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Adi Shankaracharya: The Eternal Light of Indian Intellectual Tradition

 आदि शंकराचार्य: भारतीय चेतना के चिरस्थायी प्रकाश भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरती पर कुछ ही ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने समय की धारा को मोड़ा और युगों तक प्रेरणा दी। आदि शंकराचार्य उनमें से एक हैं – एक ऐसी ज्योति, जिसने 8वीं शताब्दी में भारतीय बौद्धिक और आध्यात्मिक जगत को नया जीवन दिया। केरल के छोटे से कालड़ी गाँव में जन्मे इस युवा सन्यासी ने न केवल वेदों के गूढ़ ज्ञान को सरल बनाया, बल्कि उसे घर-घर तक पहुँचाकर भारत को एक सूत्र में बाँध दिया। एक युग का संकट और शंकर का उदय उस समय भारत एक बौद्धिक और धार्मिक उथल-पुथल से गुजर रहा था। अंधविश्वास, पंथों की भीड़ और बौद्ध धर्म के प्रभुत्व ने वैदिक परंपराओं को धूमिल कर दिया था। लोग सत्य की खोज में भटक रहे थे। ऐसे में शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत का झंडा उठाया और कहा – "सत्य एक है, बाकी सब माया है।" उनका यह संदेश सिर्फ दर्शन नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक नया तरीका था। "अहं ब्रह्मास्मि" – मैं ही ब्रह्म हूँ शंकराचार्य का अद्वैत वेदांत सरल लेकिन गहरा है। वे कहते थे कि आत्मा और ब्रह्म में कोई अंतर नहीं। हमारी आँखों के सामने ...

The Truth About IIT Baba Being God

 आईआईटी बाबा के भगवान होने का सच

इस लेख में यह विश्लेषण किया गया है कि क्या आईआईटी बाबा वास्तव में "भगवान" होने का दावा कर सकते हैं। साथ ही, उस आधार की भी मीमांसा की गई है, जिस पर वे अपने आपको भगवान मानते हैं। उनका आधार सिद्धांत आत्मा और ब्रह्म की एकता है, जिसका स्रोत वेदांत के महावाक्य हैं। लेख में इन महावाक्यों का आध्यात्मिक, दार्शनिक और व्यावहारिक अर्थ समझाया गया है। साथ ही, यह बताया गया है कि सच्चा ब्रह्मज्ञान अहंकार को मिटाने का मार्ग है, न कि उसे बढ़ाने का। यदि आप इन गूढ़ सिद्धांतों को सही परिप्रेक्ष्य में समझना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए उपयोगी रहेगा।

आईआईटी बाबा अपने बयानों और सोशल मीडिया गतिविधियों के कारण चर्चा में रहते हैं। वे खुद को एक अलग विचारधारा के प्रचारक के रूप में प्रस्तुत करते हैं और कई बार अपने अनुयायियों के बीच असाधारण दावे भी करते हैं।

क्या वे वास्तव में भगवान हैं?

यह पूरी तरह से व्यक्तिगत आस्था और तर्क पर निर्भर करता है। धार्मिक, दार्शनिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से "भगवान" की परिभाषा बहुत व्यापक है। आमतौर पर भगवान को सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञानी और सृष्टि के कर्ता के रूप में माना जाता है, जबकि आईआईटी बाबा एक साधारण इंसान हैं।

यदि कोई उन्हें भगवान मानता है, तो यह उसकी व्यक्तिगत श्रद्धा हो सकती है, लेकिन तर्क और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह दावा सिद्ध नहीं होता। कोई भी व्यक्ति अपने ज्ञान, विचारधारा या प्रभाव के आधार पर पूजनीय हो सकता है, लेकिन इससे वह ईश्वर नहीं बन जाता।

आईआईटी बाबा के "भगवान" कहने के पीछे का आधार


आईआईटी बाबा संभवतः अपने आपको "भगवान" कहने के लिए वेदांत के महावाक्य "अहं ब्रह्मास्मि" (Aham Brahmasmi) का सहारा लेते हैं। यह उपनिषदों का एक प्रमुख महावाक्य है, जो बृहदारण्यक उपनिषद से लिया गया है।

"अहं ब्रह्मास्मि" का अर्थ

संस्कृत में:

अहं (Aham) = मैं

ब्रह्म (Brahman) = परम सत्य, सर्वोच्च सत्ता, संपूर्ण ब्रह्मांड की आधारभूत शक्ति

अस्मि (Asmi) = हूँ

अर्थ: "मैं ही ब्रह्म हूँ" या "मैं परम सत्य हूँ।"

