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Adi Shankaracharya: The Eternal Light of Indian Intellectual Tradition

 आदि शंकराचार्य: भारतीय चेतना के चिरस्थायी प्रकाश भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरती पर कुछ ही ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने समय की धारा को मोड़ा और युगों तक प्रेरणा दी। आदि शंकराचार्य उनमें से एक हैं – एक ऐसी ज्योति, जिसने 8वीं शताब्दी में भारतीय बौद्धिक और आध्यात्मिक जगत को नया जीवन दिया। केरल के छोटे से कालड़ी गाँव में जन्मे इस युवा सन्यासी ने न केवल वेदों के गूढ़ ज्ञान को सरल बनाया, बल्कि उसे घर-घर तक पहुँचाकर भारत को एक सूत्र में बाँध दिया। एक युग का संकट और शंकर का उदय उस समय भारत एक बौद्धिक और धार्मिक उथल-पुथल से गुजर रहा था। अंधविश्वास, पंथों की भीड़ और बौद्ध धर्म के प्रभुत्व ने वैदिक परंपराओं को धूमिल कर दिया था। लोग सत्य की खोज में भटक रहे थे। ऐसे में शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत का झंडा उठाया और कहा – "सत्य एक है, बाकी सब माया है।" उनका यह संदेश सिर्फ दर्शन नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक नया तरीका था। "अहं ब्रह्मास्मि" – मैं ही ब्रह्म हूँ शंकराचार्य का अद्वैत वेदांत सरल लेकिन गहरा है। वे कहते थे कि आत्मा और ब्रह्म में कोई अंतर नहीं। हमारी आँखों के सामने ...

Jadta: Samaj Mein Badhti Mansik Kathorta aur Uske Prabhav

जड़ता: समाज में बढ़ती मानसिक कठोरता और उसके प्रभाव

भूमिका

मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति उसकी विचारशीलता है। विचारों का प्रवाह समाज में विकास, परिवर्तन और नवाचार का मार्ग प्रशस्त करता है। लेकिन जब मनुष्य अपनी सोच को अंतिम सत्य मान लेता है और अन्य विचारों के प्रति असहिष्णु हो जाता है, तब उसकी बुद्धि जड़ हो जाती है। "जड़ता" का अर्थ मात्र मूर्खता नहीं है, बल्कि यह एक मानसिक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति अपनी मान्यताओं, धारणाओं या विचारों को ही सही मानता है और अन्य विचारों को नकारने या उनका विरोध करने लगता है। समाज में ऐसी मानसिक जड़ता का बढ़ना एक गंभीर समस्या है, क्योंकि यह समाज की प्रगतिशीलता, नवीनता और परिवर्तनशीलता को बाधित करता है।


जड़ता का अर्थ और परिभाषा

जड़ता का शाब्दिक अर्थ स्थिरता या निष्क्रियता है। भौतिकी में यह किसी वस्तु की अपनी स्थिति बनाए रखने की प्रवृत्ति को दर्शाता है, लेकिन सामाजिक संदर्भ में इसका अर्थ है - मानसिक जड़ता, जहां व्यक्ति अपनी धारणाओं को अंतिम सत्य मानता है और अन्य विचारों के प्रति असहिष्णुता दिखाता है।

जड़ता के लक्षण:

  1. विचारों में स्थिरता: व्यक्ति अपने विचारों या मान्यताओं में इतना रिजिड हो जाता है कि वह दूसरों की राय सुनने को तैयार नहीं रहता।
  2. आक्रामक प्रतिक्रिया: यदि कोई व्यक्ति उनकी सोच को चुनौती दे तो वे तर्क करने के बजाय आक्रामकता दिखाते हैं, कभी-कभी अपशब्दों का प्रयोग भी करते हैं।
  3. नवाचार और परिवर्तन का विरोध: नए विचारों, वैज्ञानिक खोजों या सामाजिक सुधारों के प्रति उनका विरोध होता है।
  4. पूर्वाग्रह और रूढ़िवादिता: जड़ता से ग्रस्त व्यक्ति समाज में व्याप्त रूढ़िवादी मान्यताओं को ही सच मानता है और बदलाव का विरोध करता है।

