Skip to main content

MENU👈

Show more

Adi Shankaracharya: The Eternal Light of Indian Intellectual Tradition

 आदि शंकराचार्य: भारतीय चेतना के चिरस्थायी प्रकाश भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरती पर कुछ ही ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने समय की धारा को मोड़ा और युगों तक प्रेरणा दी। आदि शंकराचार्य उनमें से एक हैं – एक ऐसी ज्योति, जिसने 8वीं शताब्दी में भारतीय बौद्धिक और आध्यात्मिक जगत को नया जीवन दिया। केरल के छोटे से कालड़ी गाँव में जन्मे इस युवा सन्यासी ने न केवल वेदों के गूढ़ ज्ञान को सरल बनाया, बल्कि उसे घर-घर तक पहुँचाकर भारत को एक सूत्र में बाँध दिया। एक युग का संकट और शंकर का उदय उस समय भारत एक बौद्धिक और धार्मिक उथल-पुथल से गुजर रहा था। अंधविश्वास, पंथों की भीड़ और बौद्ध धर्म के प्रभुत्व ने वैदिक परंपराओं को धूमिल कर दिया था। लोग सत्य की खोज में भटक रहे थे। ऐसे में शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत का झंडा उठाया और कहा – "सत्य एक है, बाकी सब माया है।" उनका यह संदेश सिर्फ दर्शन नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक नया तरीका था। "अहं ब्रह्मास्मि" – मैं ही ब्रह्म हूँ शंकराचार्य का अद्वैत वेदांत सरल लेकिन गहरा है। वे कहते थे कि आत्मा और ब्रह्म में कोई अंतर नहीं। हमारी आँखों के सामने ...

Pariksha Pe Charcha 2025: A Guiding Dialogue for Students

 परीक्षा पे चर्चा 2025: छात्रों के लिए मार्गदर्शक संवाद


हर साल, परीक्षा के मौसम में छात्रों पर बढ़ते दबाव और तनाव को देखते हुए भारत सरकार द्वारा एक अनूठी पहल की जाती है—"परीक्षा पे चर्चा"। इस संवाद कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों से सीधे संवाद करते हैं, जिससे न केवल उन्हें परीक्षा से जुड़ी चिंताओं को दूर करने का अवसर मिलता है, बल्कि वे आत्म-प्रेरणा और समय प्रबंधन जैसी महत्वपूर्ण बातों को भी सीखते हैं।

2025 में आयोजित "परीक्षा पे चर्चा" का आठवां संस्करण कई मायनों में खास रहा। यह न केवल छात्रों को परीक्षा के तनाव से उबरने के लिए व्यावहारिक सुझाव प्रदान करने का मंच बना, बल्कि यह उनकी समग्र शैक्षिक यात्रा को अधिक प्रभावी और प्रेरणादायक बनाने का प्रयास भी था। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने कई अहम विषयों पर चर्चा की, जिनमें दबाव प्रबंधन, समय प्रबंधन, लक्ष्य निर्धारण, प्रेरणा के स्रोत और अभिभावकों की भूमिका प्रमुख रूप से शामिल रहे।

परीक्षा का डर और दबाव प्रबंधन

छात्रों के मन में परीक्षा को लेकर अक्सर भय बना रहता है। इस डर के कारण कई छात्र अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं कर पाते। प्रधानमंत्री मोदी ने छात्रों को यह समझाने की कोशिश की कि परीक्षा केवल ज्ञान के आकलन का एक माध्यम है, इसे जिंदगी की सबसे बड़ी चुनौती नहीं मानना चाहिए।

उन्होंने क्रिकेट का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे एक बल्लेबाज स्टेडियम में हजारों लोगों की आवाज़ को अनसुना करके केवल गेंद पर ध्यान केंद्रित करता है, वैसे ही छात्रों को भी बाहरी दबावों की परवाह किए बिना अपने अध्ययन पर फोकस करना चाहिए। यह सीख छात्रों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि अनावश्यक दबाव केवल उनकी कार्यक्षमता को प्रभावित करता है।

इसके अलावा, प्रधानमंत्री ने अभिभावकों से भी आग्रह किया कि वे अपने बच्चों की दूसरों से तुलना न करें। यह मानसिकता छात्रों में आत्म-संदेह को जन्म देती है, जो अंततः उनके प्रदर्शन को प्रभावित कर सकती है। अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को प्रेरित करें, उनके प्रयासों की सराहना करें और असफलता को भी सीखने के अवसर के रूप में देखने की मानसिकता विकसित करें।

समय प्रबंधन और प्रभावी अध्ययन तकनीक

समय प्रबंधन परीक्षा की तैयारी का एक महत्वपूर्ण पहलू है। प्रधानमंत्री ने इस चर्चा में उल्लेख किया कि हर किसी के पास दिन के 24 घंटे समान होते हैं, लेकिन कुछ लोग समय का बेहतर उपयोग करके सफलता प्राप्त करते हैं। उन्होंने छात्रों को सुझाव दिया कि वे अपने दिन की स्पष्ट योजना बनाएं और कठिन विषयों पर अधिक समय दें।

समय प्रबंधन के लिए कुछ सुझाव:

1. डेली टाइम-टेबल तैयार करें: महत्वपूर्ण विषयों और कठिन विषयों के लिए ज्यादा समय निर्धारित करें।

2. छोटे-छोटे ब्रेक लें: लंबे समय तक अध्ययन करने से दिमाग थक जाता है, इसलिए हर घंटे के बाद 5-10 मिनट का ब्रेक लें।