आध्यात्मिक और दार्शनिक दृष्टिकोण

इस महावाक्य का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति की आत्मा (जीवात्मा) और ब्रह्म (परमात्मा) अलग नहीं हैं, बल्कि एक ही हैं। अद्वैत वेदांत के अनुसार, अज्ञान (अविद्या) के कारण हम अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाते हैं और खुद को केवल शरीर और मन तक सीमित मानते हैं। लेकिन जब ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता है, तब हमें एहसास होता है कि हम स्वयं ब्रह्म हैं – शाश्वत, अनंत और दिव्य।

"अहं ब्रह्मास्मि" का व्यावहारिक अर्थ

इसका अर्थ यह नहीं कि "मैं व्यक्तिगत रूप से ईश्वर हूँ," बल्कि यह कि हर व्यक्ति और हर जीवात्मा के भीतर वही ब्रह्म (परम सत्य) विद्यमान है।

यह अहंकार को बढ़ाने वाला नहीं, बल्कि अहंकार को मिटाने वाला ज्ञान है। जब कोई व्यक्ति यह समझ जाता है कि सब कुछ ब्रह्म है, तो उसमें भेदभाव, अहंकार और आसक्ति खत्म हो जाती है। यह आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाने वाला एक गूढ़ संदेश है।

"तत् त्वं असि" – दूसरा महावाक्य

"अहं ब्रह्मास्मि" की तरह ही "तत् त्वं असि" (Tat Tvam Asi) भी अद्वैत वेदांत का एक प्रमुख महावाक्य है, जो छांदोग्य उपनिषद से लिया गया है।

"तत् त्वं असि" का अर्थ

संस्कृत में:

तत् (Tat) = वह (परम ब्रह्म, परम सत्य)

त्वं (Tvam) = तुम (जीव, आत्मा)

असि (Asi) = हो

अर्थ: "तुम वही हो", या "तुम ही ब्रह्म हो।"

आध्यात्मिक संदेश

यह गुरु द्वारा शिष्य को दिया गया ज्ञान है, जिसमें गुरु अपने शिष्य से कहता है कि "तुम स्वयं ब्रह्म हो, यह जानो और अनुभव करो।"

इसका अभिप्राय यह है कि व्यक्ति स्वयं को सीमित शरीर, मन या अहंकार तक सीमित न माने, बल्कि अपनी वास्तविकता को पहचाने कि वह स्वयं ब्रह्म है।

यह द्वैत (भेदभाव) को मिटाने और अद्वैत (एकता) को स्थापित करने वाला ज्ञान है।

The Truth About IIT Baba Being God

सारांश

"अहं ब्रह्मास्मि" व्यक्ति का आत्मबोध है – "मैं ब्रह्म हूँ।"

"तत् त्वं असि" गुरु द्वारा शिष्य को दिया गया ज्ञान है – "तुम भी वही हो।"

दोनों का सार एक ही है – "अंततः जीव और ब्रह्म में कोई भेद नहीं है, दोनों एक ही हैं।"

आईआईटी बाबा और अद्वैत वेदांत के महावाक्य

यदि कोई इन महावाक्यों को सही रूप से समझे, तो वह "मैं ईश्वर हूँ, बाकी मुझसे अलग हैं" जैसी बात नहीं करेगा। बल्कि, वह यह देखेगा कि सबमें वही ब्रह्म है और सब बराबर हैं।

क्या लोग इन महावाक्यों का सही अर्थ समझ पाते हैं?

अक्सर लोग इन महावाक्यों के सतही अर्थ को पकड़ते हैं, लेकिन इनकी गहराई को नहीं समझते। अद्वैत वेदांत का ज्ञान अहंकार को बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि अहंकार मिटाने के लिए है।

सच्चा ब्रह्मज्ञानी दूसरों को अपने से अलग नहीं मानता, बल्कि सबमें एक ही चेतना का दर्शन करता है।

निष्कर्ष

आईआईटी बाबा अगर सही अर्थ में "अहं ब्रह्मास्मि" का अनुसरण करते हैं, तो उन्हें यह समझना चाहिए कि यह अहंकार का नहीं, बल्कि आत्मबोध का संदेश है। सच्चा ब्रह्मज्ञानी दूसरों से श्रेष्ठता का दावा नहीं करता, बल्कि सबमें समानता देखता है।

इसलिए, किसी व्यक्ति को "भगवान" मानना व्यक्तिगत आस्था हो सकती है, लेकिन इसे तर्क और वेदांत के सिद्धांतों के आधार पर परखना आवश्यक है।


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✍️ARVIND SINGH PK REWA

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