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Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

The “Bedbug Mentality” in Society: A Challenge of Exploitation and Mental Harassment

“समाज में पनपती खटमल प्रवृत्ति: शोषण और मानसिक उत्पीड़न का जाल”

परिचय

भारतीय समाज में समय-समय पर विभिन्न सामाजिक समस्याएँ उभरती रही हैं। हाल के वर्षों में एक नई प्रवृत्ति सामने आई है, जिसे हम रूपक में “खटमल प्रवृत्ति” कह सकते हैं। जैसे खटमल बिना श्रम किए दूसरों का रक्त चूसकर जीवित रहता है, वैसे ही कुछ लोग दूसरों की मेहनत, संसाधनों और मानसिक शांति का शोषण करके अपने स्वार्थ पूरे करते हैं। यह केवल आर्थिक परजीविता तक सीमित नहीं है, बल्कि अब इसका नया रूप मानसिक उत्पीड़न (psychological exploitation) के रूप में दिखाई देने लगा है। यह प्रवृत्ति न केवल व्यक्तिगत जीवन, बल्कि संस्थागत और सामाजिक ढाँचे पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है।


आर्थिक परजीविता से मानसिक शोषण तक

  • परंपरागत रूप से यह प्रवृत्ति भ्रष्टाचार, मुफ्तखोरी और कार्यस्थल पर दूसरों का श्रेय चुराने जैसे उदाहरणों में दिखाई देती रही है।
  • परंतु अब इसका सूक्ष्म रूप मानसिक उत्पीड़न है — निरंतर आलोचना, अपमानजनक व्यवहार, सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग, और असहज तुलना।
  • यह प्रवृत्ति व्यक्ति की mental well-being, समाज की trust capital और संस्थाओं की कार्यकुशलता को कमजोर करती है।

मानसिक उत्पीड़न के रूप

  1. परिवारों में – तुलना, अपमान और ताने, जिनसे आत्मविश्वास घटता है।
  2. कार्यस्थलों पर – अनुचित आलोचना, दूसरों की मेहनत का श्रेय लेना, hostile work environment।
  3. समाज और डिजिटल मंचों पर – सोशल मीडिया ट्रोलिंग, character assassination और घृणास्पद टिप्पणियाँ।

👉 इन व्यवहारों को न तो आसानी से चुनौती दी जा सकती है और न ही इनके प्रभाव अल्पकालिक होते हैं।


इस प्रवृत्ति की जड़ें

  • उपभोगवादी संस्कृति और त्वरित सफलता की चाह – मेहनत की बजाय शॉर्टकट और दूसरों के श्रेय पर निर्भरता।
  • नैतिक मूल्यों का क्षरण – शिक्षा और समाज में सहयोग, सहानुभूति व ईमानदारी की उपेक्षा।
  • संस्थागत जवाबदेही की कमी – भ्रष्टाचार व मानसिक उत्पीड़न के खिलाफ कठोर कार्रवाई का अभाव।
  • आक्रामकता का सामान्यीकरण – सोशल मीडिया पर अभद्रता को “ईमानदारी” या “ह्यूमर” का नाम देकर वैध ठहराना।

क्यों यह गंभीर है? (UPSC GS-1 दृष्टिकोण)

  • मेहनती लोगों का हतोत्साह → समाज की नवाचार क्षमता घटती है।
  • अविश्वास और असुरक्षा → सामाजिक पूँजी (social capital) कमजोर होती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य संकट → अवसाद, तनाव और आत्मघाती प्रवृत्तियों में वृद्धि।
  • सामाजिक प्रगति में बाधा → दीर्घकालिक आर्थिक और सांस्कृतिक पिछड़ापन।

Governance & Institutional Dimensions (UPSC GS-2 दृष्टिकोण)

  • कार्यस्थलों पर anti-harassment policies की सख्ती।
  • सोशल मीडिया पर cyber-bullying और trolling के खिलाफ मजबूत कानून।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही को प्रोत्साहित करने वाले लोक प्रशासन सुधार

Ethical Dimensions (UPSC GS-4 दृष्टिकोण)

  • यह प्रवृत्ति Integrity, Empathy और Honesty के विपरीत है।
  • “खटमल प्रवृत्ति” पर आधारित व्यक्ति instrumental values (सिर्फ स्वार्थ) अपनाते हैं, जबकि समाज को terminal values (cooperation, respect, dignity) की आवश्यकता है।
  • Case Studies – एक युवा कलाकार का ट्रोलिंग के कारण हतोत्साह, एक कर्मचारी का अनुचित आलोचना से demotivation।

आगे का रास्ता

  1. शैक्षिक सुधार – Value Education, Emotional Intelligence और Empathy पर बल।
  2. संस्थागत जवाबदेही – harassment, trolling और exploitation पर कठोर कार्रवाई।
  3. सांस्कृतिक परिवर्तन – सहयोग और रचनात्मक आलोचना को बढ़ावा।
  4. व्यक्तिगत दृढ़ता – मानसिक शक्ति और resilience का विकास।
  5. आदर्श प्रस्तुत करना – समाज में मेहनत और ईमानदारी को पुरस्कृत करना।

निष्कर्ष (Essay Perspective)

“खटमल प्रवृत्ति” भले ही सतही तौर पर मामूली दिखे, परंतु इसके परिणाम दूरगामी हैं। यह न केवल व्यक्तियों की मानसिक शांति छीनती है, बल्कि समाज की सामूहिक प्रगति को भी बाधित करती है। इसलिए आवश्यक है कि शासन, संस्थाएँ और समाज मिलकर ऐसे वातावरण का निर्माण करें जहाँ मेहनती और रचनात्मक लोग सम्मानित हों, और नकारात्मक, परजीवी प्रवृत्तियों के लिए कोई स्थान न हो।


#ख़टमल_गैंग 

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