जड़ता के कारण

समाज में बढ़ती जड़ता के पीछे कई कारण हैं, जिनमें सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक कारण प्रमुख हैं।

  1. अशिक्षा और अज्ञानता: जब व्यक्ति का ज्ञान सीमित होता है, तब वह अपनी अल्प जानकारी को ही अंतिम सत्य मान लेता है। नए विचारों के प्रति उसका दृष्टिकोण संकीर्ण हो जाता है।
  2. धार्मिक और सांप्रदायिक कट्टरता: धर्म और समुदाय के प्रति अंधभक्ति भी जड़ता को जन्म देती है। ऐसे व्यक्ति अपने धार्मिक विश्वास को ही सर्वोपरि मानते हैं और अन्य मतों के प्रति घृणा या हिंसा का प्रदर्शन करते हैं।
  3. सोशल मीडिया का प्रभाव: वर्तमान युग में सोशल मीडिया ने विचारों को प्रसारित करने में अहम भूमिका निभाई है, लेकिन यह कट्टरता और जड़ता को भी बढ़ावा दे रहा है। लोग अपनी पसंद की विचारधारा वाले समूहों में ही बने रहते हैं और विपरीत विचार को नकार देते हैं।
  4. परंपराओं और रूढ़ियों का अंधानुकरण: कई लोग अपनी संस्कृति, परंपराओं और रीति-रिवाजों को अंतिम मानते हैं। वे बदलाव को स्वीकार नहीं करते और इसे अपनी पहचान के लिए खतरा मानते हैं।
  5. राजनीतिक ध्रुवीकरण: राजनीतिक विचारधाराओं में भी जड़ता देखी जाती है। लोग किसी पार्टी या नेता का अंध समर्थन करते हैं और विरोधी विचारधारा को देशद्रोही या देशविरोधी बताने लगते हैं।

समाज पर जड़ता के प्रभाव

जड़ता का समाज पर दूरगामी और हानिकारक प्रभाव पड़ता है। यह न केवल वैचारिक संकीर्णता को बढ़ावा देता है, बल्कि सामाजिक विकास को भी बाधित करता है।

  1. नवाचार का अभाव: जड़ मानसिकता वाले लोग नए विचारों और खोजों का विरोध करते हैं, जिससे समाज में नवाचार की गति धीमी हो जाती है। वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति बाधित होती है।
  2. विचारधारा का ठहराव: जब समाज में एक ही विचारधारा को अंतिम सत्य मान लिया जाता है, तो विचारधारा में सड़न आ जाती है। नए विचारों के समावेश की संभावना खत्म हो जाती है।
  3. सामाजिक विभाजन: जड़ता के कारण समाज में ध्रुवीकरण बढ़ता है। लोग अपनी विचारधारा को श्रेष्ठ और अन्य को गलत मानते हैं, जिससे समाज में वैमनस्य और संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है।
  4. बौद्धिक असहिष्णुता: जड़ता से ग्रस्त व्यक्ति अन्य विचारों के प्रति असहिष्णु हो जाता है। वह तर्क और संवाद की बजाय गाली-गलौज या हिंसा पर उतर आता है, जिससे समाज में असभ्यता और हिंसा का वातावरण बनता है।
  5. लोकतंत्र को खतरा: लोकतंत्र का आधार विचारों की विविधता है। यदि लोग जड़ हो जाएंगे और विरोधी विचारों को सहन नहीं करेंगे, तो लोकतंत्र कमजोर होगा। सत्ता पक्ष की आलोचना को देशद्रोह या विरोध समझना लोकतंत्र के लिए घातक है।

जड़ता से बचाव के उपाय

जड़ता को दूर करने और समाज में विचारों की विविधता बनाए रखने के लिए व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर प्रयास जरूरी हैं।