3. प्राथमिकता तय करें: सबसे कठिन विषय को प्राथमिकता दें, जिससे दिमाग सबसे ताजगी भरे समय में बेहतर तरीके से काम करे।

4. रेविजन और टेस्ट दें: पढ़े हुए टॉपिक्स का समय-समय पर रिवीजन करें और खुद को टेस्ट करें।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर भी जोर दिया कि छात्रों को "स्मार्ट स्टडी" करनी चाहिए। इसका मतलब यह है कि केवल लंबे समय तक पढ़ाई करना पर्याप्त नहीं होता, बल्कि विषय को समझकर, नोट्स बनाकर और प्रैक्टिस करके अध्ययन करना ज्यादा प्रभावी होता है।

लक्ष्य निर्धारण और आत्म-प्रेरणा

प्रधानमंत्री ने छात्रों को यह सलाह दी कि वे स्पष्ट और प्राप्त करने योग्य लक्ष्य निर्धारित करें। उन्होंने उदाहरण देकर समझाया कि यदि कोई छात्र 97% अंक प्राप्त करने का लक्ष्य रखता है, तो वह निश्चित रूप से 95% से ऊपर स्कोर करेगा।

छात्रों के लिए गोल सेटिंग (Goal Setting) के कुछ महत्वपूर्ण नियम:

1. छोटे और प्राप्त करने योग्य लक्ष्य बनाएं: बड़े लक्ष्यों को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटें, ताकि उन पर फोकस करना आसान हो जाए।

2. अपने प्रदर्शन को मॉनिटर करें: समय-समय पर अपनी प्रगति को ट्रैक करें और यह देखें कि आप अपने लक्ष्य के कितने करीब हैं।

3. प्रेरणा के स्रोत खोजें: आत्म-प्रेरणा के लिए सफलता की कहानियां पढ़ें, मोटिवेशनल वीडियो देखें और सकारात्मक माहौल बनाए रखें।

4. खुद को पुरस्कृत करें: जब कोई छोटा लक्ष्य पूरा हो जाए, तो खुद को कोई छोटा इनाम दें, ताकि आप अगले लक्ष्य के लिए प्रेरित रहें।

प्रधानमंत्री ने छात्रों को बताया कि प्रेरणा उनके आसपास हर जगह मौजूद होती है। जरूरी यह है कि वे खुद को सही दिशा में प्रेरित करें और दूसरों की सफलता से सीखने की आदत डालें।

अभिभावकों और शिक्षकों की भूमिका

प्रधानमंत्री ने "परीक्षा पे चर्चा" के दौरान यह भी स्पष्ट किया कि अभिभावकों और शिक्षकों की भूमिका केवल अंक बढ़ाने तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि उन्हें छात्रों का सही मार्गदर्शन करना चाहिए।

उन्होंने अभिभावकों को यह संदेश दिया कि वे बच्चों को मॉडल की तरह देखने के बजाय, उनकी वास्तविक क्षमता और रुचियों को समझने का प्रयास करें। हर छात्र की अपनी विशेषताएं होती हैं, इसलिए उन्हें उनके अनुसार आगे बढ़ने देना चाहिए।

शिक्षकों के लिए भी यह महत्वपूर्ण है कि वे छात्रों के मनोबल को ऊंचा रखें और परीक्षा को किसी युद्ध की तरह प्रस्तुत करने के बजाय, इसे सीखने और आगे बढ़ने की प्रक्रिया के रूप में समझाएं।

विफलता को स्वीकार करना और सीखना

अक्सर परीक्षा में असफल होने पर छात्र निराश हो जाते हैं और खुद को कमजोर महसूस करने लगते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि हर असफलता अपने साथ सीखने का एक अवसर लेकर आती है।

उन्होंने छात्रों को यह प्रेरणा दी कि अगर वे किसी विषय में असफल होते हैं, तो इसके कारणों को समझें और अपने प्रयासों में सुधार करें। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि दुनिया के कई बड़े सफल लोग भी कभी असफल हुए थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे।

निष्कर्ष

"परीक्षा पे चर्चा 2025" छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण कार्यक्रम साबित हुआ। इस संवाद से न केवल परीक्षा के डर को कम करने में मदद मिली, बल्कि छात्रों को आत्म-विश्वास और प्रेरणा भी मिली।

इस कार्यक्रम का सबसे बड़ा संदेश यही था कि परीक्षा कोई जीवन-मरण का प्रश्न नहीं है, बल्कि यह सीखने और सुधार करने की प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। सही योजना, आत्म-विश्वास और मेहनत के जरिए कोई भी छात्र अपनी परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन कर सकता है।

इसके अलावा, अभिभावकों और शिक्षकों को भी यह समझने की जरूरत है कि बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालने से उनका आत्म-विश्वास कमजोर हो सकता है। इसके बजाय, उन्हें प्रोत्साहित करने, उनकी रुचियों को समझने और सही मार्गदर्शन देने की जरूरत है।

अगर छात्र इस कार्यक्रम में दिए गए सुझावों को अपनाएं और अपने लक्ष्य की ओर पूरी ईमानदारी से बढ़ें, तो निश्चित रूप से वे परीक्षा के तनाव से मुक्त होकर सफलता की ओर अग्रसर हो सकते हैं। "परीक्षा पे चर्चा" का यह संदेश न केवल परीक्षा के लिए बल्कि पूरे जीवन के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में अपनाया जा सकता है।


Previous & Next Post in Blogger
|
✍️ARVIND SINGH PK REWA

Comments

Advertisement

POPULAR POSTS