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Adi Shankaracharya: The Eternal Light of Indian Intellectual Tradition

 आदि शंकराचार्य: भारतीय चेतना के चिरस्थायी प्रकाश भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरती पर कुछ ही ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने समय की धारा को मोड़ा और युगों तक प्रेरणा दी। आदि शंकराचार्य उनमें से एक हैं – एक ऐसी ज्योति, जिसने 8वीं शताब्दी में भारतीय बौद्धिक और आध्यात्मिक जगत को नया जीवन दिया। केरल के छोटे से कालड़ी गाँव में जन्मे इस युवा सन्यासी ने न केवल वेदों के गूढ़ ज्ञान को सरल बनाया, बल्कि उसे घर-घर तक पहुँचाकर भारत को एक सूत्र में बाँध दिया। एक युग का संकट और शंकर का उदय उस समय भारत एक बौद्धिक और धार्मिक उथल-पुथल से गुजर रहा था। अंधविश्वास, पंथों की भीड़ और बौद्ध धर्म के प्रभुत्व ने वैदिक परंपराओं को धूमिल कर दिया था। लोग सत्य की खोज में भटक रहे थे। ऐसे में शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत का झंडा उठाया और कहा – "सत्य एक है, बाकी सब माया है।" उनका यह संदेश सिर्फ दर्शन नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक नया तरीका था। "अहं ब्रह्मास्मि" – मैं ही ब्रह्म हूँ शंकराचार्य का अद्वैत वेदांत सरल लेकिन गहरा है। वे कहते थे कि आत्मा और ब्रह्म में कोई अंतर नहीं। हमारी आँखों के सामने ...

Pahalgam Terror Attack: TRF’s Denial Strategy and the Need for India’s Response

पहलगाम आतंकी हमला: TRF के इनकार की रणनीति और भारत की प्रतिक्रिया की आवश्यकता

पहलगाम आतंकी हमला: TRF के इनकार की रणनीति और भारत की प्रतिक्रिया की आवश्यकता

पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 निर्दोष नागरिकों की जान गई, ने कश्मीर में धीरे-धीरे लौट रही सामान्य स्थिति को एक बार फिर गहरा आघात पहुँचाया है। इस भयावह हमले के बाद, लश्कर-ए-तैयबा (LeT) से जुड़े संगठन "द रेजिस्टेंस फ्रंट" (TRF) ने एक सार्वजनिक बयान में इस हमले में अपनी संलिप्तता से इनकार किया है। उसने पहले जारी हुए जिम्मेदारी के ऑनलाइन दावे को "भंग" (ब्रीच) बताया — एक शब्द चयन जो स्वयं अनेक सवाल खड़े करता है।

पहलगाम हमला: कश्मीर में शांति प्रक्रिया पर गहरा आघात

कश्मीर के आतंकी परिदृश्य में ऐसे इनकार अब एक परिचित रणनीति बन चुके हैं। जब भी किसी हमले में आम नागरिकों या पर्यटकों को निशाना बनाया जाता है और वैश्विक स्तर पर तीखी आलोचना होती है, आतंकी संगठन अक्सर जिम्मेदारी से बचने के लिए अस्पष्टता का सहारा लेते हैं। उनका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय दबाव से बचना, स्थानीय समर्थकों के बीच अपनी वैधता बनाए रखना और रणनीतिक विफलताओं से उपजी आलोचना से बचना होता है।

TRF द्वारा जिम्मेदारी से इनकार: एक परिचित रणनीति

TRF का यह इनकार, चाहे जितना भी चतुराई से प्रस्तुत किया गया हो, इस संगठन को उस व्यापक आतंकवाद के माहौल से मुक्त नहीं कर सकता जिसे वह लगातार बढ़ावा देता रहा है।

आतंकी संगठनों का छद्म आवरण: TRF और लश्कर-ए-तैयबा के संबंध

TRF ने खुद को एक "स्थानीय प्रतिरोध आंदोलन" के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है — जो पाकिस्तान समर्थित नेटवर्क से इसके गहरे संबंधों को छिपाने की कोशिश मात्र है। खुफिया रिपोर्टें और संचार इंटरसेप्ट लगातार TRF और लश्कर-ए-तैयबा के बीच की गहरी कड़ियाँ उजागर करते रहे हैं।

नागरिकों को निशाना बनाना: संघर्ष के नियमों का उल्लंघन

पहलगाम हमला एक महत्वपूर्ण मोड़ है। अतीत में जहाँ आतंकी हमले सुरक्षा प्रतिष्ठानों को निशाना बनाते रहे थे, यहाँ निर्दोष नागरिकों पर सीधा हमला किया गया — जो कि संघर्ष के अनकहे नियमों में भी एक गंभीर उल्लंघन माना जाता है। इस प्रकार की बर्बरता कश्मीर के सामाजिक ताने-बाने को गहरे घाव देती है।

आतंकवाद और पर्यटन: कश्मीर की अर्थव्यवस्था पर हमला

जब कश्मीर में पर्यटन उद्योग महामारी के बाद पुनर्जीवित हो रहा था और राजनीतिक संवाद को पुनर्जीवित करने के प्रयास हो रहे थे, तब इस प्रकार का हमला जानबूझकर आर्थिक पुनर्निर्माण और जनता के भरोसे को कमजोर करने के लिए किया गया प्रतीत होता है।

वैश्विक निंदा और भारत की कूटनीतिक चुनौती

वैश्विक समुदाय की तीव्र और स्पष्ट निंदा इस तथ्य को उजागर करती है कि अब इस प्रकार के इनकार और असत्य कथनों के लिए कोई स्थान नहीं रह गया है। भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह न केवल सुरक्षा अभियानों को और अधिक प्रभावी बनाए, बल्कि नागरिकों की सुरक्षा व्यवस्था को भी मज़बूत करे, जमीनी स्तर पर खुफिया नेटवर्क को विस्तार दे और विश्वास-निर्माण की राजनीतिक प्रक्रियाओं को गति दे।

आतंकवाद के खिलाफ न्याय और जवाबदेही की आवश्यकता

TRF जैसे संगठनों के खोखले बयान पीड़ितों के दर्द के सामने कोई मायने नहीं रखते। केवल जिम्मेदारी तय करना पर्याप्त नहीं है; उस जिम्मेदारी के आधार पर दोषियों के खिलाफ प्रभावी और न्यायसंगत कार्रवाई करना अनिवार्य है। कश्मीर को केवल सुरक्षा उपायों की नहीं, बल्कि सच्चे न्याय की आवश्यकता है — और यह तभी संभव है जब हिंसा के पूरे तंत्र को निष्प्रभावी किया जाए, चाहे वह प्रत्यक्ष हो या परोक्ष।

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✍️ARVIND SINGH PK REWA

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