  1. शिक्षा और जागरूकता: लोगों को तर्कशील, विवेकशील और खुले विचारों वाला बनाने के लिए शिक्षा की भूमिका अहम है। आलोचनात्मक सोच (Critical Thinking) को बढ़ावा देना जरूरी है, जिससे व्यक्ति नए विचारों को अपनाने के लिए तैयार हो।
  2. विचारों का आदान-प्रदान: संवाद, बहस और चर्चाओं के माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान होना चाहिए। इससे व्यक्ति अन्य दृष्टिकोणों को समझने में सक्षम होगा।
  3. सोशल मीडिया की जिम्मेदारी: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को जिम्मेदारीपूर्वक चलाने की जरूरत है। भ्रामक और एकपक्षीय प्रचार को रोकने के लिए उचित नियम लागू किए जाने चाहिए।
  4. सामाजिक सहिष्णुता: समाज में सहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिए सांस्कृतिक और शैक्षिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए। विविधता को अपनाने की भावना विकसित करनी होगी।
  5. राजनीतिक और सामाजिक सुधार: राजनीतिक दलों को भी वैचारिक विविधता का सम्मान करना चाहिए। केवल वोट बैंक की राजनीति करने की बजाय लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने का प्रयास होना चाहिए।

निष्कर्ष

जड़ता समाज के लिए घातक है। यह मानसिक संकीर्णता, वैचारिक ठहराव और सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देती है। समाज को आगे बढ़ाने के लिए हमें विचारों में लचीलापन, विविधता और सहिष्णुता को अपनाना होगा। विचारों का निरंतर प्रवाह ही समाज को सृजनशील, प्रगतिशील और जीवंत बनाए रखता है। अतः जड़ता को त्यागकर तर्कशीलता, उदारता और नवीनता को अपनाना ही समाज की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेगा।


यह टॉपिक UPSC CSE (Civil Services Exam) के सामान्य अध्ययन (GS) के निम्नलिखित पेपरों से संबंधित है:

1. GS Paper 1: भारतीय समाज और सामाजिक मुद्दे

इस टॉपिक में समाज में बढ़ती जड़ता, सामाजिक परिवर्तन, असहिष्णुता, विचारों में ठहराव और समाज पर इसके प्रभाव जैसे मुद्दे शामिल हैं, जो GS-1 के पाठ्यक्रम के निम्नलिखित हिस्सों से संबंधित हैं:

  • भारतीय समाज की विविधता: विचारों और मान्यताओं में विविधता का महत्व और जड़ता का प्रभाव।
  • सामाजिक समस्याएँ: असहिष्णुता, सामाजिक ध्रुवीकरण और मानसिक जड़ता का समाज पर प्रभाव।
  • सामाजिक परिवर्तन और आधुनिकता: जड़ता से सामाजिक परिवर्तन में रुकावट।

2. GS Paper 4: नैतिकता, सत्यनिष्ठा और अभिवृत्ति (Ethics, Integrity, and Aptitude)

यह टॉपिक नैतिक मूल्यों, सहिष्णुता, और विचारों की स्वतंत्रता जैसे विषयों से भी संबंधित है:

  • मानव मूल्य और नैतिकता: जड़ता के कारण लोगों में सहिष्णुता और विनम्रता का अभाव।
  • आचरण और अभिवृत्ति: अन्य विचारों के प्रति असहिष्णुता और आक्रामक व्यवहार का मूल्यांकन।
  • सोचने की क्षमता: आलोचनात्मक और रचनात्मक सोच का अभाव, जो जड़ता को बढ़ावा देता है।

📚 प्रासंगिक टॉपिक्स:

  • सामाजिक परिवर्तन और सामाजिक स्थिरता।
  • सहिष्णुता बनाम असहिष्णुता।
  • नैतिक मूल्यों का क्षरण।
  • सोशल मीडिया का समाज पर प्रभाव।
  • मानसिकता में रूढ़िवाद और सामाजिक जड़ता।

➡️ परीक्षा में संभावित प्रश्न:

  • समाज में बढ़ती जड़ता के कारणों और प्रभावों का विश्लेषण कीजिए।
  • क्या विचारों में कठोरता समाज में सामाजिक परिवर्तन को बाधित करती है? चर्चा कीजिए।
  • समाज में असहिष्णुता और जड़ता को दूर करने के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए?
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✍️ARVIND SINGH PK REWA

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