच पर रोक लगाई गई है।अप्रत्यक्ष प्रभाव क्षेत्र:
भारत से आयातित रूसी तेल पर 25% आयात शुल्क लगाया गया है, जबकि चीन को इस व्यवस्था से अस्थायी छूट दी गई है।पूर्व प्रावधानों से समन्वय:
2022 में लागू $60 प्रति बैरल मूल्य सीमा को अब और कठोरता से लागू करने का निर्देश दिया गया है।लचीलापन एवं समयसीमा:
यदि रूस युद्धविराम की दिशा में ठोस कदम उठाता है, तो इन प्रतिबंधों को शीघ्र हटाने की संभावना रखी गई है।यह नीति ट्रंप प्रशासन की पिछली “ट्रेड वॉर” रणनीति से भिन्न है और अब इसे “सामरिक आर्थिक दबाव” (Strategic Economic Pressure) के रूप में देखा जा रहा है।
वित्त सचिव स्कॉट बेसेन्ट के अनुसार, “हमारा उद्देश्य वैश्विक ऊर्जा प्रणाली को बाधित करना नहीं, बल्कि क्रेमलिन की युद्ध निधि को सीमित करना है।”
ऐतिहासिक और कूटनीतिक संदर्भ
यह निर्णय उस समय आया जब बुडापेस्ट में प्रस्तावित ट्रंप-पुतिन शिखर वार्ता स्थगित कर दी गई। ट्रंप ने कहा कि “पुतिन से हर बातचीत अच्छी होती है, लेकिन वे किसी समझौते की दिशा में कदम नहीं बढ़ाते।”
2022 के बाद से पश्चिमी देशों ने क्रमिक रूप से 14 से अधिक प्रतिबंध पैकेज लागू किए हैं। हालांकि, ट्रंप की पहली पारी में रूस के प्रति नीति अधिक लचीली थी। इसलिए दूसरी पारी में यह पहला प्रत्यक्ष और सख्त कदम उनके “प्रो-पुतिन” टैग से दूरी का संकेत है।
यूके ने भी 15 अक्टूबर 2025 को समान प्रतिबंध लगाए थे, जिससे यह कदम एक बहुपक्षीय आर्थिक दबाव रणनीति का हिस्सा बन गया है। यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने इसे “युद्धविराम की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़” बताया।
रूस और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
रूस के लिए ये प्रतिबंध दीर्घकालिक चुनौती उत्पन्न कर सकते हैं, भले ही अल्पकाल में उसका असर सीमित दिखे।
- 2024 में रूस ने तेल निर्यात से $300 बिलियन कमाए—जो उसकी जीडीपी का 20% है।
- अनुमान है कि इन प्रतिबंधों से रूस की अर्थव्यवस्था को 1–2% जीडीपी नुकसान हो सकता है।
- यदि भारत या तुर्की जैसे तीसरे पक्ष देशों ने आयात घटाया, तो प्रभाव दोगुना हो सकता है।
रूस अब तेजी से युआन और रुपया आधारित भुगतान प्रणाली की ओर बढ़ रहा है। डॉलर से दूरी बढ़ने का खतरा अमेरिका के लिए भी दीर्घकालिक चिंता का विषय है, क्योंकि तेल व्यापार में डॉलर का वर्चस्व उसकी आर्थिक शक्ति की नींव रहा है।
क्रेमलिन ने प्रतिक्रिया में कहा कि “मॉस्को प्रतिबंधों से भयभीत नहीं होगा।” हालांकि, रूस की वित्तीय स्थिरता अब चीन की मौद्रिक सहायता और एशियाई बाजारों पर निर्भर होती जा रही है।
वैश्विक ऊर्जा बाजार और मूल्य अस्थिरता
रूस विश्व ऊर्जा बाजार का एक केंद्रीय स्तंभ है। अतः किसी भी प्रकार की बाधा का वैश्विक कीमतों पर तत्काल असर पड़ना स्वाभाविक है।
- प्रतिबंधों की घोषणा के बाद ब्रेंट क्रूड के दाम $92 से बढ़कर $98 प्रति बैरल हो गए।
- IEA के अनुसार, यदि प्रतिबंधों का प्रभाव व्यापक हुआ, तो कीमतें $105 प्रति बैरल तक जा सकती हैं।
भारत, जो रूस से डिस्काउंटेड क्रूड का प्रमुख खरीदार है, को 25% टैरिफ से झटका लग सकता है। इससे आयात लागत और घरेलू पेट्रोल-डीजल मूल्य दोनों में वृद्धि संभावित है, जो मुद्रास्फीति को 0.3–0.5% तक बढ़ा सकता है।
यूरोप पहले ही अपनी ऊर्जा निर्भरता घटाकर रूसी गैस हिस्सेदारी को 40% से घटाकर 13% पर ला चुका है, परंतु पूर्ण वैकल्पिक आपूर्ति अभी असंभव है।
अमेरिका, नाटो और रूस की कूटनीतिक प्रतिक्रियाएँ
राष्ट्रपति ट्रंप ने प्रतिबंधों की घोषणा के बाद कहा—
“मुझे युद्ध नहीं चाहिए, लेकिन पुतिन को यह समझना होगा कि शक्ति का संतुलन अब शब्दों से नहीं, आर्थिक निर्णयों से तय होगा।”
नाटो महासचिव मार्क रुट्टे ने इसे “रूसी दबाव के विरुद्ध सामूहिक प्रतिक्रिया” बताया, जबकि यूरोपीय संघ ने 2028 तक रूसी एलएनजी आयात पर प्रतिबंध के प्रस्ताव को तेज़ी से आगे बढ़ाने की घोषणा की।
रूसी प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने इस निर्णय को “घोषित आर्थिक युद्ध” कहा और पश्चिम पर “वैश्विक ऊर्जा अस्थिरता भड़काने” का आरोप लगाया।
ऊर्जा सुरक्षा और रणनीतिक निहितार्थ
ये प्रतिबंध केवल रूस की अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि वैश्विक ऊर्जा संरचना को भी पुनर्परिभाषित करते हैं।
- अल्पकालिक प्रभाव: मूल्य अस्थिरता और ऊर्जा आपूर्ति बाधा।
- मध्यम अवधि में: भारत, यूरोप और दक्षिण-पूर्व एशिया को नए स्रोत खोजने होंगे।
- दीर्घकालिक प्रभाव: हरित ऊर्जा और वैकल्पिक ईंधन में निवेश को गति मिलेगी।
ट्रंप का यह कदम न केवल रूस को, बल्कि डॉलर-आधारित वैश्विक ऊर्जा ढांचे को भी परखता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह “आर्थिक शक्ति बनाम सामरिक स्थायित्व” की नई प्रतिस्पर्धा की शुरुआत है।
भारत की स्थिति: संतुलन की चुनौती
भारत के लिए यह स्थिति द्वंद्वपूर्ण है—
- एक ओर वह सस्ते रूसी क्रूड से लाभ उठा रहा है,
- दूसरी ओर, अमेरिका का करीबी साझेदार होने के नाते उसके ऊपर रणनीतिक दबाव बढ़ रहा है।
भारत को अब ऊर्जा विविधीकरण, नवीकरणीय निवेश, और रणनीतिक भंडारण (SPR) की नीति को प्राथमिकता देनी होगी। साथ ही, डॉलर पर निर्भरता घटाना और वैकल्पिक भुगतान प्रणालियों (INR या डिजिटल करेंसी आधारित) की ओर बढ़ना ऊर्जा सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक उपाय हो सकता है।
निष्कर्ष
ट्रंप प्रशासन द्वारा लगाए गए ये प्रतिबंध न केवल यूक्रेन युद्ध के प्रति अमेरिकी रुख में बदलाव का संकेत हैं, बल्कि वैश्विक ऊर्जा राजनीति के पुनर्संयोजन की शुरुआत भी हैं।
इनकी सफलता इस पर निर्भर करेगी कि—
- क्या अमेरिका तीसरे पक्ष (भारत, तुर्की, चीन) को अनुशासित कर पाता है,
- क्या रूस अपनी वैकल्पिक वित्तीय व्यवस्था बनाए रख पाता है,
- और क्या यूरोप ऊर्जा संक्रमण को तेज गति से आगे बढ़ा पाता है।
यदि रूस वार्ता की मेज़ पर लौटता है, तो यह निर्णय शांति का मार्ग खोल सकता है; अन्यथा, यह आर्थिक युद्ध का लंबा अध्याय सिद्ध होगा।
संदर्भ स्रोत:
- Reuters (2025). US hits top Russian oil companies Rosneft and Lukoil with sanctions.
- US Department of the Treasury (2025). Sanctions Announcement on Russian Oil Sector.
- Columbia University SIPA (2025). Analysis: Effectiveness of New US Sanctions.
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