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Adi Shankaracharya: The Eternal Light of Indian Intellectual Tradition

 आदि शंकराचार्य: भारतीय चेतना के चिरस्थायी प्रकाश भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरती पर कुछ ही ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने समय की धारा को मोड़ा और युगों तक प्रेरणा दी। आदि शंकराचार्य उनमें से एक हैं – एक ऐसी ज्योति, जिसने 8वीं शताब्दी में भारतीय बौद्धिक और आध्यात्मिक जगत को नया जीवन दिया। केरल के छोटे से कालड़ी गाँव में जन्मे इस युवा सन्यासी ने न केवल वेदों के गूढ़ ज्ञान को सरल बनाया, बल्कि उसे घर-घर तक पहुँचाकर भारत को एक सूत्र में बाँध दिया। एक युग का संकट और शंकर का उदय उस समय भारत एक बौद्धिक और धार्मिक उथल-पुथल से गुजर रहा था। अंधविश्वास, पंथों की भीड़ और बौद्ध धर्म के प्रभुत्व ने वैदिक परंपराओं को धूमिल कर दिया था। लोग सत्य की खोज में भटक रहे थे। ऐसे में शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत का झंडा उठाया और कहा – "सत्य एक है, बाकी सब माया है।" उनका यह संदेश सिर्फ दर्शन नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक नया तरीका था। "अहं ब्रह्मास्मि" – मैं ही ब्रह्म हूँ शंकराचार्य का अद्वैत वेदांत सरल लेकिन गहरा है। वे कहते थे कि आत्मा और ब्रह्म में कोई अंतर नहीं। हमारी आँखों के सामने ...

Italy Opens 'Intimate meeting Room' in Prison: A Bold Step Towards Prison Reform and Human Rights

जेलों के भीतर 'इंटिमेसी' की इजाज़त: क्या यह मानवाधिकार का हिस्सा है?

हाल ही में इटली ने एक ऐतिहासिक और विवादास्पद फैसला लेते हुए अपनी एक जेल में पहली बार 'इंटिमेट मीटिंग्स रूम' की शुरुआत की है। सेंट्रल अम्ब्रिया क्षेत्र की एक जेल में यह विशेष सुविधा तैयार की गई, जहाँ एक कैदी को अपनी महिला पार्टनर से मिलने की अनुमति दी गई। इससे पहले अदालत ने यह मान्यता दी थी कि कैदियों को अपने पार्टनर्स के साथ 'इंटिमेट मीटिंग' का अधिकार है। इस फैसले ने जेल सुधारों और कैदियों के मानवाधिकारों को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है — और यह विषय भारतीय संदर्भ में भी उतना ही प्रासंगिक है, खासकर UPSC जैसी परीक्षाओं की तैयारी करने वालों के लिए।


क्या यह विषय UPSC के पाठ्यक्रम से संबंधित है?

जी हाँ, यह विषय सीधे तौर पर UPSC मुख्य परीक्षा (GS Paper 2) से जुड़ा है:

1. Governance और जेल सुधार:

भारत की जेल प्रणाली आज भी औपनिवेशिक ढांचे पर आधारित है। कैदियों को अक्सर केवल "अपराधी" के रूप में देखा जाता है, जबकि सुधार और पुनर्वास की भावना कमजोर पड़ जाती है। इटली की यह पहल जेल सुधारों की दिशा में एक उदाहरण प्रस्तुत करती है — जहाँ कैदी को एक इंसान की तरह देखा गया है, जिसके सामाजिक और भावनात्मक संबंध भी महत्वपूर्ण हैं।

2. Human Rights Perspective:

संयुक्त राष्ट्र की 'नेल्सन मंडेला रूल्स' (2015) में भी कहा गया है कि कैदियों की गरिमा बनाए रखना आवश्यक है। इटली की अदालत का यह निर्णय इस बात पर बल देता है कि कैदी की 'प्राइवेट लाइफ' और संबंधों को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता।

3. Comparative Governance:

भारत में जेल सुधार की बात लंबे समय से होती रही है — जैसे कि Mulla Committee और Justice Krishna Iyer Committee की सिफारिशें — लेकिन इटली जैसी पहलें दिखाती हैं कि व्यावहारिक सुधार कैसे किए जा सकते हैं।


निबंध लेखन की दृष्टि से संभावित विषय

इस विषय पर आधारित निम्न निबंध UPSC में लिखे जा सकते हैं:

1. "कारावास का उद्देश्य: दंड या पुनर्वास?"

इस निबंध में आप यह तर्क रख सकते हैं कि अगर जेल केवल दंड का माध्यम रह जाएगी तो समाज में सुधार की कोई संभावना नहीं बचेगी। पुनर्वास के लिए मानवीय दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।

2. "मानव अधिकार और जेल की चारदीवारी"

कैदियों के भी मौलिक अधिकार होते हैं। जैसे कि जीवन का अधिकार, गरिमा का अधिकार, और निजी संबंधों का अधिकार। इन अधिकारों को केवल इसलिए खत्म नहीं किया जा सकता क्योंकि व्यक्ति जेल में है।

3. "न्याय और करुणा का संतुलन: जेल सुधारों की आवश्यकता"

यह निबंध बताता है कि न्याय केवल कठोर दंड देने का नाम नहीं है। एक प्रगतिशील समाज में करुणा, समझ और सुधार की भी उतनी ही आवश्यकता होती है।


भारतीय संदर्भ में क्या यह लागू हो सकता है?

भारत में अब तक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जहाँ कैदियों को 'इंटिमेट मीटिंग्स' की अनुमति हो। हालाँकि, कुछ उच्च न्यायालयों ने कैदियों को पारिवारिक जीवन और 'कॉनजुगल राइट्स' के लिए पैरोल की अनुमति दी है। परंतु यह अधिकार अब भी अस्पष्ट और न्यायिक विवेक पर आधारित है।

यदि इटली की तरह भारत में भी यह पहल होती है, तो इससे कैदियों में सुधार की संभावना बढ़ सकती है, मानसिक स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है, और जेलों में हिंसा की घटनाओं में भी कमी आ सकती है।


निष्कर्ष

इटली की जेल में 'इंटिमेट मीटिंग्स रूम' खोलने की पहल को केवल एक सनसनीखेज खबर मानकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह एक बड़ा सामाजिक प्रश्न है — कि क्या कैदी अपनी सजा काटते हुए भी इंसान बने रह सकते हैं? क्या हम उन्हें केवल अपराधी मानते हैं या एक पुनर्वास योग्य नागरिक भी?

यह मुद्दा हमें याद दिलाता है कि न्याय का मतलब केवल सजा देना नहीं, बल्कि सुधार का अवसर देना भी है।



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✍️ARVIND SINGH PK REWA

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