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Adi Shankaracharya: The Eternal Light of Indian Intellectual Tradition

 आदि शंकराचार्य: भारतीय चेतना के चिरस्थायी प्रकाश भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरती पर कुछ ही ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने समय की धारा को मोड़ा और युगों तक प्रेरणा दी। आदि शंकराचार्य उनमें से एक हैं – एक ऐसी ज्योति, जिसने 8वीं शताब्दी में भारतीय बौद्धिक और आध्यात्मिक जगत को नया जीवन दिया। केरल के छोटे से कालड़ी गाँव में जन्मे इस युवा सन्यासी ने न केवल वेदों के गूढ़ ज्ञान को सरल बनाया, बल्कि उसे घर-घर तक पहुँचाकर भारत को एक सूत्र में बाँध दिया। एक युग का संकट और शंकर का उदय उस समय भारत एक बौद्धिक और धार्मिक उथल-पुथल से गुजर रहा था। अंधविश्वास, पंथों की भीड़ और बौद्ध धर्म के प्रभुत्व ने वैदिक परंपराओं को धूमिल कर दिया था। लोग सत्य की खोज में भटक रहे थे। ऐसे में शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत का झंडा उठाया और कहा – "सत्य एक है, बाकी सब माया है।" उनका यह संदेश सिर्फ दर्शन नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक नया तरीका था। "अहं ब्रह्मास्मि" – मैं ही ब्रह्म हूँ शंकराचार्य का अद्वैत वेदांत सरल लेकिन गहरा है। वे कहते थे कि आत्मा और ब्रह्म में कोई अंतर नहीं। हमारी आँखों के सामने ...

Pahalgam Terror Attack 2025: सुरक्षा व्यवस्था और कूटनीति पर बहुपक्षीय प्रभाव

पहलगाम आतंकी हमला 2025: सामान्य स्थिति के भ्रम से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा की असल चुनौती तक 

एक समग्र विश्लेषण


भूमिका

2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद केंद्र सरकार ने राज्य में सामान्य स्थिति की स्थापना और विकास को प्राथमिकता दी। इसके समर्थन में पर्यटकों की भारी आमद, फिल्मों की शूटिंग, और स्थानीय चुनावों की सफलता को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत किया गया। लेकिन अप्रैल 2025 में पहलगाम के पास बाइसारन घास के मैदान में हुआ आतंकी हमला — जिसमें 26 नागरिकों की नृशंस हत्या कर दी गई — इस तथाकथित ‘सामान्य स्थिति’ के भ्रम को तोड़ता है। यह न केवल एक मानवीय त्रासदी है, बल्कि भारत की आंतरिक सुरक्षा, कूटनीतिक स्थिरता और राष्ट्रीय एकता के लिए गंभीर चुनौती भी है।


1. सामान्य स्थिति बनाम सुरक्षा की हकीकत

पर्यटन, आर्थिक गतिविधि और शांतिपूर्ण चुनाव सामान्य स्थिति के संकेत हो सकते हैं, लेकिन जब घाटी में आतंकियों के पास M4 कार्बाइन और AK-47 जैसे हथियार हों और वे सेना की वर्दी में आम नागरिकों की हत्या कर रहे हों, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि सतही शांति के नीचे हिंसा का एक सुनियोजित नेटवर्क जीवित है।

UPSC दृष्टिकोण:
GS Paper 3 में पूछा जा सकता है: "घाटी में पर्यटकों की वापसी को सामान्य स्थिति का संकेत मानना किस हद तक तर्कसंगत है? सुरक्षा की दृष्टि से विवेचना कीजिए।"
उत्तर में यह स्पष्ट करना होगा कि सुरक्षा स्थायित्व केवल सामाजिक और खुफिया समन्वय से आता है, महज पर्यटक संख्या से नहीं।


2. आंतरिक सुरक्षा की विफलता और खुफिया तंत्र की भूमिका

हमले में यह स्पष्ट हुआ कि आतंकी कई घंटों तक उस क्षेत्र में सक्रिय रहे, महिलाओं को छोड़कर पुरुषों को चिन्हित कर मारा गया — यह रणनीति और मनोवैज्ञानिक युद्ध दोनों को दर्शाता है। सुरक्षा एजेंसियों की ओर से पहले से खुफिया चेतावनी न होना या उसका प्रभावी उपयोग न होना, एक बड़ी चूक है।

UPSC दृष्टिकोण:
GS Paper 3 में संभावित प्रश्न: "भारत की आंतरिक सुरक्षा में खुफिया तंत्र की निर्णायक भूमिका है।" — पहलगाम हमले के परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण करें।
उत्तर में यह विश्लेषण होना चाहिए कि तकनीकी खुफिया (TECHINT), मानव खुफिया (HUMINT) और अंतर-एजेंसी समन्वय कितना आवश्यक है।


3. वैश्विक कूटनीतिक प्रभाव और अंतरराष्ट्रीय छवि

यह हमला ऐसे समय हुआ जब प्रधानमंत्री विदेश दौरे पर थे और अमेरिकी उपराष्ट्रपति भारत में मौजूद थे। इससे यह प्रतीकात्मक संदेश जाता है कि भारत की सुरक्षा स्थिति अस्थिर है, जो अंतरराष्ट्रीय निवेश और कूटनीतिक विश्वास को प्रभावित कर सकता है।

UPSC दृष्टिकोण:
GS Paper 2 में पूछा जा सकता है: "आतंकी घटनाओं की पृष्ठभूमि में आतंकवाद विरोधी अंतरराष्ट्रीय सहयोग की भूमिका पर चर्चा कीजिए।"
इसका उत्तर भारत की विदेश नीति, अमेरिका के साथ आतंकवाद विरोधी समझौतों, और UN के मंचों पर भारत की पहल को जोड़ते हुए देना चाहिए।


4. राजनीतिक प्रतिक्रिया और लोकतांत्रिक जिम्मेदारी

सरकार द्वारा सामान्य स्थिति के दावों के बावजूद विपक्ष ने हमले को ‘हिंदुस्तान के चेहरे पर कलंक’ कहा है। यह घटना बताती है कि केवल राजनीतिक बयानबाज़ी से नहीं, बल्कि जमीनी सच्चाई को स्वीकार कर पारदर्शिता के साथ समाधान की दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता है।

UPSC दृष्टिकोण:
GS Paper 2 में संभावित प्रश्न: "राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौती से निपटने के लिए राजनीतिक एकजुटता और पारदर्शिता कितनी आवश्यक है?"
उत्तर में यह रेखांकित करना होगा कि राष्ट्रीय मुद्दों पर सरकार और विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी है कि वे समाधान के लिए मिलकर काम करें।


5. नैतिक और मानवीय पहलू

बचाई गई महिलाओं, मारे गए पुरुष पर्यटक, और मृतकों के परिवारों के दर्द ने पूरी मानवता को झकझोर दिया। यह केवल एक हमला नहीं था, यह आतंकवाद का वही चेहरा है जो निर्दोषों को लक्ष्य बनाकर समाज को भयग्रस्त करता है।

UPSC दृष्टिकोण:
GS Paper 4 में संभावित प्रश्न:

  • "राष्ट्रीय सुरक्षा का दायित्व केवल सरकार पर नहीं, बल्कि नागरिकों, मीडिया और समाज पर भी है।"
  • "शांति और सामान्य स्थिति की घोषणाओं में पारदर्शिता और नैतिक जवाबदेही आवश्यक है।"

उत्तर में शासन के नैतिक पहलुओं — जवाबदेही, पारदर्शिता, और सत्यनिष्ठा — को विश्लेषित करना चाहिए। साथ ही, मीडिया और नागरिक समाज की भूमिका को भी समझना जरूरी है।


6. दीर्घकालिक रणनीति और सुधार की आवश्यकता

इस घटना के बाद निम्नलिखित कदम अनिवार्य हो जाते हैं:

  • सुरक्षा ढांचे की पुनर्समीक्षा: संवेदनशील इलाकों में आधुनिक निगरानी प्रणाली, ड्रोन, और सैटेलाइट इंटेलिजेंस का उपयोग।
  • स्थानीय समुदाय की भागीदारी: आतंकियों को स्थानीय समर्थन न मिले, इसके लिए विश्वास-निर्माण कार्यक्रम और युवाओं के लिए रोजगार योजनाएं आवश्यक हैं।
  • राजनीतिक समाधान की पहल: केवल सैन्य दृष्टिकोण से समस्या का समाधान नहीं होगा, राजनीतिक संवाद आवश्यक है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बेनकाब करना और वैश्विक सहयोग से दबाव बनाना।

निष्कर्ष

पहलगाम हमला एक चेतावनी है — यह दिखाता है कि जम्मू-कश्मीर में ‘सामान्य स्थिति’ की कहानी अधूरी है। यह हमला केवल सुरक्षा में सेंध नहीं है, यह हमारे लोकतंत्र, हमारी एकता और हमारी मानवीय चेतना पर हमला है। भारत को अब आंतरिक सुरक्षा को पुनर्परिभाषित करना होगा, न केवल तकनीकी स्तर पर, बल्कि रणनीतिक, राजनीतिक और नैतिक स्तर पर भी।

आगे की राह समन्वय, पारदर्शिता, सामाजिक सहभागिता और मजबूत खुफिया ढांचे से होकर गुजरती है। तभी जम्मू-कश्मीर और पूरे भारत में सच्ची सामान्य स्थिति स्थापित हो सकती है — जो केवल भ्रम नहीं, बल्कि स्थायी शांति का प्रतीक होगी।



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✍️ARVIND SINGH PK REWA

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