इजरायल की गाजा में नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं को सुनिश्चित करने की दायित्व: अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का परामर्शी मत
परिचय
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice – ICJ), जो संयुक्त राष्ट्र का सर्वोच्च न्यायिक निकाय है, ने हाल ही में एक ऐतिहासिक परामर्शी मत (Advisory Opinion) जारी किया है। इस मत में न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि गाजा पट्टी में रहने वाली नागरिक आबादी की मूलभूत आवश्यकताओं को सुनिश्चित करना इजरायल का अंतरराष्ट्रीय दायित्व है।
यह परामर्शी मत न केवल अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून (International Humanitarian Law) की व्याख्या को गहराता है, बल्कि यह वैश्विक नैतिकता, मानवाधिकारों की रक्षा, और संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में नागरिक सुरक्षा की अवधारणा को भी सशक्त करता है।
पृष्ठभूमि और संदर्भ
गाजा पट्टी दशकों से इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष का केंद्र रही है। 2007 में हमास के नियंत्रण में आने के बाद से, इजरायल ने गाजा पर सख्त नाकाबंदी (Blockade) लागू की हुई है। इस नाकाबंदी के कारण गाजा में भोजन, बिजली, दवाइयाँ, स्वच्छ जल और ईंधन जैसी आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी बनी रहती है।
साल 2023 के हमलों के बाद मानवीय स्थिति और भी भयावह हो गई, जिसके परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ICJ से यह परामर्शी मत मांगा कि क्या इजरायल पर गाजा की नागरिक आबादी के जीवन और गरिमा को सुनिश्चित करने का कानूनी दायित्व है या नहीं।
हालांकि ICJ का परामर्शी मत बाध्यकारी नहीं होता, फिर भी इसका नैतिक और कूटनीतिक महत्व अत्यधिक होता है। यह मत अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए एक कानूनी दिशा-सूचक और नैतिक मानदंड की तरह कार्य करता है, जो राज्य के आचरण को प्रभावित कर सकता है।
ICJ के परामर्शी मत का सार
ICJ ने अपने निर्णय में यह कहा कि इजरायल, गाजा पर प्रभावी नियंत्रण (Effective Control) रखने वाले पक्ष के रूप में, अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के तहत वहां की नागरिक आबादी की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए बाध्य है।
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि—
- भोजन, जल, चिकित्सा सुविधा, आवास, और शिक्षा जैसे आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करना इजरायल की प्राथमिक जिम्मेदारी है।
- नागरिकों पर लगाए गए सामूहिक दंड या अवरोध अंतरराष्ट्रीय कानून के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन हैं।
- मानवीय सहायता के निर्बाध प्रवाह को बाधित करना जिनेवा संधि की भावना और मानवता के सिद्धांतों के प्रतिकूल है।
ICJ ने विशेष रूप से यह भी रेखांकित किया कि नाकाबंदी या सैन्य नीतियाँ यदि नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं को बाधित करती हैं, तो वे युद्ध के कानूनों के अंतर्गत अवैध मानी जा सकती हैं।
कानूनी और नैतिक आधार
यह परामर्शी मत तीन प्रमुख कानूनी और नैतिक आधारों पर टिका है—
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1949 का चौथा जिनेवा सम्मेलन:
यह सम्मेलन स्पष्ट रूप से कहता है कि किसी भी कब्जे वाली शक्ति को अपने नियंत्रण वाले क्षेत्र के नागरिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण सुनिश्चित करना होगा। इजरायल गाजा की सीमाओं, वायु और समुद्री मार्गों पर नियंत्रण रखता है, अतः उसे “कब्जा करने वाली शक्ति” (Occupying Power) की श्रेणी में देखा जा सकता है। -
संयुक्त राष्ट्र चार्टर और मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR):
ये दस्तावेज़ जीवन, स्वतंत्रता, गरिमा और स्वास्थ्य जैसे मूलभूत मानवाधिकारों की रक्षा को राज्य की प्राथमिक जिम्मेदारी मानते हैं। -
मानवता और अंतरराष्ट्रीय नैतिकता का सिद्धांत:
युद्ध या संघर्ष की स्थिति में भी नागरिकों को सुरक्षा और सम्मान मिलना चाहिए। यह सिद्धांत किसी भी सभ्य समाज की पहचान है, जिसे ICJ ने पुनः रेखांकित किया है।
नैतिक रूप से, यह मत यह स्मरण कराता है कि सुरक्षा और अस्तित्व की खोज में मानवता की रक्षा सबसे बड़ा कर्तव्य है।
वैश्विक और क्षेत्रीय प्रभाव
ICJ का यह परामर्शी मत गाजा संकट के प्रति अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण को गहराई से प्रभावित कर सकता है।
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इजरायल पर अंतरराष्ट्रीय दबाव:
यह मत इजरायल से अपेक्षा करता है कि वह अपनी सैन्य और नाकाबंदी नीतियों की समीक्षा करे तथा मानवीय सहायता के मार्ग खोलने के लिए व्यावहारिक कदम उठाए। -
संयुक्त राष्ट्र और मानवीय संस्थाओं की भूमिका:
यह मत संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों, रेड क्रॉस और अन्य मानवीय संगठनों को अधिक सक्रियता से गाजा में राहत पहुंचाने के लिए कानूनी और नैतिक आधार प्रदान करता है। -
कूटनीतिक संवाद को प्रोत्साहन:
यह मत फिलिस्तीन-इजरायल संघर्ष के मूल प्रश्नों — संप्रभुता, सुरक्षा और मानवीय गरिमा — पर नए सिरे से अंतरराष्ट्रीय संवाद को प्रेरित करता है। -
अंतरराष्ट्रीय कानून की विश्वसनीयता:
भले ही ICJ के मत बाध्यकारी न हों, लेकिन ये अंतरराष्ट्रीय न्याय और नैतिकता की दिशा तय करते हैं। यह मत “Accountability” और “Moral Responsibility” की अवधारणाओं को पुनर्जीवित करता है।
चुनौतियाँ और सीमाएँ
हालांकि इस मत का नैतिक महत्व निर्विवाद है, इसके अनुपालन में कई चुनौतियाँ हैं।
इजरायल ने पहले भी ICJ के परामर्शी मतों को खारिज किया है, विशेष रूप से 2004 में वेस्ट बैंक में सुरक्षा दीवार पर दिए गए मत को।
इसके अलावा, इजरायल अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी नीतियों का हवाला देकर इस मत की व्यावहारिकता पर सवाल उठा सकता है।
फिर भी, यह मत अंतरराष्ट्रीय समुदाय को नैतिक दबाव और कूटनीतिक औजार प्रदान करता है, जिससे मानवीय दायित्वों की अनदेखी करना कठिन हो जाता है।
निष्कर्ष
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का यह परामर्शी मत केवल एक कानूनी घोषणा नहीं, बल्कि एक नैतिक आह्वान है — मानवता की रक्षा के लिए।
यह स्पष्ट करता है कि इजरायल जैसे किसी भी प्रभावी नियंत्रण रखने वाले राज्य का दायित्व है कि वह नागरिक आबादी को भोजन, जल, दवा और गरिमा का अधिकार सुनिश्चित करे, चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो।
गाजा में वर्तमान मानवीय संकट अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सामूहिक संवेदनशीलता की परीक्षा है।
यदि इस मत को आधार बनाकर संयुक्त राष्ट्र, क्षेत्रीय संगठन और स्वयं इजरायल ठोस कदम उठाते हैं, तो यह न केवल गाजा की पीड़ा को कम कर सकता है बल्कि भविष्य के संघर्षों में नागरिक सुरक्षा की एक नई अंतरराष्ट्रीय परंपरा भी स्थापित कर सकता है।
संदर्भ
- International Court of Justice Advisory Opinion on Gaza, 2025 – Reuters Report
- Geneva Conventions, 1949
- United Nations Charter, 1945
- Universal Declaration of Human Rights, 1948